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Lok Sabha Election: 8वें चुनाव में कांग्रेस को मिली ऐतिहासिक जीत

General Election 1984 : वर्ष 1984 का आम चुनाव कई मायनों में कई नयी लकीरें बना गया. इस 8वें लोकसभा चुनाव (8th General Election) में कांग्रेस पार्टी (Congress) को जो ऐतिहासिक जीत मिली, उसे भारतीय लोकतंत्र में कोई भी दल अब तक तोड़ नहीं पाया है. इस बार पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने शायद उसी लक्ष्य को पाने के लिए नारा दिया- अबकी बार, चार सौ पार. हालांकि, यह नारा उन्होंने एनडीए (NDA) के संदर्भ में दिया है. बीजेपी (BJP) को मोदी ने 370 पार का लक्ष्य दे रखा है.

यह वह समय था जब 31 अक्तूबर 1984 को पीएम इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की मर्डर उनके अपने सुरक्षा कर्मी ने कर दी थी. उसके बाद लोकसभा भंग कर दी गई और इंदिरा गांधी के पुत्र राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) अंतरिम पीएम बने. राष्ट्र में आम चुनाव घोषित हुआ. पंजाब और असम में जबरदस्त अत्याचार हो रही थी तो इन दोनों ही राज्यों में आम चुनाव के महीनों बाद भिन्न-भिन्न समय पर संसद सदस्य चुनने को वोट डाले गए.

यही वह चुनाव था जब पहली बार बीजेपी (भाजपा) लोकसभा चुनाव में कूदी थी. इस चुनाव में उसके दो प्रत्याशी जीते थे लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी जैसे दिग्गज नेता चुनाव हार गए थे. कांग्रेस पार्टी की आंधी में पीवी नरसिंह राव जैसे बड़े नेता भी चुनाव हार गए थे. चंद्रशेखर बलिया से और चौधरी देवीलाल सोनीपत से चुनाव हार गए थे. इसी चुनाव में एक क्षेत्रीय दल तेलुगु देशम पार्टी लोकसभा में दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई.

वह रिकार्ड अब तक कोई दल तोड़ न सका

साल 1984 के इलेक्शन में कांग्रेस पार्टी को कुल 414 (404+10) सीटें मिली थीं. असल में राष्ट्र भर की 516 सीटों पर चुनाव एक साथ हुए थे, उसमें कांग्रेस पार्टी को 404 सीटें मिली तो बाद में असम और पंजाब में हुए मतदान में 10 और सीटें मिल गईं. 30 सीटों के साथ संसद में दूसरा सबसे बड़ा बनकर उभरी आंध्र प्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी. सीपीआई-एम, जनता पार्टी, एआईएडीएमके की जीत भी दो अंकों तक ही रही. बाकी सभी दल इकाई में ही सीटें जीत सके थे.

डीएमके भी इस चुनाव में केवल दो सीटें जीत सकी थी, जबकि इसके पहले तमिलनाडु में उसका बहुत बढ़िया रिकॉर्ड रहा था. हालांकि, इतनी जबरदस्त जीत केवल इसलिए मिली थी क्योंकि इंदिरा गांधी की मर्डर की सहानुभूति लहर पूरे राष्ट्र में थी, जिसका लाभ कांग्रेस पार्टी और राजीव गांधी को मिला और वह ऐसा रिकार्ड बनाने में सफल रहे कि उसे आज तक कोई तोड़ नहीं सका.

पहले चुनाव में बीजेपी के दो कैंडिडेट जीते

अपने पहले आम चुनाव में बीजेपी ने भले ही दो सीटें जीती हों लेकिन इसकी तबसे अब तक की यात्रा बहुत कुछ कहती है. इस चुनाव में बीजेपी ने अपने 224 कैंडिडेट उतारे थे. इनमें से दो जीते और 108 की जमानत तक नहीं बची. बावजूद इसके पार्टी अपने पाठ से नहीं डिगी. महज 12 वर्ष बाद इसी दल के नेता अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बने. वर्ष 2014 से लगातार इस दल की गवर्नमेंट है और 2024 में गवर्नमेंट बनाने को फिर से मजबूत तैयारी है. बीजेपी को यह सब कुछ सरलता से नहीं मिला है. इसके पीछे संगठन की दिन-रात की मेहनत को झुठलाया नहीं जा सकता.

पंजाब-असम में अगले वर्ष हुआ इलेक्शन

जब यह चुनाव राष्ट्र में चल रहा था तब भी राष्ट्र के दो जरूरी राज्य पंजाब और असम अत्याचार की आग में जल रहे थे. यहां से हर रोज बुरी खबरें आती थीं. ऑपरेशन ब्लू स्टार की वजह से सिखों में एक अलग उन्माद था. इसे कम करने को कांग्रेस पार्टी ने ज्ञानी जैल सिंह को राष्ट्रपति तक बनाया लेकिन इसका कोई खास असर नहीं हुआ. अलगाववाद-चरमपंथी ताकतें दोनों ही राज्यों में लगातार एक्टिव थीं. इसीलिए हिंदुस्तान निर्वाचन आयोग ने दोनों ही राज्यों की 27 सीटों के लिए मतदान बाद में कराए. पूरे राष्ट्र में चुनाव 28 दिसंबर 1984 को समाप्त हो गए थे लेकिन पंजाब में मतदान जुलाई 1985 और असम में दिसंबर 1985 में हुआ.

इस चुनाव में हारे तीन नेता बाद में बने PM

कुछ मामलों में इस चुनाव के नतीजे बड़े रोचक और प्रेरक भी रहे. केंद्र गवर्नमेंट में मंत्री नरसिंह राव कांग्रेस पार्टी की आंधी में भी हार गए. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से और चंद्रशेखर बलिया से चुनाव में हार गए. इन तीनों ही दिग्गज नेताओं को हराने वाले लोग उस समय बड़ी हैसियत के नहीं थे. लेकिन, राजनीति में जुटे रहने की वजह से कहिए या भाग्य से, अगले कुछ ही वर्षों में ये तीनों ही लोग राष्ट्र के पीएम बने.

नरसिंह राव ने तो अल्पमत की गवर्नमेंट पूरे पांच वर्ष चलाई तो अटल ने कई दलों के गठबंधन को मजबूती से बांधे रखा और तीन बार पीएम पद की शपथ लेने में सफल रहे. यह और बात है कि एक बार केवल 13 दिन तो दोबारा 13 महीने और तीसरी बार पूरे पांच वर्ष गवर्नमेंट चलाने में वे सफल रहे. अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में शुचिता का ध्यान रखते थे, इसीलिए उनकी गवर्नमेंट गिरी भी थी लेकिन उन्हें कभी अफसोस नहीं हुआ. वे भारतीय राजनीति के ऐसे सितारे थे जो जब तक संसद में रहे, लगातार अपनी मौजूदगी का एहसास कराते रहे.

 

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