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Parenting Tips: माता-पिता को बच्चों की परवरिश में लाने होंगे ये बदलाव

आजकल परवरिश के ढंग में सिटरवाइजिंग स्टाइल काफी प्रचलित हो रहा है, क्योंकि इससे माता-पिता को बच्चों के साथ रिश्ता मजबूत बनाने का मौका मिलता है. आमतौर पर माता-पिता बच्चों पर रोक-टोक करते रहते हैं और उन पर नजर रखने के लिए हर समय उनके आगे-पीछे घूमते रहते हैं, लेकिन सिटरवाइजिंग पैरेंटिंग में ऐसा नहीं है. इसमें माता-पिता बच्चे के पीछे-पीछे भागने के बजाय उस के खेलते समय एक स्थान बैठकर उस पर नजर रखते हैं और आवश्यकता पड़ने पर ही उसे दूर से ही गाइड लाइन देते हैं.

अगर आप भी नए-नए माता-पिता बने हैं तो आपको भी इस नयी प्रचलित पैरेंटिंग स्टाइल के बारे में जरूर जानना चाहिए, क्योंकि नए माता-पिता बच्चे की परवरिश को लेकर काफी चिंतित रहते हैं और हमेशा बच्चे के इर्द-गिर्द रहने की प्रयास करते हैं. ऐसा वे इसलिए करते हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि बच्चे को कभी कोई कठिनाई न हो, लेकिन बच्चे के संपूर्ण विकास के लिए उसे कुछ समय अकेला भी छोड़ना चाहिए.

दोनों के लिए फायदेमंद

सिटरवाइजिंग पैरेंटिंग में माता-पिता बच्चे को दूर से खेलते हुए देखकर उनकी मॉनिटरिंग करते हैं और सिर्फ़ आवश्यकता पड़ने पर ही उन्हें गाइड करते हैं. ऐसा करने से माता-पिता को तनाव कम करने में सहायता मिलती है, साथ ही इसमें बच्चों को भी स्वतंत्र रूप से खेलने, दोस्त बनाने और अपने हिसाब से गेम को खेलने का पूरा मौका मिलता है. इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें जनरेशन गैप कम करने और उनके बीच बॉन्डिंग बढ़ाने पर अधिक बल दिया जाता है. इससे आपसी प्यार, दोस्ती और भरोसा बढ़ता है.

आत्मनिर्भरता का भाव

इस परवरिश से बच्चे आत्मनिर्भर बनते हैं और अपने इर्द-गिर्द के माहौल को अधिक बेहतर ढंग से समझ पाते हैं. उन्हें समझ आता है कि उन्हें स्वयं अपनी परेशानियों को हल कैसे निकालना है. यदि वे इस दौरान गिर भी जाते हैं तो अपने आप खड़े होकर दोबारा खेलने लगते हैं. ऐसे में वे मुश्किल परिस्थितियों में भी स्वयं को संभालकर आगे बढ़ना और अपना फैसला स्वयं लेना जैसे जरूरी सबक सीखते हैं.

माता-पिता के साथ बच्चे

जब माता-पिता बच्चों के खेल में शामिल हो जाते हैं तो उनका खेल का तरीका बदल जाता है और बच्चे तुरंत सारी जिम्मेदारी माता-पिता पर छोड़ देते हैं. इससे उन्हें अन्य बच्चों के साथ घुलने-मिलने के अवसर भी कम मिलते हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप उनके साथ न खेलें, मगर कभी-कभी दूर बैठकर उन्हें अपने ढंग से खेलने दें. ऐसा करने से माता-पिता की उपस्थिति बच्चों में आत्मविश्वास को बढ़ाएगी, साथ ही वे स्वयं ही अपनी समस्याओं को हल करने की प्रयास करेंगे और आवश्यकता पड़ने पर ही आपकी सहायता लेंगे.

उलझेंगे तो स्वयं ही सुलझेंगे

बाल मनोवैज्ञानिक गार्गी बताती हैं, ऐसा अक्सर देखा गया है कि माता-पिता बच्चों को अकेला एकदम नहीं छोड़ते हैं और खेलते हुए भी उन्हें रोकते-टोकते रहते हैं. ऐसा करने से भले ही माता-पिता बच्चों को गलतियां करने से रोक लें, लेकिन यह बच्चों के विकास के लिए ठीक नहीं होता है. ऐसा करते रहने से बच्चे मुश्किल परिस्थितियों में समस्याओं का निवारण स्वयं नहीं निकाल पाते हैं, क्योंकि वे पूरी तरह माता-पिता पर निर्भर हो जाते हैं.

इसलिए बच्चे चाहे छोटे हों या बड़े, दोनों ही स्थितियों में उन्हें कुछ समय स्वयं को संभालने के लिए भी देना चाहिए. इससे न सिर्फ़ वे भविष्य में बेहतर फैसला ले पाएंगे, बल्कि परेशानी से निपटने के नए ढंग भी सीखेंगे, जिससे उनका चरित्र निखरेगा और वे स्वयं के लिए निर्णय लेने से कतराएंगे नहीं.

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