जाने महाराष्ट्र के 10 ऐसे चर्चित नेताओं के बारे में, जो 2023 साल में सबसे ज्यादा चर्चा में रहे…
महाराष्ट्र: महाराष्ट्र की राजनीति हमेशा से बहुत दिलचस्प रही है, यहां पल-पल में नेताओं के बयान बदलते है और बयान ही क्या बड़े-बड़े नेता पार्टियां भी बदल देते है। जिस तरिके से यहां तीन भिन्न-भिन्न पार्टियां सत्ता पर बनी हुई है। इससे हम अंदाजा लगा सकते है की महाराष्ट्र की राजनीति में नेता आये दिन नए पैंतरे अपनाते है, कुछ नेता तो ऐसे भी है जिनके लिए सत्ता सर्वोपरी है, जिसके लिए वे अपनी पार्टी से बगावत भी कर लेते है, इसके आलावा कुछ नेता ऐसे भी है जो आम जनता के हक़ के लिए आगे आते है और गवर्नमेंट से उनके अधिकारों की मांग करते है। आज हम आपको महाराष्ट्र के 10 ऐसे ही चर्चित नेताओं के बारे में बताने जा रहे है, जो 2023 वर्ष में सबसे अधिक चर्चा में रहे है। आइए जानते है उन नेताओं के बारे में…
1. मनोज जारांगे पाटिल
मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मनोज जारांगे पाटिल काफी सुर्खियों में रहे हैं। सितंबर 2023 में जालना के अंतरवाली सराटी में मराठा प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज होने के बाद से वे सुर्खियों में हैं। उस लाठीचार्ज के विरोध में उन्होंने अनशन प्रारम्भ कर दिया। भूख स्ट्राइक में उनकी किरदार ने उन्हें सुर्खियों में ला दिया। इसके बाद शरद पवार, राज ठाकरे, उद्धव ठाकरे, गिरीश महाजन, प्रकाश अंबेडकर समेत महाराष्ट्र के सत्तापक्ष और विपक्ष के नेता उनसे मिलने पहुंचे। सत्ता पक्ष के नेताओं ने उन्हें समझाने का कोशिश किया। लेकिन वे मराठा आरक्षण की मांग पर अड़े रहे। बाद में जब सीएम एकनाथ शिंदे स्वयं उनसे मिलने गए तो उन्होंने गवर्नमेंट को आरक्षण की समय सीमा देकर अनशन समाप्त कर दिया। इसके बाद उन्होंने प्रदेश के कुछ जिलों का दौरा किया। इस दौरे में उन्होंने मराठा समुदाय का मार्गदर्शन किया। इस दौरे से उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ गई।
इसके बाद गवर्नमेंट ने जस्टिस शिंदे कमेटी का गठन किया था। उस कमेटी ने आरक्षण का समस्या नहीं सुलझाया। तो मनोज जारांगे पाटिल फिर से भूख स्ट्राइक पर बैठ गए। इस बार उन्होंने 9 दिन का उपोषण रखा। फिर एक सरकारी प्रतिनिधिमंडल उन्हें समझाने गया और वे सफल हुए। इस बार जरांगे पटल ने गवर्नमेंट को 24 दिसंबर तक का समय दिया है। गवर्नमेंट उन लोगों को कुनबी प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया में तेजी ला रही है, जिनका कुनबी रिकॉर्ड मनोज जारांगे पाताल की भूख स्ट्राइक के कारण पाया गया है। मनोज जारांगे पाटिल की मांग है कि मराठों को तुरंत कुनबी सर्टिफिकेट दिया जाए। इस बीच उनके द्वारा की गई बड़ी सभाओं से उनकी लोकप्रियता देखने को मिली है। इस वजह से वे चर्चा में बने रहते हैं। वह मराठा समाज का चेहरा बनकर सामने आये हैं।
2. शरद पवार
इसी वर्ष एनसीपी पार्टी में विभाजन हो गया। उससे पहले और उसके बाद भी एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार राज्य में चर्चा में रहे हैं। इस वर्ष 2 मई को मुंबई के यशवंतराव चव्हाण बैठक भवन में लोक माझे सांगती पुस्तक के दूसरे संस्करण का विमोचन किया गया। उस विमोचन कार्यक्रम में ही शरद पवार ने घोषणा की थी कि एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार पार्टी अध्यक्ष पद से त्याग-पत्र दे रहे हैं। जल्द ही यह समाचार सामने आई और शरद पवार पूरे राष्ट्र में चर्चा में आ गए। इस घटना के