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निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए अपनाई गई प्रक्रिया पर केंद्र से किया ये सवाल

उच्चतम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए अपनाई गई प्रक्रिया पर केंद्र से प्रश्न किया और पूछा कि कुछ ही घंटों में 200 में से छह नाम कैसे ‘शॉर्टलिस्ट’ कर लिए गए.

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने बोला कि चयन समिति को निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति पर विचार करने के लिए और समय दिया जाना चाहिए था.

पीठ ने केंद्र की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, “एक रिक्ति के लिए पांच नाम थे. दो के लिए आपने छह नाम भेजें. 10 क्यों नहीं? यह क़ानून की है – एक रिक्ति के लिए पांच नामों की अनुशंसा करनी होती है. रिकॉर्ड से ऐसा प्रतीत होता है.

उसने कहा, “वे (चयन समिति) 200 नामों पर विचार कर सकते हैं, लेकिन कितना समय दिया गया है, शायद दो घंटे? दो घंटे में दो सौ नामों पर विचार? आप पारदर्शी हो सकते थे.

मेहता ने कहा कि दो नए निर्वाचन आयुक्त एक चयन समिति द्वारा सुझाए गए 200 नामों में से चुने गए छह नामों में से थे.
न्यायमूर्ति दत्ता ने मेहता से कहा, “न्याय सिर्फ़ होना ही नहीं चाहिए, इन्साफ होता हुआ दिखना भी चाहिए. हम जन अगुवाई अधिनियम से निपट रहे हैं, जो मेरे मुताबिक संविधान के बाद सर्वोच्च है. जनता के भौहें चढ़ाने की कोई गुंजाइश क्यों छोड़ें.

न्यायमूर्ति दत्ता ने मेहता से प्रक्रिया को 15 मार्च से पहले कर 14 मार्च करने के पीछे के कारण के बारे में भी प्रश्न किया.
न्यायमूर्ति दत्ता ने पूछा, “एक (निर्वाचन आयुक्त) को चुनने के लिए आप 15 तारीख को रखते हैं और दो को चुनने के लिए आपने बैठक को 14 तारीख तक आगे बढ़ा दिया है? क्यों?”

मेहता ने उत्तर दिया कि चयन समिति के सदस्यों को उन छह ऑफिसरों के बारे में पता था, जो सियासी दलों से परे पद पर थे.
शीर्ष न्यायालय ने बोला कि वह नियुक्त निर्वाचन आयुक्तों की साख पर नहीं बल्कि प्रक्रिया पर प्रश्न उठा रही है.

पीठ ने हालांकि नए निर्वाचन आयुक्तों ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू की नियुक्ति पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और बोला कि ऐसा करने से “अराजकता और अनिश्चितता” पैदा होगी क्योंकि लोकसभा चुनाव निकट हैं.

 



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