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एक 26 वर्षीय महिला ने बिना ओवरी के IVF तकनीक की मदद से दिया जुड़वा बच्चों को जन्म

कभी ऐसा सुना है कि बिना ओवरी (अंडाशय) वाली स्त्री मां बन सकती है? जी हां, यह मेडिकल साइंस के क्षेत्र में एक चमत्कारी घटना है हाल ही में एक 26 वर्षीय स्त्री ने (जिनके अंडाशय काम नहीं करते थे) IVF तकनीक की सहायता से जुड़वा बच्चों को जन्म दिया है यह ना केवल उस स्त्री के लिए खुशी की समाचार है बल्कि उन सभी निसंतान दंपत्तियों के लिए भी एक आशा की किरण है, जो प्राकृतिक रूप से गर्भधारण नहीं कर पा रहे हैं

टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, गुरुग्राम के एक हॉस्पिटल में 26 वर्ष की एक स्त्री ने बिना ओवरी के आईवीएफ की सहायता से जुड़वा बच्चों को जन्म दिया है डॉक्टरों के अनुसार, स्त्री हाइपोपिट्यूटेरिज्म नामक रोग से पीड़ित थी, जिसमें शरीर ग्रंथि (पिट्यूटरी ग्लैंड) द्वारा बनाए जाने वाले हार्मोन कम बनते हैं साथ ही उन्हें एडिसन बीमारी भी था, जिसमें एड्रेनल ग्लैंड पर्याप्त हार्मोन नहीं बना पातीं जब स्त्री हॉस्पिटल में भर्ती हुईं, तो उन्होंने डॉक्टरों को अनियमित पीरियड्स और गर्भधारण न कर पाने की परेशानी बताई

डॉक्टर का बयान
दो वर्ष के उपचार के बाद, उन्हें प्रेग्नेंसी के लिए आईवीएफ प्रक्रिया प्रारम्भ की गई डॉक्टरों के अनुसार, हाइपोपिट्यूटेरिज्म की संभावित रेट 1,00,000 लोगों में 45.5 मुद्दे है सीके बिड़ला हॉस्पिटल के प्रसूति एवं महिला बीमारी विभाग की निदेशिका डाक्टर अरुणा कालरा के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने जून 2019 में रोगी के भर्ती होने पर सबसे पहले स्टेरॉयड और सप्लिमेंट्स देने की राय दी लेकिन, उनके ब्लड शुगर लेवल में अचानक गिरावट आई और वे बेहोश हो गईं जांच में पता चला कि उनकी पिट्यूटरी ग्रंथि काम नहीं कर रही थी, यही उनके हाइपोथायरायडिज्म और एडिसन बीमारी का कारण था इस वजह से उनके पीरियड्स बंद हो गए थे और उनके अंडाशय काम करना बंद कर चुके थे

2021 में डॉक्टरों ने आईवीएफ की दी सलाह
डॉक्टरों का बोलना है कि उनका शरीर किसी भी तरह का डिफेंसिव हार्मोन उत्पन्न नहीं कर पाता था और तुरंत स्टेरॉयड इलाज न मिलने पर हल्का बुखार, खांसी, जुकाम या किसी भी तरह का संक्रमण होने पर वह बेहोश हो सकती थीं 2021 में उनकी स्थिति स्थिर होने के बाद, डॉक्टरों ने आईवीएफ की राय दी उन्होंने 12 फरवरी को जुड़वा बच्चों को जन्म दिया

दुर्लभ है इस तरह की प्रेग्नेंसी
डॉ कालरा ने कहा कि हाइपोपिट्यूटेरिज्म वाली रोगी में सफल प्रेग्नेंसी दुर्लभ है क्योंकि यह स्थिति प्रेग्नेंसी की जटिलताओं जैसे गर्भपात, एनीमिया, प्रेग्नेंसी के दौरान हाई ब्लड प्रेशर, प्लेसेंटल एब्रप्शन, प्रीमैच्योर बर्थ और प्रसव के बाद अधिक ब्लीडिंग के बढ़े हुए खतरे से जुड़ी होती है ऐसी रोगियों की बारीकी से नज़र की जानी चाहिए क्योंकि हो सकता है कि उनकी दवाओं में परिवर्तन की जरूरत हो और पेट में पल रहे बच्चे के विकास के आकलन के लिए समय-समय पर अल्ट्रासाउंड माप भी जरूरी होते हैं

हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी
डॉ कालरा ने आगे बोला कि मुख्य इलाज हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी है, जिसमें ग्लूकोकार्टिकॉइड, थायरॉयड हार्मोन, संभोग हार्मोन और ग्रोथ हार्मोन जैसे कम हार्मोनों को शामिल किया जाता हैइस रोगी का यात्रा मुश्किल था क्योंकि हाइपोपिट्यूटेरिज्म जानलेवा हो सकता है उपचार के बाद, उन्होंने हमारे हॉस्पिटल में सफलतापूर्वक दो बच्चों को जन्म दिया

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