समय राज्य भर से एनसीपी कार्यकर्ता, पदाधिकारी, नेता, सांसद, विधायक, शरद पवार की पत्नी प्रतिभा पवार, अजित पवार, सुप्रिया सुले सभी उपस्थित थे। सभी ने पवार से अपना त्याग-पत्र वापस लेने का निवेदन किया। पवार के नाम की घोषणा की गई। उस दिन के बाद से कई दिनों तक पवार बहुत प्रसिद्ध रहे। इसके बाद पवार ने भी अपना त्याग-पत्र वापस ले लिया। इससे राज्य और राष्ट्र में पवार की खूब चर्चा हुई। इसके बाद एनसीपी में फूट पड़ गई। अजित पवार पार्टी विधायकों को अपने साथ लेकर राजभवन पहुंचे और सीधे उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस घटना के बाद भी शरद पवार चर्चा में बने हुए हैं। पत्रकारों ने जब शरद पवार से प्रश्न पूछा कि राष्ट्रवादी पार्टी में इतनी बड़ी टूट के बाद पार्टी का आश्वस्त करने वाला चेहरा कौन है तो उन्होंने उत्तर दिया। शरद पवार इस बार भी वह चर्चा में हैं। पार्टी में फूट के बावजूद वे डिगे नहीं और अदालती लड़ाई जारी रखी। चुनाव आयोग में एनसीपी की सुनवाई में स्वयं पवार भी शामिल हुए। इस तरह शरद पवार अपने हमेशा की तरह इस वर्ष भी चर्चा में बने हुए हैं।
3. छगन भुजबल
छगन भुजबल को एनसीपी के वरिष्ठ नेता के रूप में जाना जाता है। एनसीपी में विभाजन के बाद से ही ये छगन भुजबल काफी चर्चा में हैं। उन्होंने अजित पवार के साथ जाकर भाजपा शिंदे गवर्नमेंट में मंत्री पद की शपथ ली। ब्रेकअप के दौरान उनकी मुलाकात शरद पवार से हुई थी। शरद पवार ने बोला है। छगन भुजबल ने मुझसे बोला कि वह देखने आते हैं कि क्या हो रहा है, उसके बाद वे चले गए और कभी नहीं आए। इसके चलते यह चर्चा में रही। मंत्री पद की शपथ लेने के बाद उन्हें कैबिनेट में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति का लेखा-जोखा मिला। इस बीच छगन भुजबल ने एक बयान दिया है। ब्राह्मण अपने बच्चों का नाम संभाजी और शिवाजी नहीं रखते। उन्होंने यही कहा। इसलिए वे विवादों के घेरे में थे। तब उन्हें धमकी भरे कॉल भी आए थे। इसके बाद मराठा आरक्षण की मांग प्रारम्भ हुई, मनोज जारंग की भूख स्ट्राइक और बैठकें प्रारम्भ हुईं तो ओबीसी नेता के तौर पर छगन भुजबल ने मराठा समुदाय की इस मांग का विरोध किया। भुजबल यह बयान देकर चर्चा में आए थे कि मराठा समुदाय की इस मांग को पूरा करना ओबीसी समुदाय के साथ अन्याय है, जो मनोज जारांगे पटल की बैठक में सहायता कर रहे हैं। मराठा समुदाय ने भी उन पर अपना गुस्सा जाहिर किया। वहीं उन्हें ओबीसी समुदाय का भी समर्थन मिल रहा है। ओबीसी एल्गार सभा से मनोज जारांगे पाटिल और जालना, हिंगोली, इंदापुर में मराठा समुदाय की मांग पर आक्रामक ढंग से बात की। इस वजह से वे चर्चा में बने हुए हैं। साथ ही भुजबल यह बयान देकर भी चर्चा में रहे हैं कि उन्हें डर है कि उन्हें गोली मार दी जाएगी
4. एकनाथ शिंदे
राज्य के सीएम के तौर पर एकनाथ शिंदे पूरे वर्ष चर्चा में रहे हैं। ठाकरे समूह लगातार इस बात पर चर्चा कर रहा था कि विधायक अयोग्यता मुद्दे के कारण वह सीएम पद खो देंगे। फिर भी वो सीएम बने हुए हैं। इसलिए चर्चा के केंद्र में बने हुए हैं। उन पर लगातार इल्जाम लगाकर ठाकरे ग्रुप ने उन्हें खबरों में बनाए रखा है। इसके अतिरिक्त सीएम एकनाथ शिंदे ने राज्य में विभिन्न घटनाओं को संभाला है। बुलढाणा बस हादसा, इरशालवाड़ी ढहने की घटना, मराठा आंदोलन जैसी बड़ी और जरूरी घटनाओं में उनकी किरदार चर्चा में रही है। साथ ही हाल ही में राजस्थान में भाजपा उम्मीदवार के लिए प्रचार करने पर भी ठाकरे समूह ने उनकी निंदा की थी। वहां लगे एक बैनर पर उन्हें हिंदू दिल सम्राट कहा गया था। इसलिए ठाकरे समूह ने उनकी निंदा की। सीएम के तौर पर वह लगातार काम कर रहे हैं और खबरों में बने हुए हैं।
