वारणसी के रामनगर की रामलीला का हुआ शुभारंभ
वाराणसी के रामनगर की विश्व मशहूर रामलीला का मंचन प्रारम्भ हो गया है। अब एक महीने तक विभिन्न प्रसंगों का मंचन रामनगर के 10 किलोमीटर के क्षेत्र में घूम घूम कर एक माह तक चलेगा। रामनगर की रामलीला का शुरुआत गुरुवार को रावण जन्म के प्रसंग से हुआ। रावण ने भाइयों समेत घोर तप शुरुआत किया।
भगवान ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर रावण को वरदान दिया। ईश्वर ब्रह्मा से वरदान पाने के अहंकार में रावण ने विश्वकर्मा द्वारा बनाए स्वर्ण महल पर आक्रमण किया, वहीं ब्राह्मणों के यज्ञ और हवन को नष्ट करना प्रारम्भ किया।
गुरुवार को रामलीला के उद्घाटन के दिन, क्षीर सागर झांकी को रामनगर पोखरा में बनाया गया था। ईश्वर विष्णु शेष शैया पर लेटे हुए हैं और देवी लक्ष्मी उनके पास क्षीर सागर में बैठी हैं। आकाशवाणी हुई, “मैं राक्षसों के विनाश के लिए रघुकुल में राम के रूप में पुनर्जन्म लूँगा।” ऐसा होते ही दर्शकों ने ‘सीता राम, सीता राम’ का नारा लगाया।
हर रोज रामलीला में शामिल होंगे काशी राज परिवार के सदस्य
इस रामलीला को देखने हर रोज काशी राज परिवार के सदस्य आते हैं। मौजूदा काशी राज परिवार के सदस्य अंनत नारायण सिंह पूरे शाही अंदाज में हाथी पर सवार होकर इस लीला का मंचन देखते हैं। इस लीला का इतिहास करीब 226 वर्ष पुराना है। यूनिस्को ने भी इसे विश्व सांस्कृतिक विरासत माना है। 1783 में काशी नरेश उदित नारायण सिंह ने इसकी आरंभ की थी।
गुरुवार को परंपरा के मुताबिक शाम पांच बजे दुर्ग से काशी राजपरिवार के सदस्य अनंत नारायण सिंह की बग्घी पर शाही सवारी निकली। सबसे आगे पुलिस की जीप और उसके पीछे बनारस स्टेट का ध्वज लिए घुड़सवार चले। दुर्ग से बाहर आते ही प्रतीक्षा में खड़े अपार जनसमुदाय ने हरहर महादेव के उद्घोष से अगवानी की।
10 किलोमीटर के दायरे में घूम-घूम कर होता है मंचन
प्रत्येक दिवस शाम 5 बजे से इस लीला की आरंभ होती है और रात 9 बजे तक इसका मंचन होता है। इस लीला का मंचन गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा रचित रामचरितमानस की चौपाइयों के मुताबिक किया जाता है। आधुनिक दौर में भी इस लीला का मंचन वैसे ही होता है, जैसे 226 वर्ष पहले किया जाता था। रामनगर के 10 किलोमीटर के दायरे में इस पूरी लीला को घूम-घूम कर पूर्ण किया जाता है।
रामनगर के 10 किलोमीटर के दायरे में ही अयोध्या, जनकपुरी, पंचवटी, लंका, चित्रकूट, निषाद राज आश्रम, अशोक वाटिका, रामबाग समेत अन्य वह समस्त स्थल निर्धारित हैं। आज भी पेट्रोमैक्स की रोशनी में मशाल जलाकर इस लीला का मंचन किया जाता है। इस लीला को देखने के लिए लोग सज-संवरकर, टीका चंदन इत्र लगाकर आते हैं।
बिना तामझाम वाली रामलीला को देखने आते हैं हजारों भक्त
लीला में शामिल होने पहुंचे बद्री विशाल ने कहा कि वे लगातार 10 वर्षों से इस लीला का मंचन देखने के लिए यहां आते हैं। इस लीला में जैसी शाही ठाठ बाट दिखती है, वैसी कहीं और देखने को नहीं मिलती है। इस लीला को लेकर भक्तों का ऐसा मानना है कि उन्हें साक्षात यहां प्रभु श्रीराम के दर्शन होते हैं। यही वजह है कि बिना किसी तामझाम वाली रामलीला का मंचन देखने हजारों की संख्या में भक्त यहां आते हैं।
बिना तामझाम वाली रामलीला को देखने आते हैं हजारों भक्त
लीला में शामिल होने पहुंचे बद्री विशाल ने कहा कि वे लगातार 10 वर्षों से इस लीला का मंचन देखने के लिए यहां आते हैं। इस लीला में जैसी शाही ठाठ बाट दिखती है, वैसी कहीं और देखने को नहीं मिलती है। इस लीला को लेकर भक्तों का ऐसा मानना है कि उन्हें साक्षात यहां प्रभु श्रीराम के दर्शन होते हैं। यही वजह है कि बिना किसी तामझाम वाली रामलीला का मंचन देखने हजारों की संख्या में भक्त यहां आते हैं।