धनु संक्रांति के दिन होती है सूर्य देव नारायण की पूजा, जानें पूजा की विधि और महत्व
16 दिसंबर, शनिवार की शाम को सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेगा। सूर्य के राशि बदलने को सूर्य संक्रांति कहते हैं। इसी पर्व पर तीर्थ स्नान, दान और पूजा का महत्व अधिक होता है। ये कभी मार्गशीर्ष तो कभी पौष महीने में आती है। ये संक्रांति पर्व हेमंत ऋतु में मनाया जाता है।
सूर्य के नारायण रूप की पूजा
धनु संक्रांति के दिन सूर्य देव के नारायण रूप की पूजा करने का बहुत महत्व है। इस दिन सूर्य पूजा करने से उम्र बढ़ती है। इस पर्व पर पवित्र नदियों में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। धनु संक्रांति पर सूर्य नारायण रूप की पूजा होती है। इनकी पूजा से कई गुना पुण्य फल मिलता है।
पूजा विधि
सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं फिर उगते हुए सूर्य को जल चढ़ाएं।
पूजा करें और दिनभर व्रत और दान करने का संकल्प लें।
पीपल और तुलसी को जल चढ़ाएं। इसके बाद गाय को घास-चारा या अन्न खिलाएं।
जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाएं और कपड़े दान कर सकते हैं।
सूर्योदय से दो प्रहर बीतने के पहले यानी दिन में 12 बजे के पहले पितरों की शांति के लिए तर्पण करना चाहिए।
संक्रांति पर्व पर गौ दान का महत्व
धनु संक्रांति पर गौ दान को बहुत ही जरूरी माना जाता है। ग्रंथों के अनुसार इस संक्रांति पर गौ दान से हर तरह के सुख मिलते हैं। पाप समाप्त हो जाते हैं और परेशानियों से भी छुटकारा मिलता है। गौ दान नहीं कर सकते तो गाय के लिए एक या अधिक दिनों का चारा दान करें। इस तरह दान करने से पाप समाप्त हो जाते हैं।
धनु संक्रांति पर्व मनाने वालों को दिनभर ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। पूरे दिन जरुरतमंद लोगों को दान करना चाहिए। प्रयास करना चाहिए इस दिन नमक न खाएं। इस पर्व पर ईश्वर सूर्य, विष्णु और शिवजी की पूजा करनी चाहिए। इनके अतिरिक्त पितृ शांति के लिए तर्पण करने का भी महत्व है।