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Pitru Paksha 2023: श्राद्ध पिंडदान का महातीर्थ है गया,कैसे पहुंचें…

Pitru Paksha 2023, Pitru Paksha 2023 in Gaya: भारतवर्ष के सभी सांस्कृतिक परिक्षेत्रों के साथ-साथ विदेश में रहने वाले हिंदुओं के आगमन से गया पितृपक्ष के दिनों में ‘मिनी हिंदुस्तान’ बन जाता है सचमुच गया में पितृपक्ष का नजारा देखने लायक होता है, जब दिन दशहरा और रात दीपावली की भांति रोशन हुआ करती है भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या का यह समय पितरण कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त माना जाता है

पितरण मुक्ति के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण का शास्त्रोंक्त विधान है

रत्नगर्भा धरती बिहार की राजधानी और ऐतिहासिक नगरी पटना से तकरीबन 100 किलोमीटर दूरी और मोक्ष माया अंत: सलिला फल्गु के पार्श्व में विराजमान गया भारतवर्ष का प्राचीन, ऐतिहासिक और धार्मिक नगरों में अद्वितीय है भारतवर्ष का पांचवाधाम, त्रिस्थली, गयासुर की धरती, पितरेश्वरों का तीर्थ, पिंडदान भूमि, श्रीविष्णु तीर्थ, स्वर्गारोहण का द्वार, शिव और शक्ति की आराध्य भूमि, श्रीभैरव का अष्टप्रधान तीर्थ आदि कितने ही नामों से सुशोभित गया एक युग युगीन नगर है, जहां पुरातन काल से आज तक तरनतारन के नाम पर और पितरण मुक्ति के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण का शास्त्रोंक्त विधान है

संपूर्ण पिंडदान के उपरांत यहीं सुफल दिया जाता है

गया नगर की जीवन रेखा फल्गु प्राचीन सरस्वती के समकालीन मानी जाती है और इस नदी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें जलधारा आंशिक रूप से भरी रहती है अब गर्मी के दिनों में ही नहीं, बल्कि वर्ष के 7-8 महीने यह नदी सूखी रहती है, लेकिन अंदर ही अंदर प्रवाहमान रहती है गया के अक्षयवट को संसार का सबसे पुराने वृक्षों में एक बोला जाता है अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण, महाभारत, आनंद रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों में इस बात के उल्लेख मिलते हैं कि पितरों के कल्याण के लिए इसका रोपण और उद्धार ब्रह्मा जी ने किया गया श्राद्ध की पूर्णाहुति यही होती है और संपूर्ण पिंडदान के उपरांत यहीं सुफल दिया जाता है

गया की प्राचीनता के साफ प्रमाण यहां के तीन प्रधान देवस्थल हैं श्री विष्णु पद में चरण की पूजा, शक्तिपीठ माता मंगला गौरी में मां के पंच पयोधन (स्तन द्वय) और भैरव जगह (रूद्कपाल) मंदिर में भैरव नाथ जी के कपाल की पूजा की जाती है गया में प्रतीक पूजा का यह चर्चित केंद्र आदिकाल से उपास्य क्षेत्र में गण्य हैं

गयाजी तीर्थ अनुष्ठान के जानकार और संवाहक साथ ही गया तीर्थ के मूलनिवासी गयापालों अथवा गयावालों को ब्रह्म कल्पित कहा जाता है, जो प्रजापति ब्रह्मा के मानस पुत्र के रूप में चौदह गौत्रों के साथ मौजूद हुए हैं सामान्य बोलचाल की भाषा में इन्हें पंडा जी बोला जाता है भैरवी चक्र पर अवस्थित गया को प्राचीन काल में आदि गया बोला गया है, जो इसके प्राचीनता का साफ प्रमाण है

पंचकोशी तीर्थ को गया बोला जाता है

गया असुर प्रवर ‘गय’ की धरती है जिस प्रकार महिषासुर के नाम से मैसूर, भद्रासुर से भद्रेश्वर, तंजासुर के नाम से तंजाबूर, जलंधर के नाम से जालंधर प्रकाशित है, ठीक उसी प्रकार गयासुर से गया सूत्र संबंध है विवरण है गया असुर देव प्रवृत्ति से महिमामंडित देव श्रीविष्णु का परम भक्त था असुर वंश में उत्पन्न गया जाति से भले ही असुर था, पर स्वभाव से देवताओं जैसा था माना जाता है कि इसमें राक्षसी रेट के तत्व पूर्णत: गौण हो गये थे धर्मग्रंथों के अनुसार, गयासुर सवा सौ योजन लंबा और साठ योजन चौड़ा था इसके पिता त्रिपुरासुर और माता प्रभावती थीं इसी के नाम पर इस पंचकोशी तीर्थ को गया बोला जाता है

जहां धर्मानुष्ठान संपन्न किया जाता है, उसे पिंडवेदी कहते हैं

इसे गया पितृपक्ष मेले की विशेषता कहिए कि यहां देश-विदेश के राजा महाराजा और चर्चित चरित्र ही नहीं वरन् श्राद्ध पिंडदान के वास्ते देवी-देवताओं का भी आगमन हुआ है आज भी गया में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के गया आगमन के गवाह कितने ही स्थल बने हुए हैं गया में श्राद्ध पिंडदान के क्रम में जहां-जहां धर्मानुष्ठान संपन्न किया जाता है, उसे पिंडवेदी कहते हैं कभी यहां इन वेदियों की संख्या 365 थी, पर समय के साज पर अब 50 के करीब ही शेष बची हैं, जिनमें श्री विष्णुपद, फल्गुजी और अक्षयवट का विशेष मान है

तीर्थों में श्राद्ध पिंडदान जैसे अनुष्ठान किये जाते हैं

ऐसे तो श्रद्धालु अपने समय और सुविधा के मुताबिक गया वर्षों भर आते रहते हैं, लेकिन वर्ष का 15 दिन का समय पितृपक्ष बोला जाता है, जिसका विशेष महत्व होता है भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या का यह समय पितरण कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त माना जाता है इस बार गया पितृपक्ष मेले की शुभ आरंभ 28 सितंबर से हो रही है, जिसकी तैयारी सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर तीव्र गति से चल रही है कई अर्थों में गया के आर्थिक प्रबंध पर भी इस मेले का काफी कुछ असर पड़ता है, जिसे संसार के पुरातन मेलों में एक कहा जाता है राजकीय मेले के रूप में घोषणा होने के बाद गया पितृपक्ष मेले में काफी कुछ परिवर्तन हुआ है ज्ञातव्य है कि भारतवर्ष के कितने ही तीर्थों में श्राद्ध पिंडदान जैसे अनुष्ठान किये जाते हैं, पर पितृपक्ष के दिनों में वृहद् जन समागम से मेला का दृश्य जहां सहज मौजूद जाता है, उसका सौभाग्य केवल गया को ही प्राप्त है

कैसे पहुंचें

आप अपनी सुविधा के मुताबिक रेल मार्ग, सड़क मार्ग और हवाई मार्ग- तीनों से गया जा सकते हैं अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बोधगया से दिल्ली सहित भारतवर्ष के ही नहीं, विदेशी नगरों के लिए भी उड़ान मौजूद हैं नई दिल्ली-हावड़ा ग्रैंड कोड लाइन पर अवस्थित गया रेल यातायात से पूरे राष्ट्र से जुड़ा है

 

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