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हैदराबाद सीट पर अभी तक अजेय थे असदुद्दीन ओवैसी लेकिन…

4 बार के सांसद और ऑल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी हैदराबाद लोकसभा का चुनाव कभी लड़े नहीं, बल्कि जीते ही हैं. जीत का अंतर भी लाखों में…. कोई पार्टी उनके सामने इतना दमदार उम्मीदवार ही नहीं उतार सकी कि उन्हें चुनाव लड़ना पड़ता. तभी, वह 20 साल से अजेय हैं. उनके पिता भी 20 साल तक यूं ही जीतते आए थे. हालांकि, इस बार का मुकदमा अलग है. उनका सीधा मुकाबला बीजेपी की डाक्टर माधवी लता से है. वह राजनीति में नयी हैं, लेकिन वाकपटुता में निपुण. तभी, पांचवीं बार जीतने के लिए ओवैसी को डटकर  चुनाव लड़ना पड़ रहा है.

हैदराबादियों का ओवैसी परिवार की तीन पीढ़ियों से राजनीतिक रिश्ता चला आ रहा है. मौजूदा सांसद ओवैसी के दादा अब्दुल वाहिद ओवैसी ने 1957 में हैदराबाद नगर निगम से राजनीति प्रारम्भ कर दी थी. उन्होंने बिखरी पड़ी मजलिस और कौम को एक सूत्र में पिरो लिया. ओवैसी के पिता सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी 1980 से 1999 तक लगातार 6 बार सांसद चुन लिए गए. ओवैसी की राजनीतिक राह हमेशा फूलों से ही भरी रही.

वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र बताते हैं कि ओवैसी के पिता को 1996 में बीजेपी के वेंकैया नायडू और 1999 में बीबाल रेड्डी से तगड़ी चुनौती भी दी गई थी. फिर, फासला बढ़ता चला गया . 2008 में हैदराबाद सीट का परिसीमन हुआ और ग्रामीण अंचल के तंदूर, विकाराबाद और चेवल्ला विधानसभा क्षेत्र कट गए. जिससे हैदराबाद सीट पुराने शहर तक सिमट गई. यहां से उन्हें हरा पाना बहुत ही अधिक कठिन है.

इस तर्क के पीछे मजबूत वजह यह है कि हैदराबाद की सात विधानसभा सीटों में से 6 पर ओवैसी की पार्टी ही काबिज है. उनके भाई अकबरुद्दीन ओवैसी यहीं की चंद्रयानगुट्टा से विधायक हैं. भाजपा केवल गोशामहल से जीती, जहां के विधायक टी राजा सिंह स्वयं लोकसभा का टिकट मांग रहे थे, लेकिन पार्टी ने डाक्टर माधवी लता को दे दिया. इससे वह जाहिरा तौर पर नाखुश हो चुके है.

भाजपा के लिए चुनौती यही नहीं है. ओवैसी की बीते चुनाव में ढाई लाख मतों से जीत हासिल हुई. इस खाई को पाटना सरल नहीं है. माधवी लता आरोप लगा रही हैं कि ओवैसी फर्जी मतों के सहारे जीतते चले जा रहे है. हालांकि, इस बार हजारों की संख्या में वोट काटे भी जा चुके है. बावजूद इसके ओवैसी की ताकत का विरोधियों को पूरा अंदाजा है. तभी, माधवी लता के नामांकन के लिए केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने रोड शो भी किया. विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रबुद्ध सम्मेलन तक कर दिए है. राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित कई नेताओं के कार्यक्रम भी तय हैं. साफ है कि ओवैसी के लिए बीजेपी खुला मैदान नहीं छोड़ने वाली.

ताजा चुनौतियां ओवैसी भी समझ रहे हैं. तभी, समर्थकों का उत्साह बरकरार रखने के लिए पहली बार उन्होंने जुलूस निकालकर नामांकन भी पूरा किया है. गली-गली प्रचार के दौरान बीफ शॉप जिंदाबाद जैसे नारे भी लगा दिए है. जिसकी निंदा हुई, तो सफाई में बोला कि वह इडली शॉप जिंदाबाद भी कहते हैं. चुनावी माहौल गरमाने से उनके समर्थक जोश में हैं.

हार-जीत के तर्क: संतोष नगर के सैयद अरबाज कहते हैं कि राष्ट्र में पेट्रोल समाप्त हो सकता है, पर हैदराबाद से ओवैसी नहीं. उनकी जीत पक्की है. लोग उन्हें मुस्लिम होने के नाते वोट देते हैं. भाजपा प्रत्याशी ने धार्मिक स्थल पर तीर चलाने का जो इशारा किया था, वह उन्हीं पर लगने वाला है. चारमीनार पर मिले वेंकटेश कहते हैं कि ओवैसी इसलिए जीतते हैं, क्योंकि मुस्लिम पढ़े-लिखे भी नहीं है. ओवैसी फिर जीत रहे हैं…? होटल व्यवसायी कदीरुद्दीन इस बारें में बोलते है, क्या फर्क पड़ना है. पीएम मोदी भी हिंदू-मुसलमान कर रहे हैं, ओवैसी भी. बेरोजगारी देखो कहां आ गई. मंदिर-मस्जिद बनाने से यह घट गई क्या? मुझे तो दोनों मिले लगते हैं.

माधवी लता का तीर सबको चुभा: खबरों का बोलना है कि रामनवमी के दिन बेगम बाजार क्षेत्र में माधवी लता के तीर की गूंज चौतरफा है. इस तीर को अपने चुनावी तरकश पर रखते हुए ओवैसी ने बीजेपी पर निशाना साधा. कहा है कि यह भाजपा की घृणा फैलाने वाली मानसिकता का सबूत है. वैसे, इस तीर की चुभन माधवी लता को भी महसूस होने लगी है. उन्होंने इसे ‘अमन का तीर’ बताकर सफाई दी, माफी तक मांगी. हुंकार भरने वाली माधवी के नरम पड़ने की वजह पसमांदा मुस्लिम हैं, जिनका समर्थन पाने की वह जद्दोजहद में अब भी लगी हुई है.

डमी ही दिखे कांग्रेस-बीआरएस प्रत्याशी: इतना ही नहीं ओवैसी को बीजेपी की बी-टीम बताने वाली कांग्रेस पार्टी उनके खिलाफ कभी मजबूत प्रत्याशी नहीं उतार सकी. यही स्थिति बीआरएस की भी रही है. बोला जाता है कि ओवैसी खुलेआम कुछ भी कहें, तेलंगाना में जिसकी गवर्नमेंट होती है, उससे मिलकर ही चलते हैं. पहले BRS के करीब थे, अब कांग्रेस पार्टी के हैं. माधवी लता कहती हैं, कांग्रेस पार्टी ने जिलाध्यक्ष मो वलीउल्लाह समीर को डमी रूप में ही उतारा है. BRS से जी श्रीनिवास यादव भी बस नाम के ही प्रत्याशी हैं.

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