मोतिहारी में दुनिया के सबसे बड़े शिवलिंग की स्थापना का रोका गया काम

मोतिहारी के कैथवलिया में दुनिया के सबसे बड़े शिवलिंग की स्थापना का काम टल गया है. वजह, जिस विराट रामायण मंदिर में इसकी स्थापना की जानी थी. उसका निर्माण भी सालभर में एक इंच नहीं हो सका है. मंदिर बनने में सबसे बड़ी अड़चन जमीन की आ गई है. इसके साथ ही मंदिर के नक्शे में भी परिवर्तन किया गया है.
जमीन देने वालों ने मदिर के नए नक्शे को देखकर अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं. मंदिर के नाम पर पहले से 115 एकड़ जमीन तो मिल गई है, लेकिन जिस स्थान मंदिर का गर्भगृह बनना है, वहां 6 एकड़ जमीन की रजिस्ट्री नहीं हो सकी है.
नए नक्शे के मुताबिक मंदिर को 13.4 एकड़ (540 फीट लंबा, 1080 फीट चौड़ा) में बनाया जाना है. इससे पहले आरंभ में इसे 90 एकड़ (1400 फीट लंबा, 2800 फीट चौड़ा) में बनाने का प्रस्ताव था.
सबसे पहले जानिए शिवलिंग की खासियत
रामायण मंदिर में दुनिया के सबसे विशाल शिवलिंग की स्थापना की जानी है, जो 33 फीट ऊंचा है. तमिलनाडु के महाबलीपुरम में इसे एक पत्थर से काटकर बनाया जाना है. इसकी गोलाई भी 33 फीट ही है. इसमें 3 सीढ़ियां और 4 लिफ्ट होंगे, जिससे भक्त ऊपर जाकर आराम से जल चढ़ा सकेंगे.
लगभग 250 मीट्रिक टन वजन वाले इस शिवलिंग को तमिलनाडु के त्रिचुरापल्ली की पहाड़ी ग्रेनाइट से तैयार किया जा रहा है. इसमें सबसे ऊपर शिव के पांच मुख (पंचानन) होंगे और नीचे 1008 सहस्रलिंगम की नक्काशी होगी. त्रिचुरापल्ली की पहाड़ी से ग्रेनाइट को शिवलिंग बनाने के लिए 156 चक्के और 122 फीट लंबी लॉरी से महाबलीपुरम पहुंचाया गया है. वहां से तराशने के बाद इसे कैथवलिया लाया जाएगा.
शिवलिंग इतना विशाल है कि इसे स्थापित करने के लिए पहले मंदिर में पाइलिंग का काम होगा, प्लिंथ तक आकर काम रोक दिया जाएगा.
पहले बताया गया था कि 2023 में शिवलिंग स्थापित हो जाएगा. मंदिर का निर्माण 2024 तक पूरा होगा, लेकिन अभी तक इस बात की कोई जानकारी नहीं मिल सकी है कि शिवलिंग निर्माण का काम कहां तक पहुंचा है. जमीनी हकीकत यह है कि मंदिर के पाइलिंग का काम भी नहीं हुआ है.
अब जानिए मंदिर निर्माण की कहानी
90 एकड़ में भव्य मंदिर बनाने के नाम पर क्षेत्रीय लोगों ने खुशी-खुशी 115 एकड़ जमीन दे दी थी. वर्ष भर पहले जैसे ही यह बात सामने आई कि नए नक्शे के मुताबिक मंदिर को 13.4 एकड़ में ही बनाना है, क्षेत्रीय लोग नाराज हो गए. कमेटी के सचिव ललन सिंह ने इसमें अपनी सक्रियता कम कर दी.
इस बीच मंदिर के डिजाइन में भी कई परिवर्तन हुए, यह भी जमीन देने वालों को नागवार गुजरा. इसके बाद बीते एक वर्ष में एक इंच जमीन भी मंदिर को नहीं मिली है. बची हुई 6 एकड़ जमीन की रजिस्ट्री नहीं हो सकी और मंदिर निर्माण का काम ठप हो गया.
