मोबाइल गेमिंग के कारण बच्चे हो रहे मानसिक बीमार
स्कूलों में गर्मियों की छुट्टियां हो चुकी हैं। ऐसे में बच्चों का अधिक से अधिक समय मोबाइल और टीवी के सामने बीत रहा है, जो खतरनाक है। बोरियत दूर करने के लिए घंटो मोबाइल और टीवी स्क्रीन के सामने रहना बच्चों के लिए खतरनाक है। इसे लेकर मनोवैज्ञानिक भी राय दे रहे हैं कि बच्चों को अधिक से अधिक फिजिकल एक्टिविटी कराएं।
कोविड 19 महामारी के दौरान औनलाइन शिक्षण में परिवर्तन का उद्देश्य प्रारम्भ में यह सुनिश्चित करना था कि बच्चों की शिक्षा में रुकावट न आए। हालांकि एक बार जब उनकी पढ़ाई पूरी हो गई, तो बच्चे बोरियत दूर करने के लिए गेम खेलने और टीवी देखने के लिए मोबाइल टेलीफोन का इस्तेमाल करने लगे। जिसके कारण अब अत्यधिक गेमिंग की यह आदत एक तरह का विकार बन गई है। ऐसे कई मुद्दे सामने आ चुके हैं, जहां बच्चों ने गेमिंग की लत के कारण घातक कदम उठाए हैं। अभी सभी कक्षाओं की परीक्षाएं खत्म हो चुकी हैं और गर्मी की छुट्टी प्रारम्भ हो गई हैं। इस दौरान माता-पिता अपने बच्चों को मोबाइल टेलीफोन से दूर रखें। उनके मानसिक और शारीरिक विकास वाले खेल-कूद गतिविधियों के प्रति प्रोत्साहित करें।
मानसिक बीमारी का हो रहें शिकार
इस विषय को लेकर कोरबा मेडिकल कॉलेज की मनोरोग जानकार एमडी साइकैटरिस्ट डाक्टर नीलिमा महापात्रा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि इन दिनों मोबाइल गेमिंग के कारण बच्चे मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं। वहीं शारीरिक गतिविधियों वाले खेलकूद नहीं करने के शरीर का विकास भी ठीक से नहीं हो पाता है। किसी भी गेम को इस तरह से तैयार किया जाता है कि बच्चा उसके प्रति आकर्षित हो। बच्चे आकर्षित होकर गेम खेलना प्रारम्भ करते हैं और धीरे-धीरे उन्हें इसकी आदत लग जाती है।
इसी लत को मेडिकल भाषा में गेमिंग डिसऑर्डर कहा गया है। अभी गर्मी की छुट्टियां शुरू हो चुकी हैं। ऐसे में बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए उन्हें समर कैंप में ले जाए। धूप में बाहर निकालने के बजाय घर पर ही बच्चों के साथ समय बिताएं और चेस, कैरम बोर्ड सहित अन्य खेलो को साथ मे खेलें। छुट्टियों में शाम के समय बच्चों को बाहर दूसरे बच्चों के साथ क्रिकेट, फुटबाल, बैडमिंटन या अन्य गतिविधियों वाले खेल-कूद करवाएं।उन्होंने बोला कि माता-पिता को इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए कि कहीं उनका बच्चा इस मानसिक रोग से ग्रसित तो नहीं है। इसके लिए उन्हें बच्चों के भीतर होने वाले परिवर्तन को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। बच्चे पहले गेम्स से आकर्षित होते हैं और बाद में वे कब इसके एडिक्ट हो जाते हैं, उन्हें पता नहीं चलता है। इसलिए बच्चों में यदि आक्रामकता, चिड़चिड़ापन, गुस्सा करना, पागलों जैसी हरकत करना आदि परेशानी नजर आए, तो एक बार साइकैटरिस्ट से जरूर दिखाएं