किसान ने इस तकनीक से चार से पांच माह में उगा दी केसर
बीकानेर। राजस्थान की भयंकर गर्मी और तपते रेतीले धोरों में इन दिनों सुंदर नजारा है। मरुस्थल में कश्मीर की बहार आ गयी है। ठंडे प्रदेश की फसल रेतीले प्रदेश में लहलहा रही है। ये प्रकृति के करिश्मे के साथ युवा किसान की मेहनत का फल है। इस कीमती और नाजुक फसल का बाजार रेट सुनकर चक्कर आ जाएंगे। बाजार में इसका मौजूदा मूल्य 3 लाख रुपए प्रति किलो है।
सुनकर कानों को एक बार विश्वास नहीं होगा। कश्मीर जैसे ठंडे प्रदेश की नाजुक फसल केसर अब मरुस्थलीय क्षेत्र बीकानेर में उग रही है। 45 डिग्री के तापमान वाले शहर में केसर उगायी गयी है। यहां के एक युवा किसान सुनील जाजड़ा ने ये प्रयोग किया और वो सफल रहा।
मरुस्थल में कश्मीर
मरुस्थल में कश्मीर की फसल उगाना सरल नहीं था। बिल्कुल ठंडे प्रदेश की गर्म प्रदेश में पैदावार सोचना भी कठिन भरा है। लेकिन सुनील ने एयरोपोनिक्स तकनीक से केसर की खेती कर एक नायाब उदाहरण प्रस्तुत किया है। कश्मीर की वादियों के पांच डिग्री तक न्यूनतम तापमान और 80 प्रतिशत से अधिक नमी वाले वातावरण को यहां रेगिस्तान में कृत्रिम रूप से एक कमरे में तैयार कर केसर की खेती की। सुनील ने एयरोपोनिक्स तकनीक से 10 गुणा 18 फीट के एक कमरे में केसर की खेती की है।
बहुत नाजुक और महंगी है फसल
सुनील जाजड़ा ने कहा लॉक डाउन के दौरान जब वो फुरसत में थे तब उन्होंने केसर की खेती पर रिसर्च प्रारम्भ किया। फिर पता चला कि एयरोपोनिक्स तकनीक से केसर किसी भी स्थान उगा सकते हैं। उन्होंने साल 2020 में इस पर कोशिश प्रारम्भ किया और आखिरकार कामयाबी मिल ही गयी। एयरोपोनिक्स तकनीक यहां पूरी तरह सफल रही। इस तकनीक पर 6 लाख रुपए खर्च हुए और 4 लाख का फायदा भी हो गया। अपनी कामयाबी से उत्साहित सुनील पर दोबारा केसर उगाने की तैयारी में हैं। जुलाई और अगस्त में केसर लगाया जाता है जो अक्टूबर-नवंबर में तैयार हो जाती है। सुनील बताते हैं-मैंने केशर की सुपीरियर क्वालिटी लगाई है।
मरुस्थल में बहुत मुश्किल है केसर की खेती
सुनील ने कहा पहली बार केसर के बीज खरीदकर लाने पड़े। अब कई गुणा बीज हर वर्ष तैयार होते रहेंगे। एयरोपोनिक्स तकनीक से तैयार किए कक्ष में तापमान और जरूरी नमी मेंटेन रखने और फूल खिलने के लिए महत्वपूर्ण यूवी अल्ट्रावॉयलेट रोशनी पर बिजली का खर्च ही लगेगा। दिन में दो बार कमरे का तापमान बदलना पड़ता है। वे बताते हैं मेरा पुश्तैनी काम किसानी खेतीबाड़ी का ही है। मैंने परंपरागत खेती के साथ आधुनिक खेती की तरफ जाने का सोचा। केसर कम स्थान में अधिक फायदा दे सकती है।
ऐसे प्रारम्भ की खेती
सुनील बताते हैं इस बार वे एक किलो केसर उगाने की तैयारी में हैं। स्नातकोत्तर तक शिक्षित और किसान के बेटे सुनील जाजड़ा बीकानेर के चोपड़ाबाड़ी, गंगाशहर क्षेत्र में रहते हैं। अप्रेल 2020 में लॉकडाउन के दौरान उनका टायर का शोरूम बंद हो गया। तब एक वीडियो देख केसर की खेती करने का विचार आया। वर्ष 2021 में श्रीनगर गए। वहां केसर की खेती देखी और कृषि यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों से बात की। फिर चार-पांच बार श्रीनगर जाकर किसानों से केसर की खेती के लिए तापमान और नमी की जानकारी जुटाई और बीकानेर आकर खेती प्रारम्भ की।
एक से दस हुए बल्ब
सुनील ने केसर की एक फसल लेने के बाद दिसम्बर में ट्रे में बचे जड़नुमा बल्ब को कमरे के बाहर 30 गुणा 45 फीट की क्यारी बनाकर मिट्टी में खाद देकर बो दिया है। यह लहसुन और प्याज की तरह उग आए हैं। नौ महीने खाद-पानी देते रहेंगे और मिट्टी के भीतर एक बल्ब से दस से बारह बल्ब बन जाएंगे।