पेश है सरकार के निवेश बनाम उपभोक्ता उपभोग पर बहस से जुड़े कुछ तथ्य, पढ़ें यह रिपोर्ट
भारत की तीव्र आर्थिक वृद्धि को लेकर सामान्य धारणा यह बनाई जाती है कि इसके प्रमुख वजह गवर्नमेंट का पूंजीगत व्यय है, लेकिन एक हालिया रिपोर्ट इस तरह की बयानबाजी पर प्रश्न उठाती है. साथ ही इससे राष्ट्र में तेजी से बढ़ते उपभोक्ता उपभोग की किरदार भी कमतर आंकी जाती है. पेश है गवर्नमेंट के निवेश बनाम उपभोक्ता उपभोग पर बहस से जुड़े कुछ तथ्य.
अर्थव्यवस्था की रफ्तार
भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है. वित्त साल 2022-23 में इसका जीडीपी सात प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ी. हालांकि, हाल ही में खत्म हुए वित्तीय साल 2023-24 में राष्ट्र की अर्थव्यवस्था और भी तेज गति से बढ़ रही है. पहली तीन तिमाहियों में जीडीपी का विस्तार क्रमशः 8.2%, 8.1% और 8.4% रहा. गवर्नमेंट का अनुमान है कि पूरे साल की वृद्धि रेट 7.6% होगी.
इसकी तुलना में, अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के इस साल बहुत धीमी गति से बढ़ने का अनुमान है. तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, चीन की जीडीपी 4.6%, अमेरिका की 2.1%, फ्रांस की 1%, जापान की 0.9% और यूके की 0.6% बढ़ने की आशा है.
वृद्धि को बढ़ावा देने वाले कारक
आर्थिक विकास के चार इंजनों में से तीन-सार्वजनिक उपभोग, निर्यात और निजी निवेश-के मंद होने के कारण, चौथा इंजन सार्वजनिक निवेश हिंदुस्तान के विकास को शक्ति प्रदान कर रहा है. केंद्र अर्थव्यवस्था को गति देने और निजी निवेश को पुनर्जीवित करने के लिए पूंजीगत व्यय पर बहुत अधिक खर्च कर रहा है.
इसका बजटीय पूंजीगत खर्च वित्त साल 2019 में सकल घरेलू उत्पाद के 1.7% से दोगुना होकर वित्त साल 24-25 में 3.4% हो गया है. इसके अतिरिक्त राज्यों को पूंजीगत व्यय पर अधिक खर्च करने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया है. जानकारों का बोलना है कि इस बड़े पैमाने पर खर्च के कारण सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में तेजी आई है. उनका बोलना है कि निजी निवेश भी फिर से पटरी पर लौटने के संकेत दिखा रहा है.
इस नजरिये से सहमति कितनी
बिल्कुल नहीं, एक हालिया रिपोर्ट में, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा प्रमुख एचएसबीसी का तर्क है कि हिंदुस्तान की मजबूत जीडीपी वृद्धि सार्वजनिक निवेश द्वारा संचालित नहीं है-यह बड़े पैमाने पर पूंजीगत व्यय है. बल्कि, यह उपभोग के कारण है, जिसके बारे में शोध का दावा है कि यह जीडीपी आंकड़ों से कहीं अधिक मजबूत है. इसने इस मामले पर भी यह प्रश्न उठाया कि निजी निवेश में पुनरुद्धार के संकेत मिल रहे हैं.
तर्क का आधार
रिपोर्ट में बोला गया है कि सार्वजनिक खर्च के असर को बढ़ा-चढ़ाकर कहा गया है. जबकि, केंद्र का पूंजीगत व्यय तेजी से बढ़ा है, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा निवेश में गिरावट आई है. कुल मिलाकर, केंद्र और सीपीएसई द्वारा पूंजीगत व्यय वित्त साल 2020 में 4.9% से घटकर वित्त साल 24 में सकल घरेलू उत्पाद का 3.9% हो गया है.
इसमें बोला गया है कि जीडीपी डाटा खपत को कम आंकता है. इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि उपभोक्ता वस्तुओं का आयात पूर्व-महामारी के स्तर से 30% अधिक है, निजी सेवा खपत मजबूत है और आवास कर्ज की तुलना में पर्सनल कर्ज तेजी से बढ़ रहे हैं.
जीडीपी आंकड़ों पर असर
खपत में बढ़ोतरी से जीडीपी वृद्धि नहीं बढ़ेगी. इसके बजाय, जीडीपी डाटा के भविष्य के संशोधनों में निवेश और खपत के बीच फिर से वितरण होगा. यदि ऐसा होता है, तो निवेश और उपभोग के बीच का अंतर अब छह फीसदी अंक से कम होकर दीर्घकालिक औसत के अनुरूप दो फीसदी अंक हो जाएगा.
यह एक बेहतर संतुलन होगा. रिपोर्ट में यह भी बोला गया है कि चीन से आयात की कम लागत और कमोडिटी की कीमतों में नरमी के कारण उच्च खपत ने मुख्य मुद्रास्फीति को गति नहीं दी है.