पितृपक्ष के पहले दिन पूर्वजों को तर्पण: प्रयागराज के संगम में स्नान कर लोगों ने विधि विधान से अपने पूर्वजों का किया श्राद्ध
आज शुक्रवार से पितृपक्ष शुरुआत हो गया है। पहले दिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर बड़ी संख्या में लोग संगम के तट पर पहुंचे। यहां गंगा और यमुना में स्नान कर लोगों ने विधि विधान से अपने पूर्वजों का श्राद्ध किया। पुरोहितों काे दान किया और अपने पूर्वजों की तृप्ति के लिए पूजा पाठ भी किया। लोगों ने पितरों के निमित्त गाय, कौआ और कुत्तों के लिए भोजन निकाला। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक पृतिपक्ष रहेगा। 29 सितंबर दिन शुक्रवार को स्नान दान की पूर्णिमा तथा महालय प्रारंभ हो चुका है जो 14 अक्टूबर तक रहेगी। इस दौरान अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध करें और नियमों का पालन करें।
श्राद्ध यानी पितरों के लिए किया गया कार्य
दासानुदास ओम प्रकाश पांडेय अनिरुद्ध रामानुज दास बताते हैं कि चंद्रमा के ऊर्ध्व कक्ष में पितरलोक है जहां पितर गण निवास करते हैं। पितर लोक को आंखों से नहीं देखा जा सकता है। जीवात्मा जब से स्थूल शरीर से पृथक होती है उस स्थित को मौत कहते हैं। यह भौतिक शरीर 27 तत्वों से बना है।” स्थूल पंचमहाभूते” स्थूल कर्मेन्दियों को छोड़ने पर अर्थात मौत को प्राप्त हो जाने पर भी 17 तत्वों से बना हुआ सूक्ष्म शरीर विद्यमान रहता है। इसलिए हमें श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के लिए पितृपक्ष में दान इत्यादि करना चाहिए।
ब्राह्मण को करें दान
ओमप्रकाश पांडेय बताते हैं कि श्रद्धा शब्द से श्राद्ध शब्द की निष्पत्ति होती है। “पुन्नाम नरकात॒ जायते इति पुत्र:”पुत्र पुन्नामक नरक से त्राण अर्थात जो रक्षा करता है वही पुत्र है। श्रद्धा शब्द के संबंध में मनुस्मृति वायु पद्म पुराण श्राद्ध तत्व श्राद्ध कल्पतरु आदि में विस्तृत वर्णन है। महर्षि पाराशर कहते हैं राष्ट्र काल पात्र में हविष्यादि विधि द्वारा जो कर्म दर्भ अर्थात कुशा यव तथा मंत्रों से युक्त होकर श्रद्धा पूर्वक किया जाता है उसे श्राद्ध कहते हैं। ब्रह्म पुराण के मुताबिक पितरों के उद्देश्य से ब्राह्मणों को दान दिया जाता है यानी द्रव्य भोजन वस्त्र शैय्या इत्यादि वही श्राद्ध है। पिता की मौत की तिथि पर पितृपक्ष में ब्राह्मणों को दान देना चाहिए और भोजन कराना चाहिए। यदि तिथि ना मालूम हो तो आखिरी दिवस अमावस्या के दिन पिंडदान और भोजन इत्यादि करा कर ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देनी चाहिए। जिनकी अकाल मौत हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करना चाहिए।