उत्तर प्रदेश

गांधी की आवाज पर उठ खड़े हुए थे आजादी के ये दीवाने

देश आजादी की 76वीं वर्षगांठ भले ही इंकार रहा हो, लेकिन अमेठी से राष्ट्र की आजादी में अपनी किरदार निभाने वाले कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर राष्ट्र को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराया था अमेठी जिले में मुसाफिरखाना क्षेत्र के ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गुरु प्रसाद सिंह थे जिन्होंने आजादी की लड़ाई में गांधी जी के भाषणों से प्रेरित होकर राष्ट्र को आजाद करने में अपनी किरदार निभाई थी

अमेठी जिले के भले सुल्तानों का क्षेत्र कहे जाने वाले मुसाफिरखाना के रिछौरा दतनपुर गांव मेंगुरु प्रसाद सिंह का जन्म 4 दिसंबर 1920 को हुआ था 11 साल की अल्पायु में उन्होंने गांधी जी का भाषण सुना जिसके बाद उनके मन में भी क्रांति की अलख जगी और वह अपने घर वालों को बिना बताए आजादी की लड़ाई में सहयोग करने के लिए निकल पड़े आजादी की लड़ाई में अंग्रेजी हुकूमत से लड़ते हुए उन्हें पकड़ लिया गया, जिसके बाद वह 2 वर्ष तक सुल्तानपुर कारावास में बंद रहे यहां उन्हें तरह-तरह की मुश्किल यातनाएं दी गई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी

गौरीगंज विधानसभा का किया प्रतिनिधित्व
जिसके बाद फिर इन्हें करीब 2 सालों तक नैनी कारावास बंद किया गया यहां भी अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें काफी डराया धमकाया लेकिन गुरुप्रसाद ने केवल एक जिद पकड़ रखी थी, जो आजादी की जिद थी  इन्होंने यहां भी अंग्रेजों से हार नहीं मानी और अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ कई अंग्रेजी सैनिकों को परास्त किया इसके बाद लगातार राष्ट्र की आजादी के लिए वह क्रांति की ज्वाला जलाते रहे उन्होंने राष्ट्र में आजादी के साथ-साथ भूमि धरी आंदोलन में भी हिस्सा लिया और उसमें भी अपना सहयोग निभाया 1952 से 1962 तक इन्होंने प्रथम विधायक के तौर पर गौरीगंज विधानसभा का अगुवाई किया और अपने क्षेत्र में शहीदों से जुड़े कई कार्य करवाएं गांव के साथ-साथ परिवार के लोग इनकी बहादुरी की कहानी बयां करते हैं

अंतिम सांस तक लड़ी लड़ाई
गुरु प्रसाद सिंह के परिवार के स्वतंत्रता संग्राम संगठन के अध्यक्ष राजेश सिंह बताते हैं कि गुरु प्रसाद सिंह उनके परिवार के सदस्य थे और काफी क्रांतिकारी थे बचपन से उन्हें राष्ट्र की आजादी की ललक थी और इसी ललक में वे आंदोलन में कूद पड़े जिसके बाद उन्हें अंग्रेजी हुकूमत ने पकड़कर भिन्न-भिन्न स्थानों पर उन्हेंयातनाएं दी लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी अनेक यातनाओं के बाद भी उनका जुनून काम नहीं हुआ और राष्ट्र को आजाद कराने में जो उनकी ललक थी वह राष्ट्र के आजाद होने तक उनका संघर्ष लगातार जारी रहा

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