बिहार

सीट शेयरिंग को लेकर महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी बात रखते हुए मनोज झा

बिहार में महागठबंधन की पार्टियों के बीच तीन महीने से सीट शेयरिंग पर जारी माथापच्ची को तीन मिनट में जाहिर कर दिया गया. इस बार बिहार की 26 सीटों पर राजद, 9 पर कांग्रेस, 3 पर भाकपा माले, जबकि सीपीआई और सीपीएम एक-एक सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

सबसे पहले महागठबंधन की जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस को समझिए

राजद कार्यालय के कर्पूरी बैठक भवन में शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस तो महागठबंधन की थी, लेकिन बस फोटो सेशन तक सीमित रह गई. गठबंधन में शामिल सभी 5 दलों के प्रदेश अध्यक्ष वहां उपस्थित थे, लेकिन किन्हीं को अपनी बात रखने का मौका तक नहीं दिया गया. राजद सांसद मनोज झा ने स्वागत किया, राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने सीट शेयरिंग की घोषणा की. फिर मनोज झा ने समाप्ति की घोषणा भी कर दी. कुल तीन मिनट में प्रेस कॉन्फ्रेंस समाप्त.

 

मैसेज साफ है कि बिहार में महागठबंधन के बॉस लालू प्रसाद यादव ही हैं. विपक्ष की पूरी राजनीति लालू के ईर्द-गिर्द घूमेगी. फॉर्मूला क्या होगा से लेकर घोषणा कब होगी, सब कुछ वही तय करेंगे. यही कारण है कि भाजपा के सभी बड़े कद्दावर नेता भी इस चुनाव में सिर्फ़ लालू यादव या उनके परिवार को निशाना बना रहे हैं.

शेयरिंग का फॉर्मूला ही समझ से परे

पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि लोकसभा में सीट शेयरिंग के लिए मुख्य रूप से दो फॉर्मूले का इस्तेमाल किया जाता है. पहला- पिछली बार पार्टियां कितनी सीटों पर चुनाव लड़ी थी या कितने सीटों पर दूसरे जगह पर रही थी. दूसरा- पार्टियों के पास विधायक कितने हैं. इस हिसाब से 6 विधायक पर एक लोकसभा की सीट निर्धारित की जाती है.

लेकिन महागठबंधन के सीट शेयरिंग में दोनों फॉर्मूले सेट नहीं हो पा रहा है. किस आधार पर राजद का नंबर 19 से 26 हो गया. इसका उत्तर सिर्फ़ लालू प्रसाद यादव के पास ही है. मुद्दा सिर्फ़ इतना ही नहीं है. सीट शेयरिंग की घोषणा से पहले लालू प्रसाद लगभग अपने 10 से अधिक उम्मीदवारों को राजद का सिंबल बांट भी चुके हैं.

लालू के सामने कांग्रेस पार्टी का सरेंडर

वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय कहते हैं कि महागठबंधन में सीट शेयरिंग से साफ है कि राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस पार्टी ने बिहार में लालू प्रसाद यादव के सामने पूरी तरह सरेंडर कर दिया है. कांग्रेस पार्टी को भले 9 सीटें मिली हों, लेकिन इसके बदले में उन्हें झारखंड की एक सीट गंवानी पड़ी है (घोषणा बाकी है). इसके साथ ही इस बार उनकी 4 ऐसी सीटें बदल दी गई हैं, जहां से कांग्रेस पार्टी लगातार चुनाव लड़ते रही हैं. इनमें पूर्णिया, सुपौल, मुंगेर और वाल्मीकि नगर जैसी सीटें शामिल हैं. औरंगाबाद भी कांग्रेस पार्टी के खाते में नहीं आई.

पप्पू यादव को पूर्णिया में पास नहीं होने देना चाहते हैं लालू

पप्पू यादव पूर्णिया से चुनाव लड़ना चाहते हैं. इसके लिए वे वहां पिछले एक वर्ष से मेहनत कर रहे हैं. इसकी चाहत में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय तक कांग्रेस पार्टी में करवा चुके है. ये लालू प्रसाद यादव भी जानते हैं कि पूर्णिया में जदयू के विरुद्ध पप्पू यादव एक मजबूत उम्मीदवार हो सकते हैं. इसके बाद भी लालू प्रसाद यादव ने ना सिर्फ़ वहां से उनका टिकट काटा, बल्कि वो सीट ही कांग्रेस पार्टी को नहीं दी. इतना ही नहीं बिना सीट शेयरिंग की घोषणा के वहां जदयू से राजद में शामिल हुई बीमा भारती को आरजेडी का सिंबल भी दे दिया.

पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि लालू यादव किसी भी सूरत में पप्पू यादव काे पूर्णिया में प्रभावशाली नहीं होने देना चाहेंगे.

पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि लालू यादव किसी भी सूरत में पप्पू यादव काे पूर्णिया में प्रभावशाली नहीं होने देना चाहेंगे. यदि पप्पू वहां से जीतते हैं तो बिहार में कांग्रेस पार्टी को एक मजबूत चेहरा भी मिलेगा. लालू जानते हैं कि पप्पू यादव का मजबूत होना तेजस्वी यादव के लिए ठीक नहीं होगा. यही कारण है कि लालू यादव चुनाव से पहले पप्पू का पर कतर दिए हैं.

हालांकि, सीट शेयरिंग से पहले मधेपुरा सीट से उन्हें चुनाव लड़ने का ऑफर दिया गया था. लेकिन पप्पू यादव ने इसे ठुकरा दिया. अब लालू ने कांग्रेस पार्टी से मधेपुरा के साथ सुपौल की सीट भी ले ली. यानी कि पप्पू यादव के संभावित सभी सीटों को वे अपने पास ले लिए. अब ये कांग्रेस पार्टी को तय करना है कि वे किस तरह पप्पू यादव को सेट करेंगे.

 

1. लोकसभा के बहाने विधानसभा साधने की तैयारी

वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार पांडेय कहते हैं कि इस लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है. ये वो भी जानते हैं. वो पहले से ही शून्य पर हैं. यदि एक भी सीट जीतते हैं तो वो उनके लिए बढ़त होगा. लेकिन उनका निशाना अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव पर है. वो हर हाल में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं. यही कारण है कि इस बार सीट शेयरिंग से लेकर कैंडिडेट सिलेक्शन तक सब कुछ वे अपने हिसाब से कर रहे हैं.

यही कारण है कि लालू इस बार उन सीटों पर भी कैंडिडेट उतार रहे हैं, जहां से राजद आज तक एक भी चुनाव नहीं जीती है. वे इस प्रयोग के माध्यम से अपनी ताकत समझना चाहते हैं. ताकि उन्हें विधानसभा चुनाव में ठीक कॉम्बिनेशन बनाने में सहूलियत हो सके. वे सहयोगियों से अधिक अपना नफा-नुकसान देख रहे हैं.

2. नया सामाजिक समीकरण गढ़ने की कोशिश

लालू प्रसाद यादव ने मुंगेर से अशोक महतो की पत्नी अनीता देवी और औरंगाबाद में जदयू से आरजेडी में शामिल हुए अभय कुशवाहा को टिकट देकर एक बार सबको चौंकाया है. इतना ही नहीं यादव डॉमिनेटिंग नवादा लोकसभा सीट पर उन्होंने श्रवण कुशवाहा को उम्मीदवार बनाकर भी सभी को दंग किया है. पूर्णिया में पप्पू यादव की स्थान बीमा भारती को उम्मीदवार बनाना उनका मास्टर स्ट्रोक बताया जा रहा है.

ये सारी वो सीटें हैं, जहां लालू यादव परंपरा से हटकर नयी जातीय समीकरण तैयार करने की प्रयास कर रहे हैं. यहां से अब तक सवर्ण वर्सेज सवर्ण के बीच मुकाबला होते रहा है. या सवर्ण के विरुद्ध यादव को मैदान में उतारा जाता रहा है. पहली बार कुशवाहा को उतारने की प्रयास की गई है.

3. अगड़ा बनाम पिछड़ा करने की कोशिश, कुशवाहा राजनीति को बढ़ावा

3 मार्च को पटना में आयोजित जन विश्वास रैली में ही लालू प्रसाद यादव ने अपनी मंशा जाहिर कर दी थी. उन्होंने साफ कर दिया था कि वो अपने पुराने फॉर्मूले पर ही लौटेंगे. तेजस्वी के A to Z की स्थान वो अपने MY के समीकरण को ही मजबूती से आगे बढ़ाएंगे.

जाति आधारित गणना की रिपोर्ट आने के बाद लालू प्रसाद यादव ने इस कॉम्बिनेशन को मजबूती से पकड़ा है. एनडीए भले ही बड़े-बड़े कुशवाहा नेताओं को अपने पाले में लिया हो, लेकिन उन्होंने एक-एक कर कुशवाहा नेताओं पर दांव लगाना प्रारम्भ कर दिया है. यही कारण है कि नवादा और औरंगाबाद जैसे सवर्ण बहुल क्षेत्र में उन्होंने राजपूत और भूमिहार के मुकाबले कुशवाहा को टिकट दिया है. कुशवाहा के बाद उन्होंने अपने कोर वोट बैंक यादव को भी साधने की प्रयास की है.

 

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