भोजपुरी सितारों का पॉलिटिक्स में बढ़ता क्रेज, बढ़ रहा स्टारडम
राजनीतिक पार्टियों को दोहरा फायदा
भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के कलाकारों में राजनीति में पारी खेलने का आकर्षण रहा है, तो सियासी पार्टियों को इन्हें साथ लेने में दोहरा लाभ होता है। पहला कि उन्हें बैठे-बैठाये एक स्टार प्रचारक मिल जाता है तो वहीं लोकसभा सीट के लिए योग्य उम्मीदवार भी। क्योंकि उनकी फैन फॉलोइंग काफी अधिक होती है जो अक्सर वोट में भी परिवर्तित हो जाती है। और वह अपने संसदीय क्षेत्र से भारी मतों से चुनाव भी जीतते हैं। भोजपुरी फिल्मों के सितारे सियासी पार्टियों के लिए भोजपुरी भाषा क्षेत्र में अपने वोट बैंक को साधने का एक बेहतर जरिया साबित होते हैं। साथ ही इनसे चुनाव प्रचार करा कर अन्य क्षेत्रों में भी लोगों को गोलबंद करने में सहायता मिलती है।
भोजपुरी सितारों को 2014 के लोकसभा चुनाव में बड़ा एक्स्पोज़र मिला
आज के दौर में भोजपुरी कलाकारों की शोहरत जिस तरह से लोगों के सिर चढ़कर बोल रही है, वैसा पहले नहीं था। पहले भी भोजपुरी फिल्में बनती थीं, पर उतनी नहीं जितनी आज। कुणाल जैसे कलाकार भी चुनाव मैदान में अपना हाथ आजमा चुके हैं। पर उस समय भोजपुरी फिल्मों या कलाकारों को लेकर ऐसी दीवानगी नहीं देखी जाती थी। अंतर आया 2004 में जब मनोज तिवारी मृदुल की फिल्म ‘ससुरा बड़ा पईसा वाला’ सुपरहिट हुई। इसके बाद बड़े पैमाने पर भोजपुरी फिल्मों के बनने का दौर प्रारम्भ हो गया। हालांकि राजनीति में इन कलाकारों के आने में कुछ समय लगा। सियासी पटल पर भोजपुरी सितारों को 2014 के लोकसभा चुनाव में बड़ा एक्स्पोज़र मिला। इससे पहले मनोज तिवारी ने 2009 में गोरखपुर लोकसभा सीट से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। सामने थे योगी आदित्यनाथ। भाजपा के योगी आदित्यनाथ के सामने मनोज तिवारी की हार हुई। 2011 में अन्ना हजारे के करप्शन विरोधी आंदोलन में मनोज तिवारी ने दिल्ली में एक्टिव रूप से भागीदारी निभाई। इस आंदोलन ने मनोज तिवारी को दिल्ली में पॉलिटिकल प्लेटफार्म दिया।
मनोज तिवारी से प्रारम्भ हुआ सिलसिला
2014 के लोकसभा चुनाव के ऐन पहले मनोज तिवारी ने अक्टूबर 2013 में भाजपा का दामन थाम लिया। 2014 के चुनाव में भाजपा ने मनोज तिवारी को दिल्ली उत्तर पूर्वी सीट से प्रत्याशी बनाया। मनोज तिवारी ने आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार आनंद कुमार को भारी मतों के अंतर से हराया। पुरस्कार में मनोज तिवारी दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष बने। 2014 से अब तक मनोज तिवारी बीजेपी के स्टार प्रचारक रहे हैं। बीजेपी ने भोजपुरी भाषी क्षेत्र में इनके ग्लैमर का भरपूर इस्तेमाल किया है। उनकी सभाओं में आज भी अच्छी खासी भीड़ जुटती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में मनोज तिवारी ने तो कमाल ही कर दिया। दिल्ली की तीन बार की सीएम रहीं शीला दीक्षित को उन्होंने रिकॉर्ड वोटों के अंतर से हराया।
कांग्रेस से आए रवि किशन बीजेपी के हो गए
मनोज तिवारी के बाद नाम आता है रवि किशन का। इन्होंने भी 2014 के आम चुनाव से पॉलिटिकल डेब्यू किया था। रवि किशन यूपी के जौनपुर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी के लिए लड़े पर उनकी सियासी पारी आरंभ में सफल नहीं रही। वे चुनाव हार गए। उन्हें 50 हजार वोट भी नहीं मिल सका और उम्मीदवारों में छठे जगह पर रहे। इसके बाद 2017 में बीजेपी में शामिल हो गए। पार्टी ने उन्हें योगी आदित्यनाथ की सीट दी। गोरखपुर सीट से 2019 में चुनाव लड़ते हुए उन्होंने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को करारी शिकस्त दी। राम भुआल निषाद को रवि किशन ने 3 लाख से अधिक वोटो के अंतर से हराया। 2024 के चुनाव में इस बार फिर से वह गोरखपुर से बीजेपी के उम्मीदवार हैं और पार्टी की पॉलिटिकल रैली में एक्टिव रूप से हिस्सेदारी ले रहे हैं।
दिनेश लाल यादव निरहुआ ने पहले गंवाई आजमगढ़ की सीट, फिर वहीं से बने सांसद