इन विवादों की हकीकत जानने के लिए दैनिक मीडिया टीम मंदिर निर्माण वाली स्थान पर पहुंची. कैथवलिया के आसपास के कई गांवों में मीडिया की टीम घूमी. वहां के लोगों से बात करने पर कई नयी जानकारियां सामने आईं.
मंदिर निर्माण के लिए बनाई गई कमेटी के सदस्यों से भी बात की गई, सभी के अंदर मंदिर का आकार छोटा होने की कसक है. हालांकि, कैमरे पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है. आगे पढ़िए, कैथवलिया से मीडिया की ग्राउंड रिपोर्ट…
साइट पर सालभर से बैठे हैं कंस्ट्रक्शन कंपनी के कर्मचारी
दैनिक मीडिया की टीम इस दौरान कंस्ट्रक्शन साइट पर गई, वहां पर अभी केवल गिरी हुई बालू-गिट्टी देखने को मिला. साइट पर कंस्ट्रक्शन कंपनी SVL के 30 कर्मचारी हैं. इसमें इंजीनियर, सुपरवाइजर से लेकर मजदूर तक शामिल हैं. यहां पर अभी तक जो एक ठोस निर्माण हुआ है, वो कंपनी के ऑफिस का है. कंपनी के लोग सालभर से बैठे हैं.
यहां मिले सुपरवाइजर उमाकांत जेठी ने बताया कि हम लोग सालभर से बैठे हैं. मंदिर कहां बनेगा, यह अभी तक तय नहीं हुआ है. लोकेशन 3 बार बदल गई है. मैटर क्या है, यह तो नहीं पता, लेकिन अब हमें कह रहे हैं कि आपकी मशीन पुरानी हो गई है.
साइट पर ही कंस्ट्रक्शन कंपनी से जुड़े एक अधिकारी मिले. उन्होंने कैमरे के सामने आने से मना कर दिया, लेकिन ऑफ कैमरा बात करने पर मंदिर निर्माण कमेटी पर कई आरोप लगाए. बोला कि हमें पहले 50 लाख रुपए का एडवांस दिया गया था.
हमने मशीन के साथ कंस्ट्रक्शन का मटेरियल गिरा दिया. इसमें कंपनी के करीब 1.5 करोड़ रुपए इंवेस्ट हो गए. पता नहीं किस वजह से निर्माण कार्य अभी तक प्रारम्भ नहीं हुआ. अब वर्ष भर बाद हमसे बोला जा रहा है कि कंपनी बदल रहे हैं, आप एडवांस वापस कर दें.
कैथवलिया में ही हमारी मुलाकात साधु तिवारी से हुई. वो भी मंदिर निर्माण कमेटी के सदस्य हैं. बात करने पर नाराजगी साफ दिखती है. कुछ प्रश्नों के उत्तर साफ देते हैं, कुछ का उत्तर देने से मना कर देते हैं. कहते हैं कि यह सब ललन बाबू और किशोर कुणाल साहब जानेंगे.
यहां बता दें कि इस भव्य मंदिर को बनाने का कॉन्सेप्ट पटना के महावीर मंदिर के सचिव आचार्य किशोर कुणाल का है. मंदिर के लिए भूमि पूजन वर्ष 2012 में हुआ था. इसके लिए क्षेत्रीय लोगों की एक कमेटी बनाई गई. ललन सिंह उसी कमेटी के सचिव हैं.
मंदिर के घोषणा के बाद अभी तक हुए कई बदलाव, इसी से है नाराजगी
मंदिर निर्माण कमेटी में कई सदस्य हैं. हमने कमेटी के सचिव ललन सिंह से भी बात करने की प्रयास की, लेकिन वो कैमरे पर कुछ भी बताने को तैयार नहीं हुए.
