बिहार

बिहार में लोकसभा चुनाव के दूसरे फेज में 5 सीटों पर 26 अप्रैल को वोटिंग

बिहार में लोकसभा चुनाव के दूसरे फेज में 5 सीटों पर 26 अप्रैल को वोटिंग होनी है. इनमें से तीन सीटें-किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया सीमांचल में आती हैं, जो मुसलमान बहुल हैं. भागलपुर और बांका अंग क्षेत्र की सीटें हैं. इन सीटों पर हवा का रुख किधर है? कौन मजबूत स्थिति में है? कौन किस पर क्यों भारी है? यह जानने के लिए मीडिया की टीम ने पांचों सीटों पर आम लोगों, वरिष्ठ पत्रकार और पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स से बात की.

इस वार्ता में इन पांचों सीटों का माहौल समझने की प्रयास की. इन पांचों सीट में से एनडीए के पक्ष में 1 और इण्डिया ब्लाॅक को 3 (कांग्रेस-2, आरजेडी-1) सीटें जा सकती हैं.

भागलपुर में जेडीयू तो किशनगंज से कांग्रेस पार्टी के सांसद रिपीट होने की आसार है. बांका और कटिहार में परिवर्तन हो सकता है. सबसे अधिक रोचक मुद्दा पूर्णिया सीट पर है. यहां पर जेडीयू और आरजेडी प्रत्याशी पर निर्दलीय भारी पड़ रहे हैं.

बता दें कि 2019 के चुनाव में पांच सीटों में से एक कांग्रेस पार्टी किशनगंज सीट जीती थी, जबकि चारों सीटों पर एनडीए से जेडीयू प्रत्याशी जीते थे.

1- किशनंगज सीट: 68% मुसलमान जनसंख्या वाले लोकसभा में कांग्रेस पार्टी सब पर भारी

इस बार किशनगंज में त्रिकोणीय मुकाबला है. हालांकि कांग्रेस पार्टी यहां पर भारी पड़ रही है. 68 प्रतिशत मुसलमान जनसंख्या वाले इस लोकसभा क्षेत्र में मुख्य मुकाबला कांग्रेस पार्टी के सीटिंग सांसद जावेद आजाद, जेडीयू से मास्टर मुजाहिद और AIMIM से अख्तरुल ईमाम के बीच है. तीनों यही साबित करने में जुटे हैं कि मुसलमान के सबसे बड़े हितैषी हम हैं. इन तीनों प्रत्याशियों में जो यहां मुस्लिमों को साध लेगा, उसकी जीत तय है.

किशनगंज की गलियों में घूमने के बाद ये मालूम होता है कि तीन मजबूत दावेदार भले मैदान में हों, लेकिन मुख्य मुकाबला AIMIM और कांग्रेस पार्टी के बीच ही है. जदयू के कैंडिडेट को बीजेपी का सपोर्ट होने से काफी हानि होता हुआ दिख रहा है. एक्सपर्ट, व्यापारी और आम लोगों से बात करने के बाद ये पता चलता है कि जीत-हार का अंतर भले कम हो, लेकिन कांग्रेस पार्टी यहां से जीत का चौका लगा सकती है. इसके चार कारण हैं.

किशनगंज में कांग्रेस पार्टी का कैडर वोट का मिल रहा लाभ

बिहार के अन्य इलाकों में घूमने पर लोग मोदी मोदी की बात करते हैं, लेकिन यहां कि फिजा से मोदी लगभग पूरी तरह गायब हैं. यहां लोग मोदी को हटाने और राहुल को पीएम बनाने की बात करते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है कांग्रेस पार्टी का कैडर वोट. 50 वर्ष के ऊपर के लोग कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध कुछ भी सुनने को राजी नहीं होते हैं.

