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कार-बस की टक्कर! मृतक के परिवार के सदस्यों को 20-20 लाख देने का निर्देश

Car-Bus Crash not Act of God: क्या आप जानते हैं कि ‘एक्ट ऑफ गॉड’ क्या है? यदि नहीं जानते तो आपको भी बॉम्बे उच्च न्यायालय का ये निर्णय पढ़ना चाहिए न्यायालय ने 27 वर्ष पुराने मुद्दे में निर्णय सुनाते हुए साफ किया है कि ‘ऐक्ट ऑफ गॉड’ का अर्थ ऐसी चीज से हो, जो आदमी के कंट्रोल में न हो बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 1997 में एक कार और एसटी बस के बीच आमने-सामने की भिड़न्त को एक्ट ऑफ गॉड मानने से इनकार करते हुए एमएटीसी आदेश को खारिज कर दिया है इसके साथ ही न्यायालय ने बीमा कंपनी और महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) को मुआवजा देने का निर्देश दिया है

बॉम्बे उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने कार-बस की भिड़न्त को एक्ट ऑफ गॉड मानने से इनकार करते हुए कार मालिक राजेश सेजपाल के परिवार के तीन सदस्यों को 20-20 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है कार मालिक राजेश सेजपाल की अपील लंबित रहने के दौरान मौत हो गई थी यह मुआवजा बीमा कंपनी और एमएसआरटीसी को संयुक्त रूप से भुगतान करना होगा

क्या होता है एक्ट ऑफ गॉड?

जस्टिस एएस चंदूरकर और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने 4 अप्रैल को दिए अपने आदेश में ‘एक्ट ऑफ गॉड’ को साफ किया है बेंच ने बोला कि ‘एक्ट ऑफ गॉड’ का मतलब कुछ ऐसा होगा जो मनुष्य के नियंत्रण में नहीं है, लेकिन इस मुद्दे में कोहरे के मौसम और कोहरे जैसी कोई बात नहीं थी कार और एसटी बस की भिड़न्त सड़क के बीच में हुई थी इसलिए, यह ईश्वरीय कृत्य (Act of God) का मुद्दा नहीं हो सकता और न्यायाधिकरण द्वारा लागू उन्मूलन का सिद्धांत गलत है

ट्रिब्यूनल ने माना था एक्ट ऑफ गॉड

14 नवंबर 1997 को मुंबई में एक प्राइवेट कंपनी के अधिकारी राजेश सेजपाल की कार को एसटी कॉर्पोरेशन की बस ने भिड़न्त मार दी थी इसके बाद उपचार के दौरान राजेश की मृत्यु हो गई थी इस मुद्दे में 28 जनवरी 2005 को ट्रिब्यूनल ने अपना निर्णय सुनाया था और मुआवजा देने से इनकार कर दिया था उस समय ट्रिब्यूनल का बोलना था कि हादसे के लिए कोई भी ड्राइवर उत्तरदायी नहीं है, इसलिए यह ‘एक्ट ऑफ गॉड’ है इसके बाद राजेश सेजपाल के परिजनों ने ट्रिव्यूनल के निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी

हाई न्यायालय ने माना दोनों ड्राइवरों की थी गलती

हाई न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, ‘जब दो गाड़ियां एक-दूसरे से टकराती हैं तो यह नहीं बोला जा सकता कि दोनों में से किसी एक ने ढिलाई नहीं की ढिलाई एक या दोनों ड्राइवरों की हो सकती है यह एकदम नहीं बताया जा सकता कि एक्सीडेंट के लिए कोई भी ड्राइवर उत्तरदायी नहीं था इसलिए, यह तर्क दिया गया है ट्रिब्यूनल द्वारा अपनाया गया कदम कायम नहीं रखा जा सकता उच्च न्यायालय न माना है कि यह दोनों ड्राइवर्स की ओर से 50:50 की ढिलाई थी

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