उत्तराखण्ड

सैकड़ों वर्ष प्राचीन इस मंदिर में शयन मुद्रा में विराजमान हैं भगवान लक्ष्मण, जानें यहाँ की कहानी

देवभूमि उत्तराखंड में महाभारत काल के कई साक्ष्य मिलते हैं जब पांडव स्वर्गारोहण के लिए उत्तराखंड आए, तो उन्होंने यहां अपना काफी समय व्यतीत किया था आज भी उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र की लोक संस्कृति में पांडवों का जिक्र होता है, लेकिन क्या आपको मालूम है कि उत्तराखंड का सबंध त्रेतायुग से भी है यहां की धरती से ईश्वर राम, माता सीता, हनुमान से लेकर लक्ष्मण का सीधा संबंध है आज भी पौड़ी जिले के सितोन्स्यू पट्टी के लोग सीता और लक्ष्मण को आराध्य देव के रूप में पूजते हैं पौड़ी गढ़वाल के कोट ब्लॉक स्थित सितोन्स्यू पट्टी के देवल गांव में लक्ष्मण का प्राचीन मंदिर स्थित है 11 छोटे-बड़े मंदिरों के समूह के बीच लक्ष्मण मंदिर अपनी स्थापत्य कला के लिए भी प्रसिद्व है मंदिरों की निर्माण शैली और यहां स्थापित मूर्तियां इतिहास को बयां करती हैं इन मंदिरों का निर्माण 12वीं सदी में किए जाने के प्रमाण मिलते हैं कहा जाता है कि 18वीं सदी में इन मंदिरों का जीर्णोद्धार किया गया होगा मुख्य रूप से लक्ष्मण मंदिर को वैष्णव मंदिर के रूप में भी जाना जाता है

लक्ष्मण मंदिर देवल के पुजारी वीरेन्द्र पांडेय ने कहा कि प्रति दिन सुबह और सायं यहां पूजा-अर्चना की जाती है जब श्रीराम ने सीता माता का त्याग किया था, तो उन्हें वनवास छोड़ने के लिए लक्ष्मण को साथ भेजा था जब सीता माता और लक्ष्मण इस क्षेत्र में आए, तो लक्ष्मण जी उन्हें फल्सवाड़ी गांव स्थित वाल्मीकि आश्रम छोड़कर आए वापस लौटते समय देवल गांव के जिस जगह पर लक्ष्मण जी ने आराम किया था, उस जगह पर यह मंदिर स्थित है यहां मंदिर के अंदर लक्ष्मण जी की शयन मुद्रा में मूर्ति स्थापित है

मंदिर के सामने नौबतखाना

उन्होंने आगे बोला कि लक्ष्मण मंदिर के ठीक सामने एक प्राचीन नौबतखाना है पौड़ी जिले के कुछ अति प्राचीन मंदिरों को छोड़ किसी भी मन्दिर में नौबतखाना नहीं है, जो स्पष्ट रूप से मंदिर की प्राचीनता और भव्यता को दर्शाता है यहां स्थित सभी मंदिरों की वास्तुयोजना अत्यंत आसान है लक्ष्मण मंदिर के गर्भगृह में चक्र और शंख धारण किए हुए ईश्वर विष्णु, माता लक्ष्मी, ब्रह्मा, गणेश और मां दुर्गा की मध्यकालीन मूर्तियां भी स्थापित हैं

पुरातत्व विभाग के अधीन मंदिर

इतिहास को संजोये प्राचीन लक्ष्मण मंदिर को वर्तमान में पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग ने अपने अधीन ले लिया है मंदिर के रखरखाव की जिम्मेदारी अब संस्कृति विभाग के पास है मंदिर में आज भी दोनों समय पूजा होती है, नौबत बजती है और नैवेद्य बंटता है

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