किशनगंज में चुनाव का मामला पूछने पर 55 वर्षीय जमालुद्दीन कहते हैं कि राहुल गांधी का मेनिफेस्टो लोगों तक पहुंच रहा है. इसका जबरदस्त असर पड़ेगा. बहादुरगंज के इस्लामुद्दीन कहते हैं कि मामला क्या है. हम लोग कांग्रेस पार्टी को वोट देते आए हैं और देंगे. राष्ट्र के आजाद होने के बाद से राष्ट्र को कांग्रेस पार्टी संभाल रही है. इसलिए वोट देंगे. कांग्रेस पार्टी को वोट देने वाले लोगों के पास एक ही तर्क है कि वे कांग्रेस पार्टी को देते आए हैं इसलिए देंगे. ऐसे ही वोटर्स किशनगंज में कांग्रेस पार्टी की ताकत हैं.

हिंदू वोटर्स का भी कांग्रेस पार्टी को मिल रहा है सपोर्ट

किशनगंज के ग्रामीण इलाकों में हमारी मुलाकात कामदेव यादव से हुई. वे कहते हैं कांग्रेस पार्टी फाइनल है. कोई योजना का फायदा नहीं मिल रहा है. ओवैसी जी तो भाजपा के एजेंट हैं तो उनका क्या ही होगा. जबकि किशनगंज के व्यापारी का मानना है कि कांग्रेस पार्टी के होने से यहां शांति रहेगी.

बीजेपी के पास इतना समर्थन नहीं है कि वे जीत पाएं. किशनगंज में 50 वर्ष से कपड़े का कारोबार करने वाले कन्या लाल शर्मा कहते हैं कि यहां सिर्फ़ कांग्रेस पार्टी ही मामला है, इसके अतिरिक्त कुछ नहीं. क्योंकि यहां 80 वर्सेज 20 की जंग है. इसके आगे आप स्वयं समझ लीजिए. बाजार के लगभग व्यापारी इसी तरह की ही बात करते हुए मिलते हैं.

आंकड़ों में अख्तरुल मजबूत, भरोसे में पिछड़ रहे

किशनगंज में कांग्रेस पार्टी के बाद सबसे अधिक चर्चा AIMIM के कैंडिडेट और प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान की है. बहादुरगंज के मो हबीब कहते हैं AIMIM भी ठीक है. पिछली बार इसके 5 विधायक जीते थे, इनमें 4 राजद में शामिल हो गए. एक अख्तरुल इमान बचे हैं. वे भी सांसद का चुनाव लड़ रहे हैं. देखते हैं इनका क्या होता है. लोग परिवर्तन की भी बात करते मिलते हैं, लेकिन AIMIM पर खुलकर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं.

अगर आंकड़े की बात करें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अख्तरुल किशनगंज से लड़े थे. विनिंग कैंडिडेट कांग्रेस पार्टी के जावेद आजाद को मात्र 72 हजार कम वोट मिले थे. 26.8% वोट के साथ अख्तरुल तीसरे नंबर रहे थे. इसके बाद 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में किशनगंज के 6 सीटों में से 4 पर पार्टी ने कब्जा जमाया था. हालांकि, बाद में एक अखतरुल को छोड़ सभी राजद में शामिल हो गए थे. यही कारण है कि जनता इन पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर पा रही है.

मुजाहिद की छवि अच्छी, लेकिन बीजेपी से नुकसान

जदयू के मास्टर मुजाहिद दो बार किशनगंज के कोचाधामन विधानसभा से विधायक रह चुके हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव में तो अख्तरुल ईमान को हराकर ही वे विधानसभा पहुंचे थे. इस बार दोनों लोकसभा चुनाव में आमने- सामने हैं. कोचाधामन में इनकी छवि एक आसान और मददगार नेता की है. मोदी के नाम पर हिंदू जनसंख्या इन्हें वोट भी कर रही है, लेकिन मुसलमान बहुल लोकसभा क्षेत्र में बीजेपी के कारण इन्हें हानि भी हो रहा हैै.

किशनगंज किसका, ये हत्या की रात को तय होता है

चुनाव के दौरान किशनगंज में एक शब्द जिसकी सबसे अधिक चर्चा होती है, वो है-कत्ल की रात. लोग कहते हैं कि किशनगंज किसका होगा, ये चुनाव से पहले की रात तय होता है. हर क्षेत्र में चुनाव से पहले एक सभा की जाती है. यहां आपसी सहमति से तय किया जाता है कि मुसलमान इस बार किस पार्टी के उम्मीदवार को जीता रहे हैं और क्यों? इसी के आधार पर सभी मुसलमान वोट करते हैं. हालांकि, कोई ऑन कैमरा इस बात को बोलने के लिए राजी नहीं हुए.

