1998 बम ब्लास्ट के मुस्लिम कैदियों की रिहाई को लेकर चल रही तीखी राजनीतिक बहस
चेन्नई: तमिलनाडु में इस समय लंबे समय से सजा काट रहे मुसलमान कैदियों की रिहाई को लेकर तीखी सियासी बहस चल रही है, जिसमें 1998 के कोयंबटूर बम विस्फोट में गुनेहगार ठहराए गए कैदी भी शामिल हैं। इस टकराव ने सियासी दलों और नागरिकों की ओर से मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न की हैं, जिससे धर्म, सियासी एजेंडा और कैदी कल्याण के बारे में प्रश्न उठने लगे हैं।
राजनीतिक विभाजन:
एआईएडीएमके की रिहाई की मांग: एआईएडीएमके सहित विपक्षी दल उन 36 मुसलमान कैदियों की रिहाई की वकालत कर रहे हैं, जिन्होंने 20 वर्ष से अधिक कारावास की सजा काट ली है। अन्नाद्रमुक नेता, एडप्पादी के पलानीस्वामी ने तर्क दिया कि कैदियों की स्वास्थ्य स्थिति और विस्तारित सजा के कारण उनकी रिहाई महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा कि कई सियासी दलों ने इस कदम का समर्थन किया है।
डीएमके की प्रतिक्रिया: सीएम एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके गवर्नमेंट ने पहले ही कुछ कैदियों को रिहा करने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी है। मद्रास हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन ऑथिनाथन की अध्यक्षता वाली एक समिति ने 224 कैदियों की रिहाई की सिफारिश की, जिनमें से 20 मुसलमान थे। हालांकि, इस पर गवर्नर आरएन रवि की सहमति बाकी है।
द्रमुक का अन्नाद्रमुक पर सवाल: सीएम स्टालिन ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) जैसे मुद्दों पर अपने पिछले रुख को देखते हुए, मुसलमान कैदियों की रिहाई में अन्नाद्रमुक की अचानक रुचि पर प्रश्न उठाया। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि गवर्नमेंट का दृष्टिकोण धार्मिक कारकों से प्रभावित नहीं होना चाहिए और धर्मनिरपेक्ष रुख अपनाने का आग्रह किया।
In February 1998, a bomb blast by Radical Islamic Fundamentalists in a serene city like Coimbatore led to the loss of 58 lives and injured over 200.
The SC last week stuck down the bail application filed by a few convicts in this case & reiterated it as an atrocious act. Despite…
— K.Annamalai (@annamalai_k) October 10, 2023
बीजेपी की आपत्ति: राज्य भाजपा प्रमुख के अन्नामलाई ने आतंकियों की समय से पहले रिहाई के प्रति आगाह करते हुए इस बात पर बल दिया कि आतंकवाद को किसी भी धर्म या समुदाय से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने तमिलनाडु गवर्नमेंट से तर्कसंगत निर्णय की आशा जताई।
जनता का समर्थन और विरोध:
राजनीतिक दलों के अलावा, विभिन्न संगठन, विशेषकर मुसलमान समूह, लंबे समय से कारावास में बंद मुसलमान कैदियों की रिहाई की मांग में शामिल हो गए हैं। विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया है, मनिथानेया जनानायगा काची (एमजेके) ने चेन्नई में एक प्रदर्शन का नेतृत्व किया है।
तमिलनाडु में लंबे समय से कारावास में बंद मुसलमान कैदियों की रिहाई के मामले ने सियासी और सामाजिक बहस छेड़ दी है, जिससे धर्मनिरपेक्षता, कैदी कल्याण और सियासी मांगों के पीछे की प्रेरणा पर प्रश्न उठने लगे हैं। जैसे ही राज्य इन चुनौतियों से निपटता है, उसे मानवीय चिंताओं को संबोधित करने और कानून को बनाए रखने के बीच संतुलन बनाना होगा।