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मोदी सरकार एक देश-एक चुनाव पर क्यों दे रही है जोर…

One Nation One Election: पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के नेतृत्व वाली एक समिति ने 14 मार्च को ‘एक देश, एक चुनाव’ अभियान पर रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है इस रिपोर्ट का लब्बो-लुआब इसी से समझ लीजिए कि इसमें लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव रखा गया है मुद्दे की जानकारी रखने वालों का बोलना है कि राष्ट्र के राज्यों के भिन्न-भिन्न भौगोलिक और सांस्कृतिक अंतर के अतिरिक्त भी ऐसी कई मुश्किलें हैं जो इसे जटिल बनाती हैं हालांकि इससे उलट मोदी गवर्नमेंट एक देश-एक चुनाव पर बल दे रही है सके पीछे की वजह क्या है?

पिछले वर्ष सितंबर महीने में गठित पैनल ने इतने महीनों में रिपोर्ट बनाने को लेकर अनेक शोध किए हैं कई राष्ट्रों में चल रहे इस तरह के नियमों का शोध किया है 39 सियासी दलों, अर्थशास्त्रियों और हिंदुस्तान के चुनाव आयोग से परामर्श लिया गुरुवार को राष्ट्रपति के हवाले करते हुए पैनल ने आज बोला कि वह एक देश, एक चुनाव वाले विचार का समर्थन करता है, लेकिन इसके लिए एक कानूनी रूप से टिकाऊ मजबूत तंत्र की मांग करता है जो मौजूदा चुनावी चक्रों से बाहर निकले और फिर से उसे संरेखित करे

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई रिपोर्ट में समिति की सर्वसम्मत राय है कि एक साथ चुनाव होने चाहिए साथ ही यह भी बोला गया है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के 100 दिन बाद क्षेत्रीय निकाय चुनाव भी एक साथ कराए जा सकते हैं ‘एक देश, एक चुनाव’ प्रस्ताव 2019 में बीजेपी के घोषणापत्र का हिस्सा था, लेकिन विपक्ष ने इसकी भारी निंदा की थी विपक्ष ने उस समय भी इसे कानूनी मुद्दों के विरुद्ध कहा था

एक देश-एक चुनाव क्या है?
सरल शब्दों में कहें तो इसका मतलब है कि लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ होने चाहिए केंद्रीय और राज्यों के प्रतिनिधियों को चुनने के लिए यदि एक ही समय पर मतदान नहीं हो पा रहा है तो कम से कम एक ही साल में तो होने ही चाहिए

इस वर्ष कई राज्यों में भी चुनाव
इस वर्ष कुछ ऐसे राज्य भी हैं, जहां रहने वाले लोग राष्ट्र की नयी गवर्नमेंट के साथ अपने राज्यों की भी नयी सरकारों के लिए मतदान करेंगे आंध्र प्रदेश, सिक्किम और ओडिशा में अप्रैल/मई में लोकसभा चुनाव के साथ ही मतदान हो सकता है वहीं, महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में इस वर्ष के अंत में मतदान होगा इसके अलावा, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने पर उच्चतम न्यायालय के हालिया आदेश के अनुसार छह वर्ष में यहां 30 सितंबर से पहले विधानसभा चुनाव कराना महत्वपूर्ण है

एक देश- एक चुनाव में चुनौतियां क्या हैं
भारत के आकार और क्षेत्रों के बीच भौगौलिक और सांस्कृतिक अंतर को देखते हुए एक देश-एक चुनाव को जमीन पर लागू करना बड़ी चुनौती है चुनावी चक्रों में फेरबदल और राज्यों में समन्वयन के लिए कई चुनौतियां हैं इसमें प्रमुख रूप से वित्तीय, संवैधानिक, कानूनी और यहां तक ​​कि व्यावहारिक मुश्किलें भी शामिल हैं एक देश-एक चुनाव में बड़ी चुनौती यह भी है कि यदि कोई राज्य, या केंद्र गवर्नमेंट सदन में अविश्वास प्रस्ताव के बाद अयोग्य हो जाती है या अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले भंग हो जाती है तो क्या किया जाए ऐसे में केंद्र के साथ अन्य सभी राज्यों में नए सिरे से चुनाव कराने का आदेश देना संभव हो पाएगा?

इसके अतिरिक्त कानून की जानकारी रखने वालों का यह मानना है कि ऐसा करने में यदि कामयाबी नहीं मिली और संविधान के पांच अनुच्छेदों में संशोधन करके प्रस्ताव को जमीन पर उतार दिया गया तो यह राष्ट्र के संघीय ढांचे का खुला उल्लंघन हो सकता है ये पांच अनुच्छेद हैं- अनुच्छेद 83 (संसद का कार्यकाल), अनुच्छेद 85 (राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा का विघटन), अनुच्छेद 172 (राज्य विधानमंडलों का कार्यकाल), अनुच्छेद 174 (राज्य विधानमंडलों का विघटन) और अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति का कार्यकाल)

सरकार एक देश-एक चुनाव पर इतना बल क्यों देर रही है?
पिछले साल, राम नाथ कोविंद के नेतृत्व वाले पैनल की घोषणा से पहले केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने गवर्नमेंट की तरफ से कुछ तर्क रखे थे मेघवाल ने संसद को कहा था कि एक साथ चुनाव कराने से वित्तीय बचत हो सकती है उन्होंने बोला था कि भिन्न-भिन्न चुनावों में कई बार चुनाव ऑफिसरों और सुरक्षा बलों की तैनाती की जाती है इससे न केवल बेफिजूल खर्चा होता है, ऑफिसरों और सुरक्षा बलों की बार-बार इधर-उधर तैनाती से उन पर मानसिक और शारिरिक दबाव भी पड़ता है गवर्नमेंट के खजाने और सियासी दलों के अभियानों पर होने वाले खर्चे को कम करने के लिए एक राष्ट्र एक चुनाव कराना महत्वपूर्ण है

सरकार को उम्मीदें
मेघवाल ने आगे बोला कि चुनावों के कारण बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू की जाती है जिसकी वजह से लागू होने वाली कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन प्रभावित होता है इससे केंद्र ही नहीं राज्य सरकारें भी अछूती नहीं हैं गवर्नमेंट को आशा है कि एक बार के चुनाव से मतदान फीसदी में भी सुधार होगा

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