झारखंड आदिवासी महोत्सव में शिबू सोरेन व सीएम हेमंत का स्वागत किया पाइका नृत्य दलों ने
महोत्सव में मुख्य मेहमान शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का स्वागत पाइका नृत्य दलों ने किया। इसके बाद 50 नगाड़ों के साथ दोनों मेहमानों का स्वागत किया गया। दोनों ने फीता काटकर कार्यक्रम का उद्घाटन। शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन ने कार्यक्रम स्थल पर लगे सभी स्टॉलों का निरीक्षण किया। आदिवासी व्यंजनों के स्टॉल के बारे में भी जानकारी ली।
बस्तर बैंड की प्रस्तुति : लिंगो देव की हुई महिमा
बस्तर बैंड की प्रस्तुति में बस्तर (छत्तीसगढ़) की ध्वनि, संगीत और पारंपरिक अनुष्ठान का समायोजन था। आदिवासी परंपरा के लिंगो देव (जिन्हें लोग संगीत गुरु मानते हैं) की महिमा की गयी। गीत की शैली युवाओं में जोश भरने का काम कर रही थी। ‘लिंगो पाटा’ या लिंगो पेन यानी लिंगो देव के गीत सह गाथा में उनकी ओर से तैयार किये गये विभिन्न वाद्य यंत्रों का वर्णन किया। 20 सदस्यीय दल (जिसमें महिला-पुरुष की भागीदारी समान थी) ने भिन्न-भिन्न वाद्ययंत्र से अपनी प्रस्तुति दी।
पद्मश्री मुकुंद नायक के मर्दानी झूमर पर खूब थिरके लोग
संस्कृति संध्या में पद्मश्री मुकुंद नायक के लोकनृत्य दल कुंजबन ने जोश भर दिया। मांदर, नगाड़ा और तूरतूरी पर कलाकार झूमते हुए मंच पर पहुंचे। पहली प्रस्तुति ऐ रे मोर झारखंड ले लैं जोहार ले… ने लोगों को उत्साहित किया। वहीं, ईश्वर बिरसा मुंडा के आह्वान गीत आजू सपना मोरे कहलैं बिरसा दादा… ने उलगुलान की गाथा का स्मरण कराया। कलाकारों ने मर्दानी झूमर शैली में अपनी प्रस्तुति से मंत्रमुग्ध कर दिया।
हमर मुरली बजइया नहीं आले…
दोपहर बाद सांस्कृतिक आयोजन की आरंभ पार्श्व गायिका मोनिका मुंडू के गीत से हुई। मंच पर आते ही मोनिका ने झारखंडी जोहार से सभी का स्वागत किया। इसके बाद अपने बैंड दल के साथ एक-एक कर नागपुरी और हिंदी गानों की प्रस्तुति दी। हमर मुरली बजइया नहीं आले…, जाई के विदेशिया… और कागज के दो पंख लिये ऊड़ा चला जाये रे…। जैसे गानों पर श्रोताओं ने जमकर तालियां बजायी।
सरायकेला छऊ में मिट्टी के मानव की कहानी
तपन पटनायक के दल ने सरायकेला छऊ शैली में छोटा मुखौटा पहन मिट्टी के मानव की कहानी साझा की। मिट्टी के मानव जो मां, माटी, मनुष्य और जंगल के बीच की जीवन की रसधरा को पेश कर रहे थे। मांदर की थाप पर रंगीन मुखौटा पहने कलाकारों ने अच्छी फसल की आशा में नृत्य पेश की। राजेश बड़ाइक की टीम ने ढोल और बांसुरी बजा मन मोह लिया।
एक मंच पर देशभर के जनजातीय नृत्य की प्रस्तुति
मंच पर थोड़े-थोड़े अंतराल पर राष्ट्र के विभिन्न राज्यों के जनजातीय लोकनृत्य ने लोगों को राष्ट्र की जनजातीय संस्कृति और सभ्यता से परिचय कराया। लोकनृत्य की पहली प्रस्तुति लिये आंध्रप्रदेश की कोया जनजाति के साधक पहुंचे। ढोल की थाप पर कोमकोया नृत्य को पेश किया। नृत्य में कलाकारों ने रेल चलने पर लगने वाली हवा को नृत्य शैली में पेश किया। इसके बाद ओडिशा की पराजो जनजाति के लोगों ने बांसुरी, एक तारा, खड़ताल की धुन पर ‘बरोजा’ लोक नृत्य की प्रस्तुति दी। हाथों में मोर पंख लिये पीले वस्त्रों में बालों में सुर्ख लाल फूल खोंसे महिलाओं के कदमताल और भावों का सरेंडर दिखा। राजस्थान की गरासिया जनजाति के लोगों ने ‘वालर’ नृत्य की प्रस्तुति से परिचय कराया। वहीं, केरल के इडुक्की जिले से आये पालियन जनजाति के लोगों ने इष्ट देव मरियम्मा को समर्पित नृत्य ‘पनिया (पनियार)’ की प्रस्तुति दी। लोकनृत्य में शामिल कलाकारों की पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ तिलगबंदी और चटक रंगों के परिधान सुन्दर नजर आये।