2- पूर्णिया सीट: त्रिकोणीय मुकाबला, पप्पू यादव अधिक मजबूत

पूर्णिया सीट पर निर्दलीय पप्पू यादव ने मुकाबला दिलचस्प कर दिया है. वह दो बार निर्दलीय और एक बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर यहीं से सांसद रहे हैं. इस चुनाव में भी वह जेडीयू सांसद संतोष कुशवाहा और आरजेडी प्रत्याशी बीमा भारती पर भारी पड़ रहे हैं. इसकी तीन प्रमुख वजह है.

पहला- लालू का यहां एमवाई समीकरण आरजेडी से अधिक पप्पू यादव के साथ है. दूसरा- पप्पू यादव यहां से एक वर्ष से तैयारी कर रहे हैं, उन्होंने कई कार्यक्रम पूर्णिया में किए. जबकि टिकट मिलने के बाद जेडीयू और आरजेडी उम्मीदवार एक्टिव हुए. तीसरा- पप्पू यादव के साथ सिंपैथी वोट का होना. कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के बाद लालू की वजह से टिकट न मिल पाना. इसको पप्पू यादव खूब भुना रहे हैं. वो बताने में लगे हैं कि लालू परिवार के अतिरिक्त दूसरे यादव की भी नहीं सोचते.

   

पूर्णिया के मीडिया के ब्यूरो चीफ मनोहर कुमार कहते हैं, ‘पूर्णिया में MY का समीकरण प्रारम्भ से RJD के साथ रहा है. 4 लाख 87 हजार मुसलमान और 1 लाख 27 हजार यादव वोटर हैं. बाकी 12 लाख वोटर्स में पिछड़ा, अति पिछड़ा, वैश्य जैसी जातियां हैं. पप्पू यादव और बीमा भारती दोनों का वोट बैंक MY समीकरण है. पप्पू यादव के साथ एडवांटेज है कि टिकट न मिलने की वजह से लोगों में उनके प्रति सहानुभूति के साथ आक्रोश भी है, लेकिन वो वोट में कितना परिवर्तित होगा, ये आने वाला समय बताएगा.

आरजेडी अपने वोट बैंक को संभालने और पप्पू यादव को हराने के लिए रात दिन एक किए हुए हैं. पूर्णिया में दो दिन से स्वयं तेजस्वी यादव कैंप कर किए हुए हैं. आरजेडी के 40 विधायक मोर्चा संभाले हुए हैं. तेजस्वी को सभाओं में विरोध का सामना करना पड़ रहा है. वहां पप्पू यादव जिंदाबाद के नारे लग रहे हैं.

आप तेजस्वी के इस भाषण से अंदाजा लगा सकते हैं-

“आप लोग किसी धोखे में नहीं आइए. यह चुनाव किसी एक आदमी का चुनाव नहीं है. यह एनडीए और इण्डिया गठबंधन की लड़ाई है. या तो इण्डिया को चुनिए, बीमा भारती को वोट करिए और यदि इण्डिया को नहीं चुन सकते, बीमा भारती को वोट नहीं दे सकते तो फिर एनडीए को चुन लीजिए. साफ बात है.

3- कटिहार: कटिहार में कांटे की टक्कर, जाति-धर्म का समीकरण कांग्रेस पार्टी प्रत्याशी के साथ
कटिहार लोकसभा सीट पर इस बार जंग काफी दिलचस्प है. एनडीए के यहां से जेडीयू सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी को इण्डिया ब्लाॅक से 5 बार सांसद रहे तारिक अनवर कांटे की भिड़न्त दे रहे हैं.

