बीती रात हुए हादसे में किसी तरह से अपनी जान बचाने वाले दो लोगों ने आपबीती की बयां

घर का चूल्हा जलाने और पेट भरने के लिए लकड़ी बीनने वह जंगल में गया था. उसके साथ पत्नी रीना, मां संतरा, बेटी राजमति और भांजा विमलेश भी थे. सोचा था कि सब लोग मिलकर लकड़ी लाएंगे तो उसे बेचकर अच्छा पैसा भी मिलेगा, जिससे दो-तीन समय के भोजन का व्यवस्था हो जाएगा. क्या पता था कि उसकी दुनिया ही उजड़ जाएगी.
हमने आवाज भी लगाई लेकिन कोई कुछ कहने-सुनने की स्थिति में नहीं था. हम भी बहाव में बहने लगे थे. एक पेड़ को पकड़ने की प्रयास की, लेकिन हाथ में नहीं आया. तीसरे पेड़ की जड़ में फंसने से हम बच पाए. इसके बाद संभले तो देखा कोई भी पास नहीं था.
वहीं रमेश के साथ जंगल में गए मंगरू (35) ने भी हादसे की कहानी बयां करते हुए बोला कि पानी में बहते हुए एक पेड़ के मोटे जड़ को पकड़ने से बच सका. मेरी तो सुध-बुध ही चली गई थी. कुछ समझ ही नहीं आया कि यह क्या हो गया. रमेश की आवाज सुनी तब कुछ हरकत हुई. हम लोगों ने देखा तो हमारे साथ गए अन्य किसी का पता नहीं चल पाया था.
रमेश की तीन संतानें हैं. इसमें सबसे बड़ी बेटी 14 साल की है, जबकि दूसरे नंबर पर राजमति 11 और सबसे छोटा बेटा आठ साल का है. हादसे की समाचार पाकर अन्य दोनों बच्चों का रो-रोकर बुरा हाल था. मां, बहन, दादी और फुफेरे भाई को याद कर दोनों बच्चे बिलख रहे थे. बड़ी बहन छोटे भाई को संभालने में लगी थी.