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सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए सात न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ गठित करने का किया फैसला

नई दिल्ली उच्चतम न्यायालय ने पीवी नरसिम्हा राव मुद्दे में अपने 1998 के निर्णय पर पुनर्विचार करने पर सहमति जता दी है उच्चतम न्यायालय ने इसके लिए सात न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ गठित करने का निर्णय किया है राष्ट्र के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय के सात न्यायाधीशों की पीठ शीर्ष न्यायालय के 1998 के निर्णय पर पुनर्विचार करेगी शीर्ष न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किए गए एक नोटिस में बोला गया है कि पीठ इस मुद्दे पर चार अक्टूबर को सुनवाई करेगी

नोटिस में बोला गया है, ‘‘सीता सोरेन बनाम हिंदुस्तान संघ शीर्षक वाली आपराधिक अपील संख्या 451/2019 पर चार अक्टूबर को सुनवाई के लिए संविधान पीठ का गठन किया गया है, जिसमें प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना, न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश, न्यायमूर्ति पमिदिघनतम नरसिम्हा, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल हैं’’

5 जजों की पीठ को भेजा गया था केस
देश को झकझोर देने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) घूस काण्ड के लगभग 25 वर्ष बाद उच्चतम न्यायालय 20 सितंबर को अपने 1998 के निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए सहमत हो गई थी उसने बोला था कि यह एक जरूरी मामला था, जिसका ‘राजनीति की नैतिकता’ पर जरूरी असर पड़ा शीर्ष न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने इस मामले को सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के पास भेजने का निर्णय किया था

1998 में उच्चतम न्यायालय ने क्या बोला था?
सुप्रीम न्यायालय ने 1998 में पीवी नरसिम्हा राव बनाम केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) मुद्दे में दिए गए अपने पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के निर्णय में बोला था कि अनुच्छेद 105 (2) और अनुच्छेद 194 (2) के मुताबिक सदन के अंदर दिए गए किसी भी भाषण और वोट के लिए आपराधिक केस चलाने के विरुद्ध सांसदों को संविधान के अनुसार छूट प्राप्त है

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