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रंगों से ही क्यों खेली जाती है Holi, जानें इसके पीछे के मिथक

लाइफस्टाईल न्यूज डेस्क होली का त्योहार हर वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है इस बार यह शुभ त्योहार 24 मार्च, रविवार को पड़ रहा है इस दिन लोग सफेद कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और एक-दूसरे को शुभकामना देते हैं इस त्योहार को मनाने के बारे में बोला जाता है कि इस दिन शत्रु भी अपनी दुश्मनी भुलाकर एक-दूसरे को गले लगाते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि रंगों का त्योहार क्यों मनाया जाता है? आइए आज हम आपको बताते हैं होली मनाने के पीछे के मिथक…

श्रीकृष्ण से संबंधित रंगों का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, होली और रंगों का विशेष संबंध द्वापर युग यानी ईश्वर कृष्ण के काल से है ईश्वर कृष्ण को प्रेम का प्रतीक माना जाता है ऐसा बोला जाता है कि इस दिन कृष्ण ने एक बच्चे के रूप में मूर्ति राक्षस का वध किया था फिर गांव वालों ने होली मनाई इसके साथ ही इसी पूर्णिमा के दिन ईश्वर श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रासलीला रचाई थी इसके बाद अगले दिन रंग खेलने का त्योहार मनाया गया

अन्य कथाओं के अनुसार
जब श्रीकृष्ण ने मथुरा में होली मनाई तो उन्होंने उसमें कई रंगों का प्रयोग किया तभी से लोग रंगों से होली खेलने लगे आपको बता दें कि होली मनाने की परंपरा सबसे पहले गोकुल के वृन्दावन में प्रारम्भ हुई थी इसके बाद रंगों से होली मनाने और खेलने की परंपरा एक सामुदायिक कार्यक्रम में बदल गई इसीलिए होली का त्योहार मथुरा-वृंदावन में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है पूरे विश्व में लोग भिन्न-भिन्न उपायों से होली भी मनाते हैं होली का त्योहार मनाने का मतलब यह है कि अब सर्दी समाप्त हो गई है और गर्मी प्रारम्भ हो गई है

हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस राजा था कई सालों की तपस्या के बाद, उसने ईश्वर ब्रह्मा से वरदान लिया कि दुनिया का कोई भी जानवर, देवता, दानव या मनुष्य उसे नहीं मार सके इससे वह न तो रात में मरता है, न दिन में, न धरती पर, न आकाश में, न घर में, न घर के बाहर इसके अतिरिक्त उसे किसी हथियार से नहीं मारा जाना चाहिए ऐसा वरदान प्राप्त करने के बाद वह बहुत अत्याचारी हो गया और स्वयं को ईश्वर मानकर सभी पर अत्याचार करने लगा और सभी को अपनी पूजा करने के लिए विवश करने लगा कुछ समय बाद हिरण्यकश्यप के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ राक्षस राजा ने उसका नाम प्रह्लाद रखा असुर पुत्र बचपन से ही ईश्वर विष्णु की भक्ति में लीन रहता था और उन्हें ईश्वर विष्णु का विशेष आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ

हिरण्यकश्यप के इंकार करने के बावजूद, प्रह्लाद ईश्वर की पूजा करता रहा इसी क्रोध में आकर हिरण्यकशिपु ने उसे मारने के कई कोशिश किये लेकिन ईश्वर विष्णु ने उसे हर बार बचा लिया इसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका (राक्षस) से बोला कि वह प्रह्लाद को आग में जलाकर मार डाले होलिका को अग्नि से बचने का वरदान प्राप्त था उसे एक ऐसा लबादा प्राप्त था जिसे पहनने से वह आग में नहीं जल सकती थी ऐसे में होलिका ने स्वयं को चादर से ढक लिया और प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई तभी ईश्वर की कृपा से तेज हवा चली और चादर उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गिरी इस बीच प्रह्लाद तो बच गया और होलिका आग में जलकर भस्म हो गई इसके बाद हिरण्यकश्यप को मारने के लिए ईश्वर विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया और शाम (सुबह और शाम) के समय खंभे से निकलकर दरवाजे के खंभे पर बैठ गए और राक्षस हिरण्यकश्यप को अपने नाखूनों से मार डाला उसी दिन से बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए होली का त्योहार मनाने की परंपरा प्रारम्भ हुई

होली को वसंत उत्सव बोला जाता है
होली के त्यौहार को कई लोग बसंत महोत्सव भी कहते हैं दरअसल, इस सीजन में किसानों को नयी फसलें देखने को मिलती हैं ऐसे में इस दिन को किसान मिलकर होली के रूप में मनाते हैं इस कारण होली का त्यौहार किसानों के लिए वसंत का त्यौहार है

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