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Bihar Politics: लालू से दूरी नीतीश का दांव है या मजबूरी….

Bihar Political Crisis: नीतीश कुमार (Nitish Kumar) अपने सियासी जीवनकाल में तीसरी बार NDA का सहयोगी बनने को तैयार हैं भिन्न-भिन्न समय पर अपना नफा-नुकसान देखते हुए नीतीश कुमार NDA से आते-जाते रहे हैं इस बार नीतीश के पलटी मारने की वजह लोकसभा चुनाव में बिहार में हार का डर बताई जा रही है दरअसल, I.N.D.I.A. गठबंधन में तवज्जो ना मिलने से नीतीश का मन गठबंधन से ठिठकने लगा था वैसे भी इतिहास गवाह है कि जब-जब लोकसभा चुनाव में नीतीश NDA से दूर रहे हैं उनका हानि हुआ है अब प्रश्न पूछा जा रहा है कि लालू से दूरी नीतीश का दांव है या मजबूरी आइए इसके बारे में जानते हैं

बीजेपी के साथ आना दांव या मजबूरी?

बता दें कि 2009 लोकसभा चुनाव में NDA के साथ थे तब JDU को 40 में से 20 सीट मिली थी, लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश NDA से अलग हो गए थे उस वर्ष जेडीयू को केवल 2 सीट मिली थीं इसके बाद 2019 में NDA के साथ थे तो उनकी सीट बढ़कर 17 पहुंच गई थीं अब 2024 लोकसभा चुनाव में कहीं फिर JDU इकाई अंक में न पहुंच जाए, ये डर भी नीतीश कुमार के मन में हो सकता है

बिना शर्त नहीं हो रही नीतीश की एंट्री?

सूत्रों के मुताबिक, नीतीश कुमार के पुराने रिकॉर्ड को ध्यान में रखते हुए भाजपा भी इस बार शर्तों के साथ नीतीश कुमार को साथ ला रही है इसमें सबसे बड़ी शर्त ये होगी कि वो NDA के दूसरे सहयोगियों का ध्यान रखें पशुपति पारस, चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी, नीतीश कुमार के विरोधी रहे हैं ऐसे में उनके सम्मान की भी भाजपा शर्त जरूर रखेगी लोकसभा में सीटों के बंटवारे पर किसी तरह का टकराव न हो इसके लिए भी वार्ता हुई होगी

NDA में क्यों शामिल हो रहे नीतीश कुमार?

खुद चिराग पासवान ने गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर नीतीश से टकराव की पुरानी कहानी याद दिला दी जाहिर है नीतीश कुमार राजनीति की हवा देखते हुए कोई भी निर्णय लेते हैं तीसरी बार NDA में शामिल होने पर वो अपना राजनीतिक फायदा जरूर देख रहे होंगे

गौरतलब है कि विधानसभा में कम सीटें होने के बावजूद नीतीश कुमार का सीएम पद बरकरार रहेगा जेडीयू की संभावित टूट का खतरा भी टल जाएगा लोकसभा चुनाव के साथ-साथ विधानसभा चुनाव में मोदी के चेहरे का लाभ मिलेगा समय का पहिया बदलता है तो शत्रु भी दोस्त नजर आते हैं और दोस्त भी शत्रु जैसे दिखने लगते हैं बिहार की राजनीति को समझना बड़े-बड़े सियासी पंडितों के लिए भी सरल नहीं है बिहार में कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता आज का दिन बिहार की राजनीति में फिर से इतिहास लिखने वाला है, जिसका असर अगले कुछ महीनों में लोकसभा चुनाव पर पड़ना तय है

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