2014 के बाद भोजपुरी कलाकारों की राजनीति में पैठ बढ़ती गई। दिनेश लाल यादव निरहुआ ने 2019 से अपने पॉलिटिकल करियर की आरंभ की। 2019 में बीजेपी के टिकट पर उन्होंने आजमगढ़ से चुनाव लड़ा पर सीट गंवा दी, क्योंकि सामने सपा के अखिलेश यादव थे। 2022 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ। क्योंकि अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव जीतने के बाद इस सीट से त्याग-पत्र दे दिया था। इस बार दिनेश लाल यादव निरहुआ ने समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव को हरा दिया और आजमगढ़ सीट अपने नाम कर ली। दिनेश लाल यादव बीजेपी की चुनावी रैलियों में भीड़ जुटाने में माहिर माने जाते हैं। 2024 के चुनाव में भी वे पॉलिटिकल कैंपेन का हिस्सा थे।
पावर स्टार पवन: आसनसोल से इनकार, काराकाट से प्यार
भोजपुरी के एक अन्य सुपरस्टार जिन्हें उनके फैन पावर स्टार के नाम से जानते हैं, पवन सिंह हैं। उन्होंने 2017 में राजनीति में हाथ आजमाने की प्रयास की। बीजेपी में शामिल होने के बाद पार्टी के चुनाव प्रचार में तो उन्होंने हिस्सा लिया, पर मेनस्ट्रीम राजनीति में नहीं उतरे। 2024 में बीजेपी की उम्मीदवारों की पहली सूची में उनका नाम आसनसोल लोकसभा सीट से था। यहां तृणमूल कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा से उनकी भिड़न्त हो सकती थी, पर टिकट मिलने के साथ ही उन्होंने आसनसोल से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। अब सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर उन्होंने बिहार के काराकाट लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की घोषणा की है। अब देखना है कि यहां वह किसी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं या निर्दलीय। चर्चा बीएसपी से टिकट मिलने की है।
नवादा में बाहरी राग के सहारे निर्दलीय मैदान में गुंजन सिंह
मगही गीतों से फिल्म इंडस्ट्री में पहचान बनाने वाले गुजन सिंह अब नेता बनने की दौड़ में हैं। नवादा का बेटा और बाहरी नेताओं के राग के सहारे वो नवादा लोकसभा सीट से निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं। भवनपुर गांव निवासी गुंजन सिंह का जन्म साधारण परिवार में हुआ था। अपने गृह जिला से ही इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई करने के बाद इन्होंने गीत-संगीत में करियर बनाया। इनके गानों में मगही भाषा की झलक देखने को मिलती है। इन दिनों भोजपुरी इंडस्ट्री में में भी छा गए हैं। दर्जनों भोजपुरी फिल्मों के जरिए उन्होंने अपनी पहचान बनाई है।
क्या कहते हैं जानकार
सामाजिक मामलों के जानकार प्रियदर्शी रंजन कहते हैं कि लोकतंत्र में हर क्षेत्र के लोगों की सहभागिता सुनिश्चित होनी चाहिए। यह देखकर अच्छा लगता है कि दक्षिण तथा मुंबई के सिनेमाई कलाकारों की तरह ही भोजपुरी सिनेमाई कलाकार बड़ी संख्या में चुनावी कामयाबी अर्जित कर रहे हैं और इस लोकसभा चुनाव में भी रिकॉर्ड संख्या में किस्मत आजमा रहे हैं। हालांकि यह देखकर दुखभी होता है कि भोजपुरी सिनेमा के कलाकारों की लोकप्रियता की आड़ में विशुद्ध राजनेताओं को दरकिनार किया जा रहा है। आज बिहार से लेकर दिल्ली तक में कम से कम 10 लोकसभा और 30 के करीब विधानसभा क्षेत्रों पर भोजपुरी कलाकारों की दावेदारी है। भोजपुरी कलाकारों को यह बताना चाहिए कि गायन और कला क्षेत्र के अतिरिक्त उनकी सामाजिक क्षेत्र में क्या हिस्सेदारी है। प्रियदर्शी यह भी कहते हैं कि कला और सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग के लिए पहले से ही राज्यसभा और विधान परिषद में कलाकारों और साहित्यकारों को भेजने की कानूनी प्रबंध की गई है। क्रमशः राष्ट्रपति और गवर्नर द्वारा इनका मनोनयन होता है। इसके बाद भी कोई कलाकार चुनावी राजनीति में दिलचस्पी लेता है तो उसे अपने अतिरिक्त सहयोग को प्रस्तुत करना चाहिए। प्रियदर्शी ने यह भी बोला कि भोजपुरी कलाकारों को पहले बिहार और उत्तर प्रदेश में विधान परिषद में मनोनयन के लिए आवाज़ बुलंद करना चाहिए, जहां उनका अधिकार होने के बाद भी हिस्सेदारी नहीं है।