लाइफ स्टाइल

टॉपर्स मंत्रा: होली के दिन पड़ोसी ने तेजाब फेंका

मेरा नाम काफी है और मैं क्लास 11वीं में पढ़ती हूं. दसवीं में 95.2% नंबर आए थे. मैं जब तीन वर्ष की थी, मेरे चेहरे पर पड़ोसी ने तेजाब फेंक दिया था. सालों-साल उपचार चला और मैं आठ वर्ष की उम्र में फिर से पढ़ाई प्रारम्भ कर पाई. कहानी थोड़ी उतार-चढ़ाव से भरी हुई है इसलिए प्रारम्भ से समझाते हैं.

पिता का मानना था, एक ही लड़की ‘काफी’ हूं
मेरा परिवार मूलत: हरियाणा के हिसार का रहने वाला है. पापा की बिजली के सामान की दुकान थी. ऐसा समझ लें कि गांव से बाहर आकर पापा ने हिसार शहर में एक दुकान खोली थी और अपनी मौसी के मोहल्ले में किराए के घर में रहते थे.

इसके बाद घर में ब्याह कर मेरी मां आईं तो पापा ने थोड़ी जिम्मेदारी और निभानी प्रारम्भ की. मम्मी बताती हैं कि जब विवाह हुई तो वो 19 वर्ष की थीं और नाना की डेथ बहुत पहले हो गई थी इसलिए ब्याह दिया गया.

मैं जब पैदा हुई तो पापा ने मेरा नाम काफी रख दिया. उनका मानना था कि मैं एक ही लड़की काफी हूं.

तीन वर्ष की उम्र में एसिड अटैक हुआ
मैं उस समय तीन वर्ष थी. 20 मार्च 2011 को होली थी. मम्मी गांव गई थीं और पापा दुकान पर थे. मैं चाचा के साथ घर के बाहर, सीढ़ियों पर होली खेल रही थी. इतने में पड़ोस में रहने वाले एक भइया और उनके साथ दो और लोग, बाइक पर आए.

अचानक से वो बाइक लेकर मेरे पास आए और मेरे सिर के ऊपर एक बोतल उड़ेल दी. मेरे चाचा को लगा कि वो रंग है, लेकिन तेजाब था. दरअसल, जिन्होंने तेजाब डाला, वो बेटा चाहते थे. इसके लिए उन्हें किसी तांत्रिक ने बोला था कि किसी लड़की पर तेजाब डाल दो.

मैं जिस क्षेत्र में बड़ी हो रही थी, वहां टोने-टोटके में विश्वास अधिक किया जाता था. आज भी है, लेकिन तब कितना भयावह था इसका उत्तर आपके सामने है. मेरे पिता उच्च न्यायालय तक जा चुके हैं, लेकिन उन लोगों को हल्की सजा हुई है.

आठ वर्ष की उम्र तक विद्यालय का मुंह नहीं देखा
मैं जब तीन वर्ष की थी तब तक विद्यालय नहीं गई थी. इसके बाद एसिड अटैक की वजह से मेरा पांच वर्ष एम्स और फिर चेन्नई के दर्जनों हॉस्पिटल में उपचार चला. प्लास्टिक सर्जरी सहित आंख के दर्जनों ऑपरेशन के बाद ये तय हुआ कि रोशनी नहीं लौट सकती. इस सब में पांच वर्ष बीत गए और मैं आठ वर्ष की हो गई. अब तक विद्यालय क्या होता है मुझे कुछ पता नहीं था.

सेकेंड के लिए एग्जाम दिया, छठी में सिलेक्शन
मेरी फैमिली चंडीगढ़ शिफ्ट हो गई और मेरा एडमिशन यहीं करा दिया गया. यहां एक ब्लाइंड बच्चों का विद्यालय था. दूसरी क्लास के लिए मेरा टेस्ट लिया गया और मुझे छठी क्लास में एडमिशन दे दिया गया. पढ़ने में तेज थी तो टीचर्स की भी फेवरेट होती गई.

हर दिन ऐसा होता है रूटीन
मैं सुबह सात बजे तक उठती हूं. एक घंटे में फ्रेश होकर, चाय पी लेती हूं. पापा एक सरकारी ऑफिस में चपरासी की जॉब करते हैं. उन्हें सुबह 9 बजे निकलना होता है. दिन में यही एक घंटा उनके साथ बिताने को मिलता है.

इसके बाद मैं 9 बजे से लगभग 1 बजे तक पढ़ती हूं. दिन में थोड़ा आराम करने के बाद शाम को मैं थोड़ी देर अपनी मर्जी के अनुसार कुछ चीजें पढ़ती हूं. मैथ्स के अतिरिक्त मुझे म्यूजिक भी बहुत पसंद है. थोड़ा सा भी खुश या दुखी होती हूं तो म्यूजिक सुनती हूं. गाने का नहीं पता, लेकिन सुनकर मैं बहुत खुश रहती हूं.

जो कुछ भी कर पाई हूं, पेरेंट्स को ही जाता है श्रेय
मैं हर छोटे-बड़े काम के लिए अपनी मां पर निर्भर हूं. पढ़ाई से लेकर दिनचर्या के बाकी काम, हर चीज में मां मेरी सहायता करती हैं. पापा ने भी मेरे लिए कई त्याग किए हैं. हिसार में उनका अच्छा बिजनेस चल रहा था, लेकिन मेरे न्यायालय मुकदमा और पढ़ाई के लिए पूरे परिवार के साथ पापा भी चंडीगढ़ शिफ्ट हो गए. यहां वो चपरासी का काम करने लगे. वो ऑफिस से पांच बजे छूटते हैं और उसके बाद दो घंटे ई-रिक्शा चलाते हैं.

IAS बनकर सोसाइटी के लिए कुछ करना चाहती हूं
मैं अब अपने पीछे के बारे में या आने वाले समय के बारे में नहीं सोचती हूं. मुझे उन लोगों के लिए कोई दुर्भावना भी नहीं है. मैं बदले की नहीं, परिवर्तन की भावना के साथ जीवन जीना चाहती हूं. हां, आईएएस बनकर अपने जैसे एसिड विक्टिम्स और देख न सकने वाले लोगों के लिए कुछ करना चाहती हूं.

 

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