राष्ट्रीय

पीएम के अरुणाचल के दौरे से क्यों बौखलाया चीन

चीन अरुणाचल प्रदेश को हिंदुस्तान का एक राज्य नहीं बल्कि दक्षिण तिब्बत का एक भाग मानता है. हिंदुस्तान उसके इस दावे का खंडन करता है लेकिन चीन अरुणाचल प्रदेश में भारतीय नेताओं की आवाजाही का भी विरोध करता है. लेकिन हिंदुस्तान की तरफ से बार  बार उसे फटकार लगाई जाती रही है और जिसकी बानगी बीते दिन विदेश मंत्रालय की तरफ से दिए गए बयान में भी सामने आई जब साप्ताहिक ब्रीफिंग में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने दो टूक कह दिया कि  चीन अपने निराधार दावों को जितनी बार चाहे दोहरा सकता है. लेकिन उससे स्थिति नहीं बदलेगी. अरुणाचल पर हिंदुस्तान के कड़े रुख से चीन बौखला गया है. दरअसल, केंद्र गवर्नमेंट की ओर से अरुणाचल प्रदेश की किसी भी हाई-प्रोफाइल यात्रा पर बीजिंग नियमित विरोध व्यक्त करता है. यह जुनून एक पैटर्न बन गया है और यह पैटर्न अभी भी कायम है. सीमा मामले को जीवित रखने में बीजिंग का खेल रचा बसा है. इस तनाव को बनाए रखना इसे भू-राजनीतिक प्रासंगिकता प्रदान करता है. क्षेत्र को सामान्य बनाने से इसका महत्व कम हो जाएगा. असली नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर इसके द्वारा की गई झड़पों का कोशिश इसके गुप्त उद्देश्य को दर्शाता है. बीजिंग की विस्तारवादी प्रवृत्ति को समझने के लिए किसी गहन शोध की जरूरत नहीं है. इसकी आधिपत्यवादी कहानी खुलकर सामने आ गई है.

इस ऐतिहासिकता को देखते हुए, पीएम मोदी की अरुणाचल प्रदेश यात्रा और 13,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित सेला सुरंग के उद्घाटन पर चीन की हालिया विरोध शायद ही किसी को आश्चर्यचकित करती है. शब्दों और टिप्पणियों का सामान्य आदान-प्रदान जारी रहता है और सब कुछ हमेशा की तरह चलता रहता है. लेकिन, इस बार चीन की इस नियमित प्रथा को देखते हुए अमेरिका ने बीजिंग के दावे का खंडन किया है और उसके एकतरफा दावों पर अपनी विरोध व्यक्त की है. अमेरिका ने भी अरुणाचल प्रदेश को हिंदुस्तान का अभिन्न अंग स्वीकार कर लिया है. भू-राजनीतिक गियर में यह परिवर्तन क्षेत्र के विमर्श को एक अलग ऊंचाई पर ले जाता है. हालाँकि, जो बात चीन को सबसे अधिक परेशान करती है, वह है हर मौसम के लिए खुली रहने वाली सेला सुरंग का रणनीतिक महत्व. दो प्रतिस्पर्धी पड़ोसियों के बीच किसी भी जरूरी सीमा विवाद की स्थिति में, सेला सुरंग हिंदुस्तान को कारगर मुकाबला पेश करने में सरलता और फायदा देती है. यह सैनिकों को मनोवैज्ञानिक राहत भी प्रदान करता है और उन्हें सर्दियों और संभावित रुकावटों की प्रत्याशा में जलवायु संबंधी बाधाओं और अनावश्यक भंडारण से मुक्त करता है. इसके भू-रणनीतिक महत्व के अलावा, सुरंग का कनेक्टिविटी पहलू भी उतना ही जरूरी है. सेला दर्रे के माध्यम से तवांग तक शीतकालीन कनेक्टिविटी जटिल है. संकरी सड़कें, जो सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण अवरुद्ध होने के संभावित खतरे में थीं, उनमें सरसरी कनेक्टिविटी थी. पूरी तरह कार्यात्मक सेला दर्रा क्षेत्र में हिंदुस्तान की कनेक्टिविटी में सरलता और भू-रणनीतिक महत्व सुनिश्चित करता है. यह चीन को परेशान करता है और हिंदुस्तान को पड़ोस में एक कारगर प्रतिस्पर्धी के रूप में देखता है, जो पूर्वी हिमालय में चीन द्वारा उत्पन्न भू-राजनीतिक गर्मी से लड़ने के लिए जरूरी तैयारी करता है.

