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Lok Sabha Election 2024 : नतीजतन रायपुर आज भाजपा के वर्चस्व की हैं सीट

1952 में अस्तित्व में आयी रायपुर संसदीय सीट फकत निर्वाचन क्षेत्र नहीं, वरन प्रतिष्ठा-पीठ है रायपुर के शुक्ल-बंधुओं का बरसों-बरस इस अंचल और प्रदेश की राजनीति में वर्चस्व रहा अग्रज श्यामाचरण और अनुज विद्याचरण ने क्रमश: प्रदेश और राष्ट्र की राजनीति में तगड़ी पैठ बनाये रखी करीब चौथाई सदी तक यहां कांग्रेस पार्टी की धमक रही, जो सन् 1977 में जनता पार्टी के पुरुषोत्तम लाल कौशिक के हाथों वीसी शुक्ल की शिकस्त से टूटी यद्यपि सन 80 और 84 के चुनाव कांग्रेस पार्टी के सर्वादयी नेता केयूर भूषण और सन 91 में वीसी पुन: जीते, लेकिन सन 89 के चुनाव में रमेश बैस जीत के साथ परिदृश्य में ऐसे उभरे कि आनें वाले करीब 25 वर्षों तक उन्होंने यहां से जीत का अटूट सिलसिला बनाये रखा संप्रति महाराष्ट्र के गवर्नर बैस ने यहां से सत्यनारायण शर्मा जैसे जमीनी नेता, श्यामाचरण जैसे महारथी और भूपेश बघेल जैसे धाकड़ नेता को धूल चटायी

रायपुर से बैस की जीत-दर-जीत में पार्टी, काडर और संसाधनों के अतिरिक्त उनके कुर्मी होने का विशेष सहयोग रहा वस्तुतः कुर्मी और साहू यहां के प्रमुख जातीय समुदाय और वोट बैंक हैं चुनावी शह और मात में उनकी कारगर किरदार रहती है रायपुर, बलौदा बाजार, भाटापारा, धरसींवा, आरंग और अभनपुर को मिलाकर बने इस क्षेत्र से दोहरे अगुवाई के अनुसार सन 52 में भूपेंद्र नाथ मिश्रा और मिनी माता तथा सन 57 में नरेंद्र बहादुर सिंह और केसरी देवी संसद में पहुंचे अगले दशक के आम चुनावों में केशर कुमारी देवी और लखनलाल गुप्ता जीते, तो सन 71 में वीसी शुक्ल सन 89 में पहली बार जीतने के बाद सन 96 से सन 2014 के मध्य छह चुनावों में बैस ने विजय पताका फहरायी

नतीजतन रायपुर आज बीजेपी के वर्चस्व की सीट है इसका प्रमाण यह कि सन 2019 के चुनाव में सुनील सोनी जैसे प्रत्याशी ने बीजेपी के खाते में करीब साढ़े तीन लाख वोटों से जीत दर्ज की थी इस प्रतिष्ठित सीट पर सबसे कश्मकश जंग सन 2009 के चुनाव में हुई थी, जब बीजेपी के कुर्मी उम्मीदवार रमेश बैस ने कांग्रेस पार्टी के कुर्मी प्रत्याशी भूपेश बघेल को करीब 57 हजार वोटों से हराया था बीजेपी ने इस मानीखेज सीट से बहुत सोच विचार कर अपने अजेय योद्धा बृजमोहन अग्रवाल को मैदान में उतारा है, जिन्होंने हाल के असेंबली चुनाव में सर्वाधिक मतों से जीत का कीर्तिमान रचा है बृजमोहन चुनावी प्रबंधन में बेजोड़ माने जाते हैं वह सूबे में शीर्ष पद के दावेदार भी रहे हैं ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि परंपरा के निर्वाह के क्रम में वह कितने मतों का दायरा लांघते हैं? इसी के साथ वीसी शुक्ल, पुरुषोत्तम कौशिक और रमेश बैस के केंद्र में ओहदे पाने का कीमती क्षेपक और गृह प्रदेश की राजनीति में दबदबे का संदर्भ भी जुड़ा हुआ है हालांकि कांग्रेस पार्टी ने विकास उपाध्याय को अपना प्रत्याशी घोषित कर सूझबूझ का परिचय दिया है, लेकिन बृजमोहन अग्रवाल की ताकत और तजुर्बे के आगे कांग्रेस पार्टी की उम्मीदें क्षीण नजर आती हैं

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