अकबर नगर में अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई पर नहीं लगेगी रोक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा…
नई दिल्ली: सुप्रीम न्यायालय ने शुक्रवार (10 मई) को अकबर नगर में बड़े पैमाने पर विध्वंस करने के लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) के निर्णय को बरकरार रखा, जिससे कुकरैल नदी के किनारे रहने वाले लगभग 15,000 निवासी प्रभावित हुए. न्यायालय शकील अहमद और अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य के मुद्दे में सुनवाई कर रही थी. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के विचार से सहमति व्यक्त की कि कॉलोनी का निर्माण बाढ़ क्षेत्र पर किया गया था और याचिकाकर्ताओं का दावा प्रतिकूल कब्जे पर आधारित था.
सुप्रीम न्यायालय ने बोला कि, “उक्त नाले में बाढ़ का विवरण दर्शाया गया है और एक एसटीपी का निर्माण किया गया है. उपरोक्त के मद्देनजर हम हाई कोर्ट के साथ सहमत हैं कि कॉलोनी का निर्माण बाढ़ क्षेत्र पर किया गया है और याचिकाकर्ताओं के पास कोई डॉक्यूमेंट्स या शीर्षक और दावा नहीं है प्रतिकूल कब्जे पर आधारित है, इसलिए हम आक्षेपित निर्णय में हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं, जहां तक यह कॉलोनी को बेदखल करने और ध्वस्त करने का निर्देश देता है.” न्यायालय 6 मार्च के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के विरुद्ध एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें लखनऊ में अकबर नगर की चल रही पुनर्वास परियोजना से प्रभावित निवासियों को मार्च के अंत तक विवादित परिसर खाली करने का निर्देश दिया गया था. हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने बोला था कि निवासी सरकारी भूमि पर अनधिकृत कब्जेदार थे, जो अधिक से अधिक, रहने के लिए वैकल्पिक स्थान की मांग कर सकते थे.
सुप्रीम न्यायालय में आज सुनवाई के दौरान जस्टिस खन्ना ने बोला कि प्रभावित निवासियों को अतिक्रमणकारियों की तरह ही वैकल्पिक आवास मिल रहा है. हालांकि, याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि वैकल्पिक आवास अकबर नगर से बहुत दूर था. उत्तर में, न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि जिस जगह पर कब्ज़ा किया गया था, वह शहर का केंद्र बनने से पहले शहर से दूर था. इसके बाद वकील ने रेखांकित किया कि राज्य निवासियों से टैक्स वसूल रहा था. हालाँकि, न्यायमूर्ति खन्ना ने इस बात पर बल दिया कि टैक्स उन्हें प्रदान की गई सेवाओं के लिए थे और इसका मतलब याचिकाकर्ताओं द्वारा भूमि का स्वामित्व नहीं था.
वकील एमआर शमशाद ने तब न्यायालय का ध्यान इस ओर दिलाया कि एक रिपोर्ट में बोला गया है कि कुकरैल नदी एक नदी नहीं, बल्कि एक नाला (धारा/नाला) थी और आसपास की भूमि को बाढ़ क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किए जाने पर टकराव हुआ. हालाँकि, कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकालने के लिए नदी और जलग्रहण क्षेत्रों की सेटेलाइट तस्वीरों का उल्लेख किया कि क्षेत्र का बाढ़ क्षेत्र के रूप में वर्गीकरण मुनासिब था. तदनुसार, कोर्ट ने विध्वंस को बरकरार रखा और हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.