सेला सुरंग

सेला सुरंग दुनिया की सबसे लंबी द्वि-लेन सुरंग है, जिसका निर्माण सीमा सड़क संगठन द्वारा 13,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर किया गया है, जिसकी लागत 825 करोड़ रुपये है. इसमें दो सुरंगें शामिल हैं, जिनकी लंबाई क्रमशः 1,595 मीटर और 1,003 मीटर है, साथ ही 8.6 किलोमीटर की पहुंच और लिंक सड़कें भी हैं, इस परियोजना में टी1 और टी2 दोनों ट्यूब हैं. टी2, लंबी ट्यूब, 1,594.90 मीटर तक फैली हुई, 1,584.38 मीटर लंबी एक संकरी, समानांतर सुरंग के साथ है, जिसे गुफा में घुसने की स्थिति में भागने की सुविधा के लिए डिज़ाइन किया गया है. यह विकास असम के मैदानी इलाकों में 4 कोर मुख्यालय से तवांग तक सैनिकों और तोपखाने बंदूकों सहित भारी हथियारों की तेजी से तैनाती सुनिश्चित करता है, जिससे किसी भी इमरजेंसी स्थिति से तुरंत निपटा जा सके.  यह सुरंग अरुणाचल के पश्चिम कामेंग जिले में तवांग और दिरांग के बीच की दूरी को 12 किमी कम कर देगी, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक दिशा में यात्रियों के लिए लगभग 90 मिनट का समय बचेगा. भारी बर्फबारी के कारण सर्दियों के दौरान बीसीटी सड़क को अक्सर सेला दर्रे पर रुकावटों का सामना करना पड़ता है, जिससे सेना और नागरिक यातायात दोनों के लिए जरूरी बाधाएं पैदा होती हैं. एलएसी से चीनी सैनिकों को दिखाई देने वाला सेला दर्रा एक सामरिक हानि पैदा करता है. दर्रे के नीचे से गुजरने वाली सुरंग, इस सेना भेद्यता को कम करने में सहायता करेगी.

अग्नि-5 की रेंज में पूरा चीन

भारत के अग्नि-5 के परीक्षण के बाद चीन में हड़कंप मचा हुआ है. इस परीक्षण के बाद चीन ने माना है कि हिंदुस्तान मिसाइल तकनीक का बड़ा खिलाड़ी बन चुका है. ‘मिशन दिव्यास्त्र’ के परीक्षण के साथ ही हिंदुस्तान उन चुनिंदा राष्ट्रों के समूह में शामिल हो गया है, जिनके पास एमआईआरवी क्षमता है. हिंदुस्तान की बढ़ती प्रतिरोधक क्षमताएं और ढांचागत ताकत चीनी नेतृत्व को गहराई से परेशान कर रही हैं. हालिया प्रतिक्रियाएं उसकी हताशा को प्रकट करती हैं. बीजिंग का इरादा कभी भी हिंदुस्तान को सीमित शक्ति की दहलीज से आगे बढ़ते देखने का नहीं था. तेज़ विकास दर, लोकतंत्र और युवा जनसंख्या एक बैंक योग्य अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी के रूप में हिंदुस्तान के निश्चित उदय के लिए एक सुन्दर मुद्दा बनाते हैं.

भूटान का भरोसा जीतने स्वयं पहुंचे मोदी

पिछले कुछ समय से भूटान और चीन अपने बॉर्डर मामले को 3 स्टेप रोड मैप के जरिए सुलझाने की प्रयास कर रहे हैं. इन दोनों राष्ट्रों के बीच सीमा टकराव का मुद्दा हिंदुस्तान के लिए रणनीतिक नजरिए से बहुत अहम है. भूटान और चीन के बीच डोकलाम पर नियंत्रण एक अहम मुद्दा है. डोकलाम पठार हिंदुस्तान और भूटान की सीमा पर है और इस त्रिकोण का जुड़ाव हिंदुस्तान के सिलिगुड़ी कॉरिडोर से है. यदि यहां चीन का नियंत्रण होता है तो रणनीतिक तौर पर अहम चिकन नेक कॉरिडोर तक चीन की नज़र हो जाएगी. लिहाजा ‘भारत के लिए यह बहुत अहम है. इसलिए बीच चुनावी समर में पीएम मोदी भूटान पहुंच गए. भूटान पहुंचने पर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का ऐसा ग्रैंड वेलकम हुआ जो इससे पहले शायद ही किसी पीएम का हुआ हो. प्रधान मंत्री मोदी की भूटान की हालिया यात्रा प्रभावशाली रही है, और दोनों हिमालयी पड़ोसियों का आत्मविश्वास, साथ ही उनकी स्थायी साझेदारी और निर्भरता, एक मजबूत दक्षिण एशिया के संकेत हैं.

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