स्वास्थ्य

खून का राज: क्यों है इन ब्लड ग्रुप्स की जरूरत

शरीर को ठीक ढंग से काम करते रहने के लिए पर्याप्त मात्रा में रक्त की जरूरत होती है. जिन लोगों में खून की कमी होती है उन्हें अक्सर थकान, कमजोरी, चक्कर आने सहित कई अन्य प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं के भी बने रहने का खतरा होता है. हम सभी के शरीर में भिन्न-भिन्न ब्लड ग्रुप वाला खून होता है. इतना ही नहीं सगे भाई-बहनों का ब्लड ग्रुप भी अलग हो सकता है. कभी आपने सोचा, ये ब्लड ग्रुप आखिर होता क्या है? और किन पैमानों पर इसका निर्धारण किया जाता है कि आपका ग्रुप कौन सा है?

इस बारे में समझने से पहले हमें ये जानना महत्वपूर्ण है कि रक्त कितने प्रकार के होते हैं? स्वास्थ्य जानकार बताते हैं- ब्लड ग्रुप आठ भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं. आपका ब्लड ग्रुप कौन सा होगा ये आपके माता-पिता से विरासत में मिले जीन पर निर्भर करता है. अधिकतर लोगों के शरीर में लगभग 4-6 लीटर रक्त होता है और ये रक्त विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बना होता है.

है न मजेदार? जो खून देखने में आपको केवल लाल रंग का नजर आता है, असल में उसके भीतर कई सारे ‘राज’ छिपे होते हैं, आइए इस बारे में विस्तार से समझते हैं? आखिर क्या है ‘खून का राज’


ब्लड ग्रुप्स और उनके कार्य

हमारे खून में कई तरह के सेल्स होते हैं और इनके कार्य भी काफी जरूरी हैं. जैसे रेड ब्लड सेल्स शरीर के विभिन्न ऊतकों तक ऑक्सीजन पहुंचाती हैं, व्हाइट ब्लड सेल्स संक्रमण की स्थिति में रोगजनकों को नष्ट करती हैं. रक्त में उपस्थित प्लेटलेट्स आपके खून को जमने में सहायता करते हैं वहीं प्लाज्मा प्रोटीन से बना एक तरल पदार्थ है.

 


 

ब्लड ग्रुप का निर्धारण

जो चीज आपके रक्त को किसी और के रक्त से अलग बनाती है, वह है प्रोटीन अणुओं का अनूठा संयोजन- जिन्हें एंटीजन और एंटीबॉडी बोला जाता है. एंटीजन लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर होते हैं जबकि एंटीबॉडीज आपके प्लाज्मा में उपस्थित होती हैं. इन्हीं एंटीजन और एंटीबॉडी के आधार पर ही निर्धारित होता है कि आपका ब्लड ग्रुप कौन सा है?

 

  • ब्लड ग्रुप ए में ए एंटीजन और बी एंटीबॉडी.
  • ब्लड ग्रुप बी में बी एंटीजन और ए एंटीबॉडी है.
  • ब्लड ग्रुप एबी में ए और बी एंटीजन हैं लेकिन न तो ए और न ही बी एंटीबॉडी हैं.
  • वहीं ब्लड ग्रुप ओ  में ए या बी एंटीजन तो नहीं होते हैं लेकिन दोनों एंटीबॉडी होते हैं.


क्यों है इन ब्लड ग्रुप्स की जरूरत?

अब प्रश्न उठता है कि इन ग्रुप्स के वबाल में पड़ना क्यों है, आखिर इनकी आवश्यकता ही क्या है? शरीर में खून तो है न बात खतम.

मामला है वर्ष 1901 का जब पहली बार कार्ल लैंडस्टीनर नामक ऑस्ट्रियाई वैज्ञानिक ने ब्लड ग्रुप्स की खोज की थी. इससे पहले, डॉक्टर्स को भी लगता था कि सभी रक्त एक समान होते हैं, हालांकि इस दौरान यदि किसी की ब्लड डोनेट किया जाता था तो ज्यादातर रिसीवर्स की मृत्यु हो जाती. कार्ल लैंडस्टीनर ने फिर पता लगाया कि खून भले ही दिखने में एक जैसे होते हैं पर इनमें बहुत अंतर है.

अगर ए ब्लड ग्रुप वाले को बी ब्लड ग्रुप का रक्त चढ़ा दिया जाए तो इससे लाभ की स्थान कई गंभीर हानि हो सकते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि ट्रांसफ़्यूजन प्राप्त करने वाले आदमी में एंटीबॉडी होते हैं जो ब्लड डोनेट रक्त की कोशिकाओं से मुकाबले में लग जाते हैं और इससे विषाक्त होने का जोखिम रहता है.


ओ ब्लड ग्रुप यूनिवर्सल डोनर

यही कारण है कि जब किसी को खून की आवश्यकता होती है तो उसके ब्लड ग्रुप के मुताबिक ही डोनर्स ढूंढा जाता है. हालांकि इसमें भी एक सहूलियत जरूर है.

वैज्ञानिकों का बोलना है कि जिन लोगों का ब्लड ग्रुप टाइप ओ निगेटिव है, वह आपात स्थिति में या परफेक्ट ब्लड ग्रुप न मिलने की स्थिति में किसी को भी ब्लड डोनेट करके उसकी जान जान बचा सकते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि टाइप ओ निगेटिव रक्त कोशिकाओं में ए, बी या आरएच एंटीजन के प्रति एंटीबॉडी होती ही नहीं है. यही कारण है कि टाइप ओ-निगेटिव वालों को यूनिवर्सल डोनर भी बोला जाता है.

 


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