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बसंत पंचमी पर विशेष रूप से पीले रंग का उपयोग क्यों किया जाता है, जानें महत्व

 हर वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी (Basant Panchami 2024) का त्योहार मनाया जाता है आज यानी 14 फरवरी को यह पर्व मनाया जा रहा है इस दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था शास्त्रों में बसंत पंचमी के त्योहार को सबसे शुभ तिथियों में गिना जाता है मान्यताओं के अनुसार, इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की वकायदा पूजा अर्चना करने से जीवन के सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है साथ ही विद्यार्थियों का बौद्धिक विकास होता है मांगलिक कार्य जैसे- विवाह, उपनयन संस्कार आदि के लिए भी इस दिन को बहुत शुभ माना जाता है ज्ञान की देवी मां सरस्वती को समर्पित इस दिन बच्चों की शिक्षा की आरंभ करने के लिए भी यह तिथि उत्तम मानी जाती है इस दिन विशेष रूप से पीले रंग का इस्तेमाल किया जाता है साथ ही पीले वस्त्र भी पहने जाते हैं

उत्तराखंड के नैनीताल स्थित डीएसबी कॉलेज के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ ललित तिवारी ने बोला कि बसंत पंचमी को ऋतुराज भी बोला जाता है इस दिन के बाद मौसम में परिवर्तन होता है और ठंड कम पड़ती है इस दिन पीले वस्त्र पहनने के साथ ही मां सरस्वती को भी पीला वस्त्र चढ़ाया जाता है पेड़ों में नयी पत्तियां आने लगती हैं, फूलों में भंवरे मंडराने लगते हैं और इस त्योहार के बाद सरसों के पीले फूल भी खिल उठते हैं

पीले रंग का विशेष महत्व

प्रोफेसर तिवारी ने बोला कि बसंत पंचमी के दिन पीले रंग का विशेष महत्व है पीला रंग मां शारदा को प्रिय है साथ ही पीला रंग समृद्धि का प्रतीक है यही वजह है कि बसंत पंचमी के दिन मां शारदा की पूजा में भी पीला वस्त्र प्रयोग किया जाता है इसके साथ ही पीला रंग मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है और नर्वस सिस्टम को भी बेहतर करता है यह रंग मन को खुश रखता है पीला रंग शरीर में सैरोटेरियन हार्मोन को बढ़ाता है, जिस वजह से टेंशन डिप्रेशन से मुक्ति मिलती है इस दिन संपन्न होने वाले उपनयन संस्कार में भी बटुक को पीले रंग के वस्त्र पहनाए जाते हैं ऐसी मान्यता है कि पीले रंग के वस्त्र धारण करने से मां सरस्वती की कृपा बनी रहती है साथ ही उपनयन संस्कार के बाद मां के आशीर्वाद से बौद्धिक विकास होता है

बच्चों को देते हैं पीले रुमाल

उन्होंने आगे बोला कि इस दिन लोग पीले वस्त्रों को धारण करते हैं पीले वस्त्र पहनकर पूजा अर्चना करते हैं बसंत पंचमी से कुछ दिन पहले बाजारों में भी पीले वस्त्र मिलते हैं बच्चों को पीले रुमाल मां के आशीर्वाद के तौर पर दिए जाते हैं साथ ही घरों में पकवानों को बनाया जाता है और मां शारदा को भोग लगाया जाता है इसके साथ ही इस दिन से पूस के रविवार से प्रारम्भ होने वाली होली श्रृंगार रस की होली में बदल जाती है साथ ही गेंदा, चमेली और सरसों के फूल भी खिलने लगते हैं

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