Chronic Pain: ये होते हैं गरीबी के साइड इफेक्ट
एक नए अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि कम कम आमदनी वाले लोगों में शारीरिक चोट के बाद क्रॉनिक दर्द विकसित होने का खतरा दोगुना होता है। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जिन लोगों में धूम्रपान, कमजोर सामाजिक योगदान नेटवर्क और कम शिक्षा लेवल या आय जैसी कई चीजें एक साथ होती हैं, उनमें चोट के बाद क्रॉनिक दर्द विकसित होने का खतरा सात गुना तक बढ़ सकता है।
क्रॉनिक दर्द वह होता है जो शुरुआती शारीरिक चोट के तीन महीने से अधिक समय तक रहता है, जबकि पहले तीन महीनों में अनुभव किया जाने वाला दर्द ‘तीव्र’ (acute) माना जाता है। क्रॉनिक दर्द से ग्रस्त लोगों को अक्सर जीवन की क्वालिटी खराब हो जाती है और उनमें दिल की रोग और डायबिटीज जैसी बीमारियां विकसित होने का खतरा भी अधिक होता है।
क्रॉनिक दर्द को कंट्रोल
शोधकर्ताओं का बोलना है कि वर्तमान में क्रॉनिक दर्द के कंट्रोल करने के ढंग दर्द या चोट की स्थान के फिजिकल रिहैबिलिटेशन पर केंद्रित होते हैं, जबकि शरीर को तीन महीने से अधिक समय तक ठीक होने में लगने से यह संकेत मिलता है कि लंबे समय तक चलने वाले दर्द के पीछे के कारण अधिक जटिल होते हैं। शोध के प्रमुख लेखक और ब्रिटेन के बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के माइकल डन ने बोला कि तीव्र दर्द का उद्देश्य शरीर को हानि से बचाने के लिए व्यवहार को बदलना है, लेकिन क्रॉनिक दर्द सेंसरी नर्वस सिस्टम के कारण बना रहता है जो (शुरुआती) इलाज प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी दर्द का अनुभव कराता रहता है।
दर्द का उपचार
शोधकर्ताओं ने पाया कि इलाज शरीर के घायल हिस्से पर ही केंद्रित होने से अक्सर अप्रभावी होता है, क्योंकि इलाज को कारगर बनाने के लिए मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारकों पर भी ध्यान देना जरूरी होता है। टीम ने पाया कि क्रॉनिक दर्द के विकास को प्रभावित करने वाले कारक चोट के प्रकार से कम, बल्कि दर्द के अनुभवों से अधिक संबंधित थे।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
डन ने बोला कि इसलिए, मस्कुलोस्केलेटल चोटें वाले लोगों के उपचार के लिए व्यक्ति-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जो व्यापक ऑर्गेनिक, मनोसामाजिक और सामाजिक कल्याण पर केंद्रित हो। सीधे शब्दों में कहें तो, वर्तमान हेल्थ केयर दृष्टिकोण उन सभी कारणों को संबोधित नहीं करते हैं जिनकी वजह से लोग बेहतर नहीं होते हैं। शोधकर्ताओं ने क्रॉनिक दर्द विकसित होने के लिए कम जॉब की संतुष्टि, तनाव और डिप्रेशन जैसे पर्सनल फैक्टर की भी पहचान की।