महिला क्रांतिकारी कल्पना दत्त की पुण्यतिथि पर जानें इनके जीवन संघर्ष की कहानी
जन्म तथा क्रांतिकारी गतिविधियाँ
कल्पना दत्त का जन्म चटगांव (अब बांग्लादेश) के श्रीपुर गांव में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। चटगांव में आरम्भिक शिक्षा के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता आईं। मशहूर क्रान्तिकारियों की जीवनियाँ पढ़कर वह प्रभावित हुईं और शीघ्र ही स्वयं भी कुछ करने के लिए आतुर हो उठीं। 18 अप्रैल, 1930 ई। को ‘चटगांव शस्त्रागार लूट’ की घटना होते ही कल्पना दत्त कोलकाता से वापस चटगांव चली गईं और क्रान्तिकारी सूर्यसेन के दल से संपर्क कर लिया। वह वेश बदलकर इन लोगों को गोला-बारूद आदि पहुँचाया करती थीं। इस बीच उन्होंने निशाना लगाने का भी अभ्यास किया।
कारावास की सज़ा
कल्पना और उनके साथियों ने क्रान्तिकारियों का केस सुनने वाली न्यायालय के भवन को और कारावास की दीवार उड़ाने की योजना बनाई। लेकिन पुलिस को सूचना मिल जाने के कारण इस पर अमल नहीं हो सका। पुरुष वेश में घूमती कल्पना दत्त अरैस्ट कर ली गईं, पर अभियोग सिद्ध न होने पर उन्हें छोड़ दिया गया। उनके घर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया। लेकिन कल्पना पुलिस को चकमा देकर घर से निकलकर क्रान्तिकारी सूर्यसेन से जा मिलीं। सूर्यसेन अरैस्ट कर लिये गए और मई, 1933 ई। में कुछ समय तक पुलिस और क्रान्तिकारियों के बीच सशस्त्र मुकाबला होने के बाद कल्पना दत्त भी अरैस्ट हो गईं। केस चला और फ़रवरी, 1934 ई। में सूर्यसेन तथा तारकेश्वर दस्तीकार को फाँसी की और 21 साल की कल्पना दत्त को जीवन भर जेल की सज़ा हो गई।
रिहाई तथा सम्मान
1937 ई। में जब पहली बार प्रदेशों में भारतीय मंत्रिमंडल बने, तब गांधी जी, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि के विशेष प्रयत्नों से कल्पना कारावास से बाहर आ सकीं। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। वह कम्युनिस्ट पार्टी में सम्मिलित हो गईं और 1943 ई। में उनका कम्युनिस्ट नेता पूरन चंद जोशी से शादी हो गया और वह कल्पना जोशी बन गईं। बाद में कल्पना बंगाल से दिल्ली आ गईं और ‘इंडो सोवियत सांस्कृतिक सोसायटी’ में काम करने लगीं। सितम्बर, 1979 ई। में कल्पना जोशी को पुणे में ‘वीर महिला’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।