लाइफ स्टाइल

महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा माफी मांगती हैं, जानें क्यों…

लड़कियों को सिर झुका कर माफी मांगना या सॉरी कहना बचपन से सिखाया जाता है. ‘बड़े हैं माफी मांग लो’. गलती न होने पर भी माफी मांगने को बोला जाता है क्योंकि वो लड़की जात है. अपनी सच्चाई को रखने का मौका तक नहीं दिया जाता. गलती कोई भी करे, सीधा माफी मांगने की राय लड़की को ही दी जाती है.

कनाडा के ओंटारियो के वाटरलू यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च में बोला गया है कि पुरूषों के मुकाबले महिलाएं माफी अधिक मांगती हैं. पुरुष शीघ्र और सरलता से सॉरी नहीं बोलते. पुरुष माफी नहीं मांगते क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनकी छवि कमजोर बनेगी.

शोधकर्ता करीना शुमान और माइकल रॉस के अनुसार, महिलाएं मर्दों की तुलना में अधिक माफी मांगती हैं क्योंकि वो एक ही गुनाह या गलती को मर्दों की तुलना में अधिक गंभीरता से लेती हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह स्त्री को बचपन से ही सिखाया जाता रहा है कि माफी मांगने में कोई हर्ज नहीं है. यह आदत पुरुष और स्त्रियों के चरित्र और व्यवहार के अंतर के साथ सामाजिक परिवेश की भी व्याख्या करती है.

दकियानूस सोच की सच्चाई

वहीं द चाइनीज यूनिवर्सिटी ऑफ हांग कांग में जेंडर स्टडीज की एसोसिएट प्रोफेसर आइवी वोंग कहती हैं, ज्यादातर महिलाएं शांति बनाए रखने के लिए ‘सॉरी’ कहना अधिक ठीक समझती हैं.वो दूसरों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें चोट नहीं पहुंचाना चाहतीं. इसलिए टकराव होने पर महिलाएं सॉरी बोलकर मुद्दे को निपटाने की प्रयास करती हैं. उन्हें लगता है कि माफी मांगकर बात समाप्त की जा सकती है.

परवरिश के ढंग में फर्क ही माफी मांगने की वजह

वोंग कहती हैं कि बचपन से ही पेरेंट्स लड़कियों को झुकना सिखाते हैं. उन्हें नाजुक माना जाता है. जब लड़कियां बड़ी हो जाती हैं, तो कुछ लोग वास्तव में यह मानने लगते हैं कि वो लड़कों की तुलना में कमजोर हैं. माता-पिता लड़कों को व्यावहारिक रूप से खुलने की इजाजत देते हैं. जिसका नतीजा उनके पास कुछ भी करने का लाइसेंस होता है, केवल इसलिए कि वो लड़के हैं. लेकिन यदि लड़कियां को भी लड़कों जैसी परवरिश मिले तो वो मजबूत बनेंगी और माफी मांगना उनकी पर्सनैलिटी का हिस्सा नहीं बनेगा. माता-पिता समाज के डर से पाबंदी लगाते हैं. लड़कियों और लड़कों की परवरिश के ढंग में ये फर्क ही माफी मांगने के कारण बनता है. बेटे-बेटी की परवरिश में लिंगभेद को जेंडरिज्म कहते हैं जो इस भेदभाव की मूल वजह है. जेंडरिज्म को दो हिस्सों में बांटा गया है.

वोंग कहती हैं कि कई बार समाज परोपकारी लिंगवाद के जाल में फंस जाता है. ऐसा लगता है कि वो स्त्रियों का सम्मान कर रहा है, लेकिन सच्चाई ये है कि उसकी सोच स्त्रियों को कमजोरी दिखाने का काम करती है. सोसाइटी में यदि पॉजिटिव परिवर्तन लाना चाहते हैं तो लड़के और लड़कियों को एक जैसी परवरिश देनी होगी. जब लड़के लड़कियों के बीच वार्ता होगी, तब सीखना-समझना सरल होगा. साथ ही यह भी साफ होगा कि लड़के और लड़कियां एक ही मामले और हालात को कैसे देखते, समझते और आंकते हैं. उnनकी नजर में समस्याओं के हल भी भिन्न भिन्न हो सकते हैं.

