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ईरान और इजरायल के बीच बढ़े तनाव ने डॉलर की मांग बढ़ा

ईरान और इजरायल के बीच बढ़े तनाव ने $ की मांग बढ़ा दी है. इससे रुपये पर दबाव बढ़ा है. डाॅलर के मुकाबले रुपया मंगलवार को अब तक के सबसे निचले स्‍तर 83.53 पर बंद हुआ था. जानकार बताते हैं कि रुपये की गिरावट को रोकने के लिए केंद्रीय बैंक ने हस्‍तक्षेप किया. $ के मुकाबले रुपया के नए निचले स्तर पर पहुंचना निर्यात के लिए लाभदायक है, लेकिन आयात महंगा हो गया है.

रुपया एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के बीच बेहतर प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में से एक था. इंडोनेशियाई रुपिया में दो फीसदी, ताइवानी $ में 0.34 फीसदी, दक्षिण कोरियाई वोन में 0.76 फीसदी, येन में 0.28 फीसदी, थाई बात में 0.21 प्रतिशत और युआन में 0.18 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. हालांकि, मध्यावधि में पिछले दो सालों में रुपये में नौ प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है.

गिरावट के कारण

भू-राजनीतिक अस्थिरता से निवेशकों पर बड़ा असर पड़ता है. अभी इजराइल-फिलिस्तीन, रूस-यूक्रेन युद्ध, ईरान-इजराइल संघर्ष संभावित रूप से अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकता है. इससे वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी होगी, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी.

इसके परिणामस्वरूप अमेरिकी फेड एवं केंद्रीय बैंकों द्वारा उपभोक्ता खर्च पर रोक लगाने के लिए ब्याज दरों में कटौती की आसार कम हो जाती है. अमेरिका में ऊंची दरें निवेशकों को हिंदुस्तान समेत दुनिया के विभिन्न हिस्सों से अमेरिका में पैसा स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं.

तेल की कीमतों पर असर

कमजोर रुपया आयात को महंगा बनाता है जबकि, निर्यातकों को लाभ पहुंचता है. दरअसल, हिंदुस्तान वस्तुओं और सेवाओं का सही आयातक है. वित्त साल 2023-24 की पहली छमाही में इसका चालू खाता घाटा 9.2 बिलियन $ है. रुपये में गिरावट के चलते इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी से लेकर प्लास्टिक और रसायनों आदि कई उत्पादों पर व्यापक असर पड़ता है. इसका सबसे अधिक असर ऑयल की कीमतों पर पड़ रहा है.

डिमांड-सप्लाई  पर मूल्य निर्भर

मुद्रा का मूल्य डिमांड-सप्लाई पर निर्भर करता है, जो निवेश के लक्ष्य के रूप में किसी राष्ट्र के समग्र आकर्षण पर निर्भर करता है. अगर, विदेशी निवेशक विनिर्माण इकाइयां (एफडीआई) स्थापित करने के लिए आते हैं, बाजारों और कंपनियों में निवेश करते या निर्यात बढ़ता है तो रुपये का मूल्य बढ़ता है.

यदि रुपये का मूल्य चिंताजनक रूप से गिरता है तो आरबीआई अपने विदेशी मुद्रा भंडार से $ बेचकर हस्तक्षेप कर सकता है. इसके अतिरिक्त यूएस फेड के साथ प्रतिस्पर्धा करने और निवेशकों को अच्छा रिटर्न देने के लिए ब्याज दरें भी बढ़ा सकता है.

हालात बेहतर होने की संभावना

ऐसे समय में रुपये में गिरावट आई है, जब हिंदुस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 648.56 अरब $ के रिकॉर्ड स्तर पर है. पांच अप्रैल को खत्म हफ्ते में विदेश मुद्रा भंडार में 2.98 मिलियन $ का बढ़ोत्तरी हुआ. इसमें लगातार सात हफ्ते तक वृद्धि हुई है.

इससे आरबीआई को धनराशि खर्च के लिए काफी गुंजाइश मिलती है. मंगलवार को उसने रुपये को और नीचे जाने से रोकने के लिए अनुमानित 100-200 मिलियन $ को बेचने के लिए हस्तक्षेप किया. उसने ऐसा यूक्रेन युद्ध और यूएस फेड द्वारा दरें बढ़ाए जाने के बाद वर्ष 2022 में भी किया था. जानकारों को आशा है कि आरबीआई आगे की गिरावट को रोकने के लिए हस्तक्षेप करेगा.

 

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