एक्सपर्ट के अनुसार एनडीए राम मंदिर, एनआरसी, सीएए, ट्रिपल तलाक और धारा 370 से लीड करना चाहती है. वह वोटों के ध्रुवीकरण को लेकर सीमांचल में घुसपैठ का मामला भी उठा रही है. इसके उत्तर में इण्डिया ब्लाॅक का हर वर्ग एकजुट होकर मुसलमान और यादव वोटों को सहेजने में जुटा है. दोनों दलों के कैंडिडेट्स के बीच भिड़न्त कांटे की है, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में जब मोदी की लहर थी तब एनडीए से जेडीयू कैंडिडेट दुलाल चंद्र गोस्वामी महज 57 हजार वोटों से जीत दर्ज करा पाए थे.

मुस्लिम-यादव और निषाद वोटों की वजह से कांग्रेस पार्टी के तारिक अनवर भारी पड़ रहे हैं. चुनाव के ऐनवक्त पर वीआईपी के मुकेश सहनी के आने की वजह से कटिहार में ढाई लाख निषाद वोट का एक बड़ा हिस्सा तारिक की तरफ शिफ्ट हो सकता है.

पॉलिटिकल एक्सपर्ट लव कुमार मिश्रा बताते हैं कटिहार लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं, सीमांचल का यह एक जरूरी क्षेत्र है. यहां 41 फीसदी वोटर्स मुसलमान और 12 फीसदी यादव हैं. यदि लालू प्रसाद यादव पूरी निष्ठा से कांग्रेस पार्टी के तारिक अनवर की सहायता कर दें तो वे भाजपा से जेडीयू में गए दुलाल चंद्र गोस्वामी को पराजित कर सकते हैं. क्योंकि यहां मुसलमान वोट का ध्रुवीकरण नहीं हो पाता है. यहां हिंदू-मुस्लिम कार्ड इसीलिए ही होता है जिससे एनडीए को लाभ मिल जाए. इस बार भी ऐसा ही हो रहा है, जिसका फायदा एनडीए के कैंडिडेट दुलाल चंद्र गोस्वामी को मिल सकता है.

अब लालू की ताकत पर तारिक अनवर की जीत का पूरा ग्राफ डिपेंड है. इसलिए भी बोला जा सकता है कि मुकाबला कांटे वाला है. तारिक अनवर भी एमवाई समीकरण पर काम कर रहे हैं. वह कटिहार लोकसभा क्षेत्र से वर्ष 1980, 1984, 1996 और 1998 में लगातार जीत दर्ज कर चुके हैं. इससे उनकी पकड़ भी क्षेत्र में कम नहीं है. दुलाल चंद्र गोस्वामी को 2019 में मोदी लहर का लाभ मिला था. अब 2024 में दोनों कैंडिडेट्स आमने सामने कड़ी भिड़न्त में हैं.

अगर पॉलिटिकल मजबूती की बात करें तो कटिहार की 6 विधानसभा सीटों में कदवा और मनिहारी पर कांग्रेस पार्टी के विधायक हैं. बलरामपुर विधानसभा सीट भाकपा माले के पास है. वहीं बरारी में जेडीयू के विधायक हैं. एनडीए मोदी के चेहरे के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम पर अत्यंत पिछड़े और मुसलमान समुदाय के वोटों को साधने की प्रयास की है.

एक्सपर्ट बाला जी मिश्रा मानते हैं, कटिहार लोकसभा सीट काफी समय तक कांग्रेस पार्टी के कब्जे में रही है. इस बार मुकाबला कड़ा दिख रहा है, क्योंकि दुलाल चंद्र गोस्वामी से वोटर्स नाराज भी चल रहे हैं. ऐसे में मोदी के चेहरे वाला फैक्टर ही अधिक काम आएगा. एनडीए को भी पता है कि कटिहार में हिंदू और पिछड़ी कार्ड से चुनाव में जंग सरल होगी, इसलिए वह इस फैक्टर पर पूरी तरह से लगी है. मोदी और शाह के साथ नीतीश की सभा के बाद चुनावी हवा का रुख कुछ बदला भी है.

4- भागलपुर सीट: पहली बार अजय को चुनौती, फिर भी जाति-मोदी फैक्टर से भारी

सिल्क सिटी में जेडीयू के सांसद अजय मंडल और कांग्रेस पार्टी के विधायक अजीत शर्मा के बीच भिड़ंत है. अजय मंडल की जाति गंगोता का वोट बैंक उनकी ताकत है. दूसरा फैक्टर मोदी हैं, जिसकी वजह से दूसरी पिछड़ी जातियों का उन्हें सपोर्ट है. यही वजह है कि वह बढ़त बनाए हुए हैं.