साधु तिवारी के अतिरिक्त हमने कई सदस्यों से बात करने की प्रयास की. नाम न बताने की शर्त पर तैयार हुए एक सदस्य ने बताया कि 2012 में मंदिर निर्माण के नाम पर 70-80 एकड़ जमीन लेने की ही बात हुई थी. बाद में प्लान बढ़ाते-बढ़ाते 125 एकड़ जमीन लेने की बात हुई.
यहां के लोगों ने मंदिर के प्लान में भव्यता देखकर धीरे-धीरे 115 एकड़ जमीन मंदिर के नाम कर दी. अब वर्ष भर पहले पता चला कि प्लान बदल गया है. इस वजह से जमीन देने वाले शांत हो गए. अभी भी 10 एकड़ जमीन रजिस्ट्री के लिए बची हुई है. इसमें पूरे क्षेत्र के बीचों-बीच की वो जमीन भी है, जहां मंदिर का गर्भगृह बनना तय हुआ है.
बताया गया कि विराट रामायण मंदिर के निर्माण का नक्शा रोज बदल रहा है. अब तक चार से पांच बार नक्शा बदल गया है. अभी जो नक्शा बनकर आया है, इसमें मंदिर को तीन मंजिला बनाने की बात तो है, लेकिन एरिया कम कर दिया गया है. हमें जानकारी मिली है कि बची हुई जमीन में दूसरे तरह के निर्माण करने की योजना बन गई है, जो पहले से तय नहीं थी.
सबसे पहले जब विराट रामायण मंदिर के निर्माण की बात हुई तो बोला गया कि इसके लिए मिर्जापुर के पत्थर आएगा. एक ट्रक पत्थर भी मंगाया गया, लेकिन बाद में यह बोला गया कि पत्थर काफी दूर से मंगाने पर खर्च अधिक आएगा. इसलिए कॉन्क्रीट से बनाकर बाहर से पत्थर वाला लूक दिया जाएगा.
2012 में भूमि पूजन, 2022 में हुआ शिलान्यास; अब कंस्ट्रक्शन कंपनी बदलने की बात
विराट रामायण मंदिर के लिए वर्ष 2012 में भूमि पूजन किया गया था. जब जमीनें मिल गईं तो वर्ष 2022 में शिलान्यास हुआ, लेकिन अब तक निर्माण कार्य प्रारम्भ नहीं किया जा सका.
इस बीच अब जिस कंस्ट्रक्शन कंपनी एसवीएल को मंदिर निर्माण का काम दिया गया था, उससे काम वापस ले लिया गया है. फिर से टेंडर की प्रक्रिया की जा रही है. चर्चा है कि इस बार टेंडर पीएसपी कंस्ट्रक्शन कंपनी को दिया जा रहा है, जो काशी कॉरिडोर बनाने का काम कर रही है.
यह है मंदिर की खासियत
किशोर कुणाल के मुताबिक इस मंदिर को ‘टेंपल ऑफ टावर्स’ के नाम से जाना जाएगा. इसके आसपास 13 मंदिर बनाए जा रहे हैं और सब ऊंचे शिखर वाले मंदिर हैं. बगल के जो 4 मंदिर हैं, वो 180 फीट ऊंचे हैं.
बीते वर्ष 2022 के मार्च माह में उन्होंने बोला था कि इस वर्ष मार्च के आखिर तक मंदिर बनाने का काम प्रारम्भ हो जाएगा. अगले ढाई वर्ष में स्ट्रक्चर खड़ा हो जाएगा और फिर अगले ढाई वर्ष इसकी फीनिशिंग में लगेंगे. फीनिशिंग के लिए दक्षिण हिंदुस्तान के कलाकारों को बुलाया जाएगा. मंदिर का निर्माण 2024 तक पूरा होगा. मंदिर के निर्माण में लगभग 500 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है.
ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आई जानकारियों पर हमने आचार्य किशोर कुणाल से बात करने की प्रयास की, लेकिन उन्होंने अभी कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया है. किशोर कुणाल ने बताया है कि आज शाम वो कैथवलिया जाएंगे, वहीं मंदिर बनने को लेकर उठ रहे सभी प्रश्नों के उत्तर देंगे.