ईडी को गिरफ्तारी का आधार लिखित में देना होगा: Supreme Court
पीठ ने 20 मार्च को सुनाए गए अपने आदेश में कहा, हमने पुनर्विचार याचिकाओं और संबंधित दस्तावेजों पर गंभीरता से विचार किया. हमें आदेश में ऐसी कोई त्रुटि नहीं मिली, जिसे अस्पष्ट बताया जा सके. न्यायालय के आदेश पर पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं है, इसलिए पुनर्विचार याचिकाएं खारिज की जाती हैं. पीठ ने पुनर्विचार याचिका की सुनवाई खुली न्यायालय में किए जाने का निवेदन भी अस्वीकार कर दिया. केंद्र की अपील को ठुकराते हुए न्यायालय ने साफ किया कि ईडी के ऑफिसरों को पूरी ईमानदारी के साथ ड्यूटी निभानी चाहिए.
ईडी को उच्चतम न्यायालय की फटकार
केंद्र गवर्नमेंट ने उच्चतम न्यायालय के तीन अक्तूबर के उस आदेश की समीक्षा का आग्रह किया था. इसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेशों के साथ-साथ गिरफ्तारी मेमो को भी रद्द कर दिया गया था. साथ ही न्यायालय ने धनशोधन के एक मुद्दे में गुरुग्राम स्थित रियल्टी समूह एम3एम के निदेशकों बसंत बंसल और पंकज बंसल को रिहा करने का निर्देश दिया था. उच्चतम न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय को कड़ी फटकार भी लगाई थी और बोला था कि उससे अपने आचरण में ‘प्रतिशोधात्मक’ होने की आशा नहीं की जाती है और उसे पूरी ईमानदारी एवं निष्पक्षता के साथ काम करना चाहिए. राष्ट्र में धनशोधन के आर्थिक क्राइम को रोकने की मुश्किल जिम्मेदारी वाली जांच एजेंसी होने के नाते प्रवर्तन निदेशालय की हर कार्रवाई ‘पारदर्शी’ और निष्पक्षता के मानकों के अनुरूप होनी चाहिए.
शीर्ष न्यायालय ने बोला था, बिना चूके गिरफ्तारी का लिखित आधार देना होगा
शीर्ष न्यायालय ने अपने निर्णय में बोला था कि साल 2002 के (पीएमएलए) अधिनियम की धारा 50 के अनुसार जारी समन के उत्तर में गवाह का असहयोग उसे धारा 19 के अनुसार अरैस्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा. अरैस्ट आदमी की गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करने के संबंध को धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधान का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने बोला था कि हमारा मानना है कि अब से यह जरूरी होगा कि अरैस्ट आदमी को स्वाभाविक रूप से और बिना चूके गिरफ्तारी के लिखित आधार की एक प्रति दी जाए.