अजीत शर्मा भूमिहार जाति से आते हैं पर उनकी ताकत उनकी जाति के वोट बैंक से अधिक लालू प्रसाद की जाति यादव और मुस्लिम का वोट बैंक है. भागलपुर में वैश्यों और दलितों का वोट यह डिसाइड करेगा कि जेडीयू के अजय मंडल फिर से सांसद बनेंगे या कांग्रेस पार्टी के अजीत शर्मा गंठबंधन इण्डिया का झंडा लहराएंगे. बिहपुर से भाजपा विधायक शैलेश मंडल और गोपाल मंडल पर भी सभी की नजर है कि वे कितना वोट अजय मंडल को दिलवा पाते हैं.

अजय मंडल के बारे में एक बार अधिक निगेटिव है. आम लोग कम्पलेन करते हैं कि एमपी बनने के बाद वे झांकने नहीं आए. लेकिन जो राम मंदिर को बड़ा मामला मानने वाले लोग हैं वे आखिरी समय में एनडीए के प्रत्याशी अजय मंडल को ही वोट कर आएंगे, वे लालू प्रसाद या कांग्रेस पार्टी को मजबूत नहीं करेंगे. ऐसे लोग वैश्यों में सर्वाधिक हैं.

प्रोफेसर और वरिष्ठ लेखक योगेन्द्र कहते हैं कि भागलपुर में भिड़न्त जबर्दस्त है. अजीत शर्मा भाजपा से भूमिहारों का वोट अपनी तरफ ले रहे हैं. मुसलमानों और यादवों का वोट भी शर्मा को ही मिल रहा है. अजय मंडल के साथ भाजपा और जेडीयू का वोट है. लेकिन पिछली बार की तरह अजय मंडल के लिए जीत सरल नहीं है. विक्रमशिला यूनिवर्सिटी आज तक सामने नहीं आ पाया.

भागलपुर में सालों बाद कांग्रेस पार्टी की तरफ से कोई सवर्ण उम्मीदवार मैदान में है और शक्तिशाली स्थिति में है. लेकिन यह पूरा क्षेत्र ओबीसी वोट बैंक का है. कांग्रेस पार्टी ने भूमिहार को टिकट कुछ खास कारणों से दिया है. पहली बात यह कि अजीत शर्मा धन-बल से मजबूत हैं, दूसरी बात कि अजीत शर्मा को महागठबंधन की वजह से यादवों और मुसलमानों का बड़ा वोट मिल जाएगा. राहुल गांधी ने भी इस सीट की अहमियत को समझा और तेजस्वी के साथ भागलपुर में सभा को संबोधित किया है. अजीत शर्मा अपनी बेटी अदाकारा नेहा शर्मा के साथ रोड शो भी कर रहे हैं. इसका असर भी पड़ रहा है.

अंग क्षेत्र में नीतीश कुमार फैक्टर नहीं दिखते जबकि इन्होंने बिहार में विकास का काफी काम किया है. जॉब के प्रश्न पर लोग तेजस्वी के नाम की चर्चा करते हैं और राष्ट्रवाद के नाम पर नरेन्द्र मोदी की. इस सब पर जाति भारी है. अजीत शर्मा मन से चुनाव लड़ रहे है, खर्च कर रहे हैं. कांग्रेस पार्टी के अंदर काफी खींचातन के बावजूद वे अपना टिकट ले आए थे.

5- बांका सीट: इस बार कांटे की टक्कर, मौजूदा सांसद की अनदेखी से जयप्रकाश को फायदा

बांका की चुनावी जंग कांटों वाली है. जाति के हिसाब से भिड़न्त एक यादव की दूसरे यादव से है. चुनाव में एक तरफ जदयू के उम्मीदवार गिरधारी यादव हैं, जो वर्तमान सांसद भी हैं. तो दूसरी तरफ राजद के उम्मीवार जयप्रकाश नारायण यादव हैं. ये बांका के पूर्व सांसद हैं. यहां से 2014 में चुनाव जीत थे.

