जाने हाई बीपी की इस खतरनाक रेंज के बारे में…
High Blood Pressure causes kidney disease: हाई ब्लड प्रेशर आजकल कॉमन हो गया है। केवल बड़े ही नहीं बच्चों में भी बीपी बढ़ने के मुद्दे देखे जा रहे हैं। हिंदुस्तान में तो 30 प्रतिशत से ज्यादा आबादी, यानि कि हर तीसरा व्यक्ति इस रोग का शिकार हो चुका है। यही वजह है कि जब भी आप किसी भी रोग का उपचार कराने अस्पताल जाते हैं तो सबसे पहले आपका ब्लड प्रेशर नापा जाता है। शायद आपको न पता हो लेकिन हार्ट अटैक से लेकर ब्रेन हेमरेज या ब्रेन स्ट्रोक जैसी रोंगों का कारण बन चुका उच्च रक्तचाप किडनी के लिए और भी ज्यादा खराब है। हाई बीपी की वजह से किडनी फेल्योर के मुद्दे बढ़ रहे हैं। ऐसे में प्राइवेट हो या सरकारी अस्पताल, किडनी डायलिसिस से लेकर ट्रांसप्लांट तक के लिए इनमें रोगियों की लंबी लाइनें लग चुकी हैं और कई-कई वर्ष की वेटिंग चल रही है।
अगर आपको भी हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है और बीपी कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं तो निश्चित मानिए कि आपकी किडनी पर संकट आने वाला है। लेकिन आपको हाई बीपी की इस घातक रेंज के बारे में पता होना बहुत महत्वपूर्ण है। इतना ही नहीं यदि आपका बीपी फ्लक्चुएट करता है, यानि कभी हाई और कभी लो हो जाता है तो यह भी आपकी किडनी की हेल्थ के लिए खराब है।
एम्स में डिपार्टमेंट ऑफ नेफ्रोलॉजी के एचओडी प्रो। दीपांकर भौमिक कहते हैं कि बीपी और किडनी आपस में जुड़े हुए हैं क्योंकि किडनी का एक काम शरीर में ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करना भी है। हिंदुस्तान में 50 प्रतिशत जनसंख्या को हाइपरटेंशन की कठिनाई है। इन लोगों को ब्लड प्रेशर हाई रहता है। यदि बीपी कंट्रोल नहीं होता तो मान लीजिए कि धीरे-धीरे किडनी खराब होने की स्थिति आ सकती है। इसका दूसरा पहलू भी है कि यदि किसी की किडनी खराब होती है तो भी बीपी बढ़ने लगता है। इसलिए बीपी से किडनी खराब होती है और किडनी खराब होने से बीपी बढ़ता है।
ये है बीपी की घातक रेंज
डॉ। भौमिक बताते हैं कि स्वस्थ रक्तचाप के पैरामीटर 80-120 से थोड़ा आगे बढ़कर देखें तो आमतौर पर एडल्ट्स में डायस्टोलिक बीपी अधिकतम 80 और सिस्टोलिक बीपी अधिकतम 130 तक को नॉर्मल बताया जा सकता है, लेकिन जैसे ही इससे आगे 140, 150 या इससे और ऊपर बीपी बढ़ता है तो घातक होता चला जाता है। सिस्टोलिक बीपी का 140 से ऊपर बढ़ने से किडनी पर असर पड़ना प्रारम्भ हो जाता है।
कई केसेज में देखा जाता है कि कुछ लोगों का बीपी कभी बढ़ता है और कभी बिल्कुल घट जाता है। ऐसी स्थिति में डायस्टोलिक बीपी 60-50 तक नीचे चले जाने पर भी कोई दिक्कत नहीं देता लेकिन सिस्टोलिक बीपी यदि 90 से नीचे चला जाए तो कई कठिनाइयां आने लगती हैं। रोगी को उल्टियां होती हैं, चक्कर आते हैं और इसका असर भी किडनी पर पड़ता है। ऐसे में सिस्टोलिक बीपी का 90 की रेंज से नीचे चले जाना भी हानिकारक है।
क्या होता है सिस्टोलिक और डायस्टोलिक बीपी।।
इसमें समझने वाली चीज है कि जब भी बीपी नापते हैं तो दो तरह से बीपी आता है, एक ऊपर वाला, जिसकी रेंज 120 तक होती है, इसे सिस्टोलिक बीपी कहते हैं और दूसरा होता है नीचे वाला, जिसकी रेंज 80 तक होती है, इसे डायस्टोलिक बीपी कहते हैं। सिस्टोलिक बीपी वह होता है जब दिल धड़कता है, औेर दिल घड़कने के बाद जो शांति रहती है, उस हिस्से में नापे गए बीपी को डायस्टोलिक बीपी कहते हैं। किडनी हो या हार्ट सिस्टोलिक बीपी ही बढ़ने पर कठिनाई पैदा करता है।
बार बार चेक कराएं बीपी
डॉ। भौमिक कहते हैं कि यदि आप स्वस्थ भी हैं तो भी अपने बीपी की जांच नियमित रूप से कराते रहें। वहीं यदि आपको बीपी की समस्या है तो आप बीपी की रेंज को बढ़ने मत दीजिए। उसे कंट्रोल करके रखिए। यदि बार-बार आपका बीपी घातक रेंज से ऊपर जाता रहा है तो आपको क्रॉनिक किडनी डिजीज या एक्यूट किडनी डिजीज होने के चांसेज हैं।