स्वास्थ्य

World Disability Day: जाने क्यों अर्ली स्टेज में बच्चों की डेसेबिलिटी का पता लगाना है जरूरी…

Children With Disabilities: हर वर्ष 3 दिसंबर को यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल डे ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटी (United Nations’ International Day of Persons with Disabilities) माना जाता है इसका मकसद लोगों में विकलांगता को लेकर जागरूकता पैदा करना है आज आपको चाइड डिसेबिलिटी को लेकर अहम बात बताने जा रहे हैं सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 0-6 साल की उम्र के विकलांग बच्चों में, 23% हियरिंग डिसेबिलिटी का सामना करते हैं, 30% में विजुअल इंपेयरमेंट होती है, 10% चलने फिरने की चुनौतियों से जूझते हैं, और 7% में कई तरह विकलांगता होती है हालांकि थोड़ा सर्तक रहा जाए तो अर्ली स्टेज में देखभाल की जाए तो काफी हद तक कठिनाई को कम किया जा सकता है

अर्ली स्टेज में लगाएं डेसेबिलिटी का पता

मशहूर पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट प्रोफेसर डाक्टर शेफाली गुलाटी (Dr. Sheffali Gulati) ने कहा, ‘अगर शुरुआती स्टेज में डिसेबिलिटी का पता चल जाए और समय रहते इस पर कदम उठा लें तो विकलांग बच्चों के जीवन में एक अंतर आ सकता है ये न केवल कॉम्प्लिकेशन को कम करेगा, बल्कि बेहतर प्रतिक्रिया देने सक्षम बनाएगा, पर्सनल डेवलप्मेंट होगा और क्वालिटी ऑफ लाइफ को बेहतर करेगा ठीक समय पर स्क्रीनिंग बच्चों के विकास में मील के पत्थर साबित होगा अंडरप्रिविलेज्ड बैकग्राउंड वाले बच्चों की स्क्रीनिंग समय की आवश्यकता बन गई है

‘इसके अतिरिक्त परिवार के लोगों की जगरूकता और केयर की आवश्यकता है इससे बच्चों को सपोर्ट, शिक्षा और गाइडेंस मिलता हैं हमें ऐसा माहौल तैयार करने की आवश्यकता है जिसमें डिसेबलिटी के बावजूद बच्चे स्वयं को अलग-थलग महसूस न करें बदकिस्मती से, आर्थिक तंगी, अवेरनेस की कमी और मेडिकल केयर की कमी के कारण काफी परिवार अपने बच्चों की सेफटी, समय पर स्क्रीनिंग और पिडियाट्रिक केयर का ख्याल नहीं रख पाते यदि अस्पताल, गवर्नमेंट और एनजीओ के बीच कोलैबोरेशन हो जाए तो ये बात सुनिश्चित की जा सकेगी कि कोई भी स्क्रीनिंग और ट्रीटमेंट से महरूम न रह जाए

बदलाव की है जरूरत
अंडरप्रिविलेज्ड कम्यूनिटीज और परिवार के लोग विकलांग बच्चों के पालन-पोषक को लेकर काफी चुनौतियों का सामना करते हैं पैसों की कमी के अतिरिक्त वो तलाश करते हैं कि आखिर उनको हेल्थकेयर फैसिलिटीज कहां मिलेगी यहां जागरूकता की कमी की वजह से अच्छे मौके हाथ से निकल जाते हैं हालांकि रूटीन चेक-अप और चाइल्ड डेवलप्मेंट को ट्रैक करके हम हालात को बदल सकते हैं

 

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