रमजान में रोजा रखने वाले आदमी अपनी बुरी आदतों से दूर रहने के साथ -साथ स्वयं पर भी रखे धैर्य

रमजान को नेकियों का मौसम बोला जाता है। इस महीने में मुसलमान धर्म के अनुनायी अल्लाह की इबादत यानी उपासना करते हैं। अपने परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए उपासना के साथ, कुरान की इबादत, दान धर्म करते हैं। कई मुस्लिम रमजान के दौरान नमाज पढ़ते हैं और रोजा रखते हैं। ये उपवास अल्लाह के प्रति उनकी आस्था का प्रतीक है।
रोजे के दौरान आदमी को बहुत सारी बातों को ख्याल रखना होता है। रमजान में रोजा रखने वाले आदमी अपनी बुरी आदतों से दूर रहने के साथ -साथ स्वयं पर भी धैर्य रखना होता है।
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 9वें महीने रमजान का महीना होता है
चित्रकूट के मौलाना ऐनुल अधिकार बताते हैं कि इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक नौंवे महीने रमजान का महीना होता है, जिसमें प्रति साल मुसलमान समुदाय द्वारा रोजे रखे जाते हैं। इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक यह महीना “अल्लाह से इबादत” का महीना होता है। ऐसी मान्यता है कि रमजान के अवसर पर दिल से अल्लाह की बंदगी करने वाले हर शख्स की ख्वाहिशें पूरी होती है। रमजान के मौके पर मुसलमान समुदायों द्वारा पूरे महीने रोजे रखे जाते हैं। रोजे रखने का अर्थ वास्तव में सच्चे दिल से ईश्वर के प्रति ध्यान लगाता है।
हालांकि वे धार्मिक लोग जिनकी इस दौरान तबीयत खराब होती है, उम्र अधिक होती है, गर्भावस्था के होने तथा अन्य परेशानियां की वजह से रोजे रखने में जो असमर्थ हैं, उन्हें रोजे न रखने की अनुमति होती है।
इन खास बातों का रखें ख्याल
रमजान के महीने में रोजे के दौरान मुसलमान समुदाय द्वारा दिन भर में भोजन या जलपान ग्रहण नहीं किया जाता। साथ ही इस दैरान बुरी आदतों जैसे -सिगरेट, तम्बाकू का सेवन करना कठोर मना होता है। रोजे रखने वाले रोजेदारों द्वारा सूर्य उगने से पूर्व थोड़ा भोजन खाया जाता है। इस समय को मुसलमान समुदाय द्वारा सुहूर (सहरी)कहा जाता है। जबकि दिन भर रोजा रखने के बाद शाम को रोजेदारों द्वारा जिस भोजन को ग्रहण किया जाता है उसे इफ्तार नाम दिया गया है।