हमारा नजरिया एकदम अलग

प्रियंका रामटेके डिजिटल मार्केटिंग कंपनी की मालकिन हैं. उनका बोलना है कि कुछ वर्ष पहले, जब वो नौकरी करती थीं. उनका एक पुरुष सहकर्मी था. प्रियंका और वो दोनों ही एक ही पोजिशन पर थे. लेकिन प्रियंका के मुताबिक दोनों के काम करने के तौर ढंग में बहुत अंतर था. सहकर्मियों और समस्याओं के प्रति हम दोनों का नजरिया एकदम अलग था, हमारे ईमेल लिखने के उपायों में भी फर्क था. जैसे- यदि हम दोनों को किसी मीटिंग के रिशेड्यूलिंग के बारे में टीम को सूचित करने को लेकर लिखे गए ईमेल का तरीका भी भिन्न-भिन्न होता. मेरे ईमेल ‘मुझे खेद है’, और ‘मैं क्षमा चाहती हूं’ जैसे शब्द होते, जबकि पुरुष सहकर्मी एक लाइन में अपनी बात कह देते और उसमें ‘सॉरी’ शब्द नहीं होता.

बॉस ने मुझपर तंज करना प्रारम्भ कर दिया

एक कंपनी में बतौर टीम लीडर काम कर रही रिया सैकिया कहती हैं कि मैंने काम में कुछ सुधार करने के लिए एक प्रस्ताव तैयार करके अपने सीनियर को भेजा जिसका उत्तर मुझे छह महीने बाद आया. मेरे सीनियर ने उत्तर देने में इतनी देरी के लिए ‘सॉरी’ कहने के बजाय विपरीत मुझ पर तंज कसा. रिया कहती हैं, किसी भी प्रोफशनल से आशा की जाती है कि वह देर से उत्तर देने के लिए सॉरी कहे. लेकिन मेरी करियर के अनुभव ये बताते हैं कि मर्दों को स्त्रियों की तुलना में इन आसान शब्दों को कहने में अधिक परेशानी होती है.

सवाल के उत्तर को मैंने माफी से प्रारम्भ किया

आईटी कंपनी में ऑपरेशन मैनेजर के पद पर काम करने वाली रूम्पी से जब प्रश्न किया तो उन्होंने बोला “आज ही, मेरी नयी टीम के साथ एक मीटिंग हुई, मीटिंग में एक प्रश्न का उत्तर मैंने ‘सॉरी’ कहकर प्रारम्भ किया. मेरा उत्तर था, ‘माफ करें, मेरे पास अभी वह जानकारी नहीं है.‘ मैं बस इतना भी कह सकती थी, ‘ज़रूर, मैं ढूंढ कर बता दूंगी.’ लेकिन आज मुझे ये महसूस होता है कि मैंने उस दिन माफी क्यों मांगी. रूम्पी कहती हैं कि ये तो ऑफिस की बात हुई लेकिन अक्सर परिवार में भी मेरे साथ ऐसा हुआ है. जब मैं किसी से टेलीफोन पर बात करती हूं और उसी दौरान डोर बेल हो गई हो तो, मैं माफी मांगती हूं.

बार बार सॉरी कहना कमजोरी की निशानी

मनोवैज्ञानिक योगिता कादियान कहती हैं कि बार बार शर्मिदा होना या माफी मांगने की आदत आदमी का कमजोर पक्ष दिखाती है जिसे इम्पोस्टर सिंड्रोम कहते हैं. समाज के डर भय में आदमी अपनी बात माफी के साथ रखता है.

योगिता कहती हैं कि इस सोच की जड़े अक्सर किसी के पर्सनल इतिहास से जुड़ी होती हैं. जो समय-समय पर ऑफिस, स्कूल-कॉलेज या गैदरिंग में दिखाई देती हैं. इंपोस्टर सिंड्रोम की खोज 1978 में शोधकर्ता पॉलीन रोज़ क्लैंस और सुजैन एमेंट इम्स ने की. इस सिंड्रोम से पीड़ित आदमी अपने को कमतर आंकता है.

महिलाओं की जीवन शर्तों पर टिकी

सदियों से स्त्रियों को प्रत्येक दिन कहा जाता है कि अपनी भलाई के लिए कुछ अच्छी आदतें डाल लें जैसे, समय से विवाह करो, बच्चे पैदा करो, पति और परिवार को खुश रखो, सुंदर दिखो, जीवन भर सभी की आवश्यकता को पूरा करो, स्वयं को कमतर समझो, गलतियों के लिए स्वयं को उत्तरदायी ठहराओ और माफी मांगना अपनी आदत में शामिल करो. यही वजह है कि माफी मांगना और सॉरी बोलना आधी कही जाने वाली जनसंख्या यानी सेकेंड संभोग की आदत बना दी जाती है. इसलिए बेटियों की परवरिश बेटों की तरह करें ताकि भविष्य में वो किसी के आगे बार बार अपना माफी नामा न पेश करे.

 

Related Articles

Back to top button