Rajasthan News: यहां से अपनी पत्नी कनिका को मैदान में उतार सकते हैं हनुमान
नागौर के राजनीतिक इतिहास में पहली बार बहू और बेटी के बीच मुकाबले की तैयारी है. यहां से बीजेपी प्रत्याशी ज्योति मिर्धा नागौर के मिर्धा परिवार की बेटी हैं और उनका ससुराल हरियाणा में है. दूसरी तरफ नागौर की बहू कनिका बेनीवाल हैं, जो खींवसर विधायक और पूर्व सांसद हनुमान बेनीवाल की पत्नी हैं. कांग्रेस पार्टी ने इस सीट के लिए हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से गठबंधन का औपचारिक घोषणा कर दिया है. इसके बाद हनुमान यहां से अपनी पत्नी कनिका को मैदान में उतार सकते हैं.
भाजपा प्रत्याशी पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा के सामने आरएलपी की तरफ से कनिका बेनीवाल को मैदान में उतारने की संभावनाएं यदि ठीक बैठती हैं तो नागौर लोकसभा सीट पहली बार दो स्त्रियों की भिड़न्त देखेगी.
सूत्रों के अनुसार हनुमान खींवसर सीट नहीं छोड़ना चाहते हैं और राजनीतिक नजरिये से देखा जाए तो उनके लिए लाभ वाला भी यही है. यदि नागौर से उनकी पत्नी कनिका चुनाव जीतती हैं तो आरएलपी के खाते में एक विधानसभा और एक लोकसभा सीट दो सीटें जुड़ जाएंगी.
हालांकि कांग्रेस पार्टी चाहती थी कि गठबंधन में हनुमान बेनीवाल ही चुनाव लड़ें. इसी के चलते अब तक गठबंधन की वार्ता भी अटकी हुई थी लेकिन जानकारी के अनुसार कांग्रेस पार्टी के सभी नेता इस गठबंधन के पक्ष में थे. कहा जा रहा है कि सचिन पायलट, अशोक गहलोत और गोविंद सिंह डोटासरा तीनों ने ही हनुमान से गठबंधन को लेकर लॉबिंग की थी.
5 लोकसभा सीटों पर मिलेगा हनुमान का फायदा
आरएलपी से गठबंधन के बाद कांग्रेस पार्टी को कम से कम 5 लोकसभा सीटों पर लाभ मिलता नजर आ रहा है. इनमें नागौर के अतिरिक्त बाड़मेर, राजसमंद, अजमेर, जोधपुर और जयपुर ग्रामीण की सीट शामिल हैं.
दो बार ज्योति की हार की वजह बन चुके हैं हनुमान
नागौर लोकसभा सीट पर हनुमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा 2 बार सीधे आमने-सामने हो चुके हैं. वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में हनुमान ने ज्योति को हराकर लोकसभा सीट जीती थी. वहीं 2014 के लोकसभा चुनावों में ज्योति के हारने की वजह भी हनुमान बेनीवाल को ही माना गया क्योंकि उन्होंने ज्योति के वोट काटने का काम किया था.
भाजपा ने क्यों नहीं किया आरएलपी से एलायंस
बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनावों में नागौर की सीट के लिए हनुमान बेनीवाल साथ गठबंधन किया था. हालांकि किसान आंदोलन में हनुमान इस गठबंधन से बाहर गए गए थे. इसके बाद नागौर में भाजपा ने हनुमान के विकल्प के तौर पर मिर्धा परिवार पर हाथ रखा. भाजपा चाहती है कि हनुमान को नागौर से बाहर ही रखा जाए क्योंकि नागौर में उनके रहते भाजपा की राजनीति पनप नहीं पा रही है.
कुछ यूं रहा है नागौर सीट का इतिहास
1977 में नाथूराम मिर्धा (कांग्रेस)
1980 में नाथूराम मिर्धा (कांग्रेस)
1984 में रामनिवास मिर्धा (कांग्रेस)
1989 में रामनिवास मिर्धा (जनता दल)
1991 में नाथूराम मिर्धा (कांग्रेस)
1996 में नाथूराम मिर्धा (कांग्रेस)
1997 में भानु प्रकाश मिर्धा (भाजपा)
1998 में राम रघुनाथ चौधरी (कांग्रेस)
1999 में रामरघुनाथ चौधरी (कांग्रेस)
2004 में भंवर सिंह डांगावास (भाजपा)
2009 में ज्योति मिर्धा (कांग्रेस)
2014 में सीआर चौधरी (भाजपा)
2019 में हनुमान बेनीवाल (आरएलपी-एनडीए गठबंधन)
2024 में ? (आरएलपी-I.N.D.I.A गठबंधन)
नागौर निर्वाचन क्षेत्र में लाडनूं, जायल, डीडवाना, नागौर, खींवसर, मकराना, परबतसर और नवां कुल आठ विधानसभा सीटें आती हैं. नागौर लोकसभा सीट पर 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ था. यहां मुख्य रूप से तीन जातियां हैं. जाट, मुसलमान और एससी में मेघवाल. इनमें दो जातियां जिधर का रुख कर लेती हैं, चुनाव उसी दिशा में मुड़ना तय हो जाता है.