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पूर्व IPS अधिकारी संजीव भट्ट को अदालत ने 1996 के ड्रग-प्लांटिंग मामले में सुनाई 20 साल की जेल की सजा

अहमदाबाद: पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को गुजरात के बनासकांठा जिले के पालनपुर की एक सत्र न्यायालय ने 1996 के ड्रग-प्लांटिंग मुद्दे में 28 मार्च को 20 वर्ष की कारावास की सजा सुनाई है. उन्हें NDPS की धारा 21(सी) और 27ए (अवैध स्मग्लिंग का समर्थन करने और अपराधियों को शरण देने के लिए जुर्माना) के मुताबिक कारावास की सजा सुनाई गई थी. इसके अतिरिक्त उन पर दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है. बता दें कि, 2002 के गुजरात दंगों में भी झूठे सबूत गढ़ने का इल्जाम संजीव भट्ट पर है.

एक दिन पहले ही अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जेएन ठक्कर ने उन्हें ड्रग्स से जुड़े कानून को तोड़ने का गुनेहगार करार दिया था. उन्हें नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट 1985 की विभिन्न धाराओं का गुनेहगार पाया गया, जिसमें गैरकानूनी नशीला पदार्थों की स्मग्लिंग में सहायता करना, अपराधियों का समर्थन करना, दूसरों के साथ मिलकर नशीली दवाओं से संबंधित क्राइम करने की षड्यंत्र रचना और अवैध ढंग से लोगों में प्रवेश करना, तलाशी लेना, बरामद करना और अरैस्ट करना शामिल है. बता दें कि, संजीव भट्ट सितंबर 2018 में गुजरात हाई कोर्ट के निवेदन पर अरैस्ट किया गया था कि आपराधिक जांच विभाग (CID) राजस्थान के एक वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित के मुद्दे की जांच करे, जिस पर बनासकांठा पुलिस ने 1.5 किलोग्राम अफीम रखने का झूठा इल्जाम लगाया था. मुद्दे में पाली निवासी वकील को अरैस्ट किया गया था.

दरअसल, राजस्थान के पाली जिले में एक संपत्ति खाली कराने के लिए “सुनियोजित साजिश” के अनुसार पालनपुर के एक होटल के कमरे में ड्रग्स रखी गई थीं. उस दौरान संजीव भट्ट जिला पुलिस अधीक्षक थे और पालनपुर की क्षेत्रीय क्राइम शाखा के एक निरीक्षक आईबी व्यास को भी मुद्दे में सह-अभियुक्त के रूप में नामित किया गया था. बाद वाला 2021 में सरकारी गवाह बन गया. अभियोजन पक्ष का मुद्दा यह था कि भट्ट और अन्य अपराधियों ने वकील को फंसाने के लिए NDPS अधिनियम का लाभ उठाने की योजना बनाई थी. पिछले अगस्त 2023 में उनके द्वारा दाखिल एक अपील में 1996 के दवा-रोपण मुद्दे में उनके मुकदमे को बनासकांठा जिले की एक न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी. हालाँकि, गुजरात हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी.

ड्रग प्लांटिंग का मुद्दा 1996 से 2018 तक लगभग दो दशकों तक लटका रहा, जब गुजरात हाई कोर्ट ने अप्रैल 2018 में आदेश दिया कि गुजरात CID (आपराधिक जांच विभाग) के ऑफिसरों से बनी एक विशेष जांच टीम (SIT) इल्जाम लगाने वाली झूठी कम्पलेन की जांच करेगी. संजीव भट्ट और अन्य पर वकील को झूठा फंसाने का आरोप. घटना के 22 वर्ष बाद सितंबर 2018 में उन्हें मुद्दे के सिलसिले में अरैस्ट किया गया था.

वर्तमान में, संजीव भट्ट, जिन्हें 2015 में बल से हटा दिया गया था, पहले से ही हिरासत में यातना और मृत्यु से जुड़े एक मुद्दे में जीवन भर जेल में हैं. पूर्व आईपीएस अधिकारी को दो आपराधिक मामलों में दो बार गुनेहगार ठहराया गया है. 2019 में, उन्हें 1990 के दशक में जामनगर में हिरासत में हुई मृत्यु के लिए जीवन भर जेल की सजा दी गई थी. ट्रायल न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध उनकी याचिका को गुजरात हाई कोर्ट ने जनवरी में खारिज कर दिया था, जिसने मुद्दे में दोषसिद्धि बरकरार रखी थी.

 

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