सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर लगाई रोक, जानें इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में…
Electoral bonds: उच्चतम न्यायालय ने 15 फरवरी 2024 को अपने एक अहम निर्णय में सियासी पार्टियों को चंदे के तौर पर मिलने वाले इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगा दी है। हालांकि, हिंदुस्तान में सियासी पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने के नाम पर इसे लागू किया गया था। सबसे बड़ी बात यह है कि आखिर ये इलेक्ट्रिक बॉन्ड क्या है और सियासी पार्टियों को इसके जरिए चंदा कैसे मिलता है, यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है। आइए, जानते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में…
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड
राजनीतिक चंदे में नकदी पर रोक और उसमें पारदर्शिता लाने के लिए केंद्र की मोदी गवर्नमेंट ने साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड की आरंभ की थी। इसके पीछे गवर्नमेंट का मकसद यह था कि सियासी पार्टियों के पास पारदर्शी ढंग से साफ-सुथरा धन आएगा। सियासी पार्टियों को चंदा देने के लिए व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदते हैं, जिसे इलेक्टोरल बॉन्ड बोला जाता है। सियासी पार्टियां इस इलेक्टोरल बॉन्ड को बैंकों में भुनाकर धनराशि हासिल करती हैं।
क्यों हुई इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत
देश में चुनावी चंदे की प्रबंध में सुधार के लिए मोदी गवर्नमेंट ने 2 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की अधिसूचना जारी की थी। इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 के द्वारा लाए गए थे। यह बॉन्ड वर्ष में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते हैं। इसके लिए सियासी पार्टियों को चंदा देने वाले लोग, कंपनियां और संस्थाएं बैंक की शाखा में जाकर या उसकी वेबसाइट पर औनलाइन जाकर इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदते हैं। यही इलेक्टोरल बॉन्ड सियासी पार्टियों के फंड में डाला जाता है। हालांकि, केंद्र गवर्नमेंट ने दावा किया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से चुनावी चंदे में पारदर्शिता आएगी। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में लिखा था, ‘इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना सियासी फंडिंग की प्रबंध में ‘साफ-सुथरा’ धन लाने और ‘पारदर्शिता’ बढ़ाने के लिए लाई गई है।’
कहां मिलता है इलेक्टोरल बॉन्ड
राजनीतिक पार्टियों को चुनावी चंदा के रूप में भेंट किया जाने वाला इलेक्टोरल बॉन्ड एसबीआई 29 शाखाओं द्वारा जारी किया जाता है। इन शाखाओं में नयी दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की शाखाएं शामिल हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 तक इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री के 12 चरण पूरे हो चुके थे। इस दौरान तक इलेक्टोरल बॉन्ड का सबसे अधिक 30.67 प्रतिशत हिस्सा मुंबई में बेचा गया था और इसका सबसे अधिक 80.50 प्रतिशत हिस्सा दिल्ली में भुनाया गया था।
इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों को मिलती है टैक्स से छूट
चुनावों में सियासी पार्टियों को चंदा देने वाला कोई भी दानदाता अपनी पहचान छुपाते हुए एसबीआई की किसी भी शाखा से एक करोड़ रुपये मूल्य तक के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद कर अपनी पसंद के सियासी दल को चंदे के रूप में दे सकता है। ये प्रबंध दानकर्ताओं की पहचान छुपाती है और इससे टैक्स में भी छूट मिलती है। आम चुनाव में कम से कम 1 प्रतिशत वोट हासिल करने वाले सियासी दल को ही इस बॉन्ड से चंदा हासिल हो सकता है।
10 लाख से एक करोड़ तक दे सकते हैं चुनावी चंदा
एक व्यक्ति, लोगों का समूह या एक कॉर्पोरेट बॉन्ड जारी करने वाले महीने के 10 दिनों के भीतर एसबीआई की निर्धारित शाखाओं से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है। जारी होने की तिथि से 15 दिनों की वैधता वाले बॉन्ड 1000 रुपये, 10000 रुपये, एक लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के गुणकों में जारी किए जाते हैं। ये बॉन्ड नकद में नहीं खरीदे जा सकते और खरीदार को बैंक में केवाईसी (अपने ग्राहक को जानो) फॉर्म जमा करना होता है। सियासी पार्टियां एसबीआई में अपने खातों के जरिए बॉन्ड को भुना सकते हैं। यानी ग्राहक जिस पार्टी को यह बॉन्ड चंदे के रूप में देता है वह इसे अपने एसबीआई के अपने निर्धारित एकाउंट में जमा कर भुना सकता है। पार्टी को नकद भुगतान किसी भी हालात में नहीं किया जाता और पैसा उसके निर्धारित खाते में ही जाता है।
विदेश से चंदा पाना संभव
इलेक्टोरल बॉन्ड की आरंभ करते समय इसे ठीक ठहराते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में लिखा था, ‘इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना सियासी फंडिंग की प्रबंध में ‘साफ-सुथरा’ धन लाने और ‘पारदर्शिता’ बढ़ाने के लिए लाई गई है।’ इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 में परिवर्तन के द्वारा लाए गए थे। वास्तव में इनसे पारदर्शिता पर जोखिम और बढ़ा है।