बात है हवा के रुख की तो बांका के भिन्न-भिन्न इलाकों की जनता और राजनीति के जानकार के दावे के हिसाब से वर्तमान समय में राजद के उम्मीदवार जयप्रकाश नारायण यादव रेस में आगे हैं. अभी हवा का रुख इनकी ओर ही है.

बांका संसदीय क्षेत्र में कुल वोटर्स की संख्या 15 लाख के करीब है. यहां यादवों की संख्या सबसे अधिक है. करीब 3 लाख यादव वोटर्स हैं. दूसरे नंबर पर करीब 2 लाख 80 हजार वोटर्स के साथ सवर्ण हैं. जबकि, तीसरे नंबर पर 2.50 लाख वोटर्स के साथ मुस्लिम हैं. फिर वैश्य वोटर्स की संख्या 1.80 लाख हैं. इनके बाद कुशवाहा की संख्या 1.30 लाख, कुर्मी और धानुक को मिलाकर 1.30 लाख वोटर्स हैं. वहीं, दलित और महादलित वोटर्स की संख्या 1 लाख 25 हजार है. इसमें 60 हजार पासवान तो 65 हजार वोटर्स आदिवासी हैं.

बांका में गांधी चौक से पुल की ओर बढ़ने पर दाहिने तरफ राजेंद्र रजक की ड्राइक्लीन की दुकान है. मीडिया टीम ने जब इनसे पूछा कि बांका का वर्तमान सियासी माहौल क्या है? जनता किसे वोट करेगी? इस पर बेबाक ढंग से राजेंद्र रजक कहते हैं कि जो काम करेगा, उसे वोट दिया जाएगा. जो काम नहीं करेगा, उसे वोट नहीं दिया जाएगा. बांका टाउन या इसके आसपास के क्षेत्र में पिछले 5 वर्षों में कोई काम हुआ ही नहीं. सांसद गिरधारी यादव ने कोई काम करके नहीं दिखाया. इस कारण राजद के जयप्रकाश नारायण का पलड़ा भारी है.

बांका की राजनीति को जानने वाले बिदुर शेखर कहते हैं-’ वैसे बांका की जनता का मूड साफ पता चल रहा है कि राजद उम्मीदवार जयप्रकाश नारायण यादव अभी तक में बढ़त बनाए हुए हैं. हालांकि, चुनाव के अंतिम समय में यहां करवट बदल भी जाता है.

सवाल है कि जयप्रकाश यादव के पक्ष में जनता का मूड क्यों है? इस पर वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि वर्तमान सांसद गिरधारी यादव को लेकर मतदाताओं में आक्रोश है. पिछले चुनाव में लोगों ने NDA को इस विश्वास के साथ वोट दिया था. कि नरेंद्र मोदी हैं तो बांका का विकास होगा. लेकिन, जनता के विश्वास पर सांसद उतर नहीं पाए. केंद्र गवर्नमेंट भी जनता की उम्मीदों पर खड़ी नहीं उतर पाई.

5 वर्ष पहले जिस स्थान पर बांका था, वहां से आगे विकास होने की स्थान ये ससंदीय क्षेत्र और पिछड़ ही गया. पीएम मोदी और राम मंदिर से बांका की कुछ ही जनता प्रभावित है. जबकि, बड़े स्तर पर इसका कोई असर नहीं है.

पिछले चुनाव में बड़ा था जीत-हार का अंतर

2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बांका में कुल 20 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे. पर उस चुनाव में भी गिरधारी और जयप्रकाश के बीच ही बीच मुकाबला था. पिछले चुनाव में कुल 9 लाख 89 हजार 181 वोट पड़े थे. जदयू के उम्मीदवार गिरधारी यादव को 4 लाख 77 हजार 788 वोट मिले थे और वो चुनाव जीत गए थे.

जबकि, राजद के जय प्रकाश यादव को 2 लाख 77 हजार 256 वोट ही मिले थे. इन दोनों के बीच हार-जीत का अंतर 2 लाख 532 वोटों का था. जो एक बड़ा अंतर था. वहीं, बाकी के 18 उम्मीदवारों की जमानत बरामद हो गई थी.

 

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