5. अजित पवार
अजित पवार महाराष्ट्र के सबसे चर्चित सियासी नेताओं में से एक हैं। इस वर्ष भी वह चर्चा में रहे हैं। वह अपने गुस्से के नाटक, राष्ट्रवादी पार्टी को विभाजित करने की पहल, विपक्ष के नेता के रूप में बीजेपी शिंदे गवर्नमेंट में दूसरे उप सीएम के रूप में शपथ लेने, अजित पवार के उप सीएम बनने के बाद दिल्ली में शपथ लेने के कारण चर्चा में रहे हैं। इसी वर्ष 2 जुलाई को शिवसेना पार्टी के विभाजन के बाद अजित पवार एनसीपी के विधायकों के साथ सीधे राजभवन पहुंचे और उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनके साथ एनसीपी के अहम नेताओं ने भी मंत्री पद की शपथ ली। इस घटना के कारण अजित पवार सुर्खियों में आ गए। इसके बाद गवर्नमेंट में शामिल होने के बाद उन्होंने दिल्ली का रुख भी किया। समय-समय पर अमित शाह से मुलाकात हुई। दिल्ली में एनडीए की बैठक में प्रफुल्ल पटेल के साथ अजित पवार भी शामिल हुए। गवर्नमेंट में शामिल होने के बाद भी ऐसी चर्चाएं थीं कि अजित पवार नाखुश हैं। अंततः उनके मंत्रियों को संरक्षक मंत्री पद दिया गया और अजित पवार को पुणे का संरक्षक मंत्री पद दिया गया। जब राज्य में मराठा आरक्षण का मामला गरमाया हुआ था। अजित पवार के डेंगू की भी चर्चा हुई। साथ ही इसके बाद विधानमंडल सत्र में अजित पवार के पीएचडी पर दिए गए बयान से भी वह विवादों के भंवर में फंस गए हैं। इस तरह इस वर्ष भी अजित पवार का दबदबा रहा है।
6. देवेन्द्र फड़नवीस
देवेन्द्र फड़नवीस राज्य में भाजपा पार्टी का चेहरा और अहम नेता हैं। इसी तरह वह इस वर्ष भी सुर्खियों में रहे हैं। जब अजित पवार ने गवर्नमेंट में शामिल होने का निर्णय किया। तब फड़णवीस सुर्खियों में थे। फड़णवीस की चर्चा इसलिए हुई क्योंकि उनके साथ अजित पवार भी उपमुख्यमंत्री थे। साथ ही इस बीच यह भी चर्चा होने लगी कि फड़णवीस जल्द ही फिर से महाराष्ट्र के सीएम बनेंगे।बीजेपी के महाराष्ट्र ट्विटर हैंडल पर एक वीडियो पोस्ट किया गया था। तो ये चर्चाएं प्रारम्भ हो गईं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं होगा। ऐसा फड़णवीस ने बोला था। बाद में जालना के अंतरवाली सराटी में मराठा प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज की घटना हुई। इस वजह से गृह मंत्री के तौर पर फड़णवीस काफी चर्चा में रहे थे। इसके बाद प्रदर्शनकारी मनोज जारांगे पाटिल ने भी उनकी निंदा की। इस वर्ष वह कई चीजों के कारण चर्चा में रहे, जैसे कि उन्होंने मराठा आंदोलन में अकेले किरदार निभाई। साथ ही यह भी बोला गया कि फड़णवीस अब राज्य छोड़कर केंद्र में जाएंगे और पार्टी उन्हें ऐसा करने का आदेश देगी।
7. राहुल नार्वेकर
राहुल नार्वेकर विधानसभा अध्यक्ष हैं। जब से शिव सेना अलग हुई है। इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने विधायक अयोग्यता मुद्दे की जिम्मेदारी विधानसभा अध्यक्ष को दे दी। इसी वजह से वे चर्चा में आ गए हैं। विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने बोला था कि जब उच्चतम न्यायालय निर्णय राष्ट्रपति को सौंपेगा तो अयोग्यता का निर्णय कानूनी तौर पर लिया जाएगा। इसके बाद ठाकरे गुट ने विधानसभा अध्यक्ष पर शीघ्र निर्णय न लेने और समय लेने का इल्जाम लगाया। इस संबंध में ठाकरे समूह ने उच्चतम न्यायालय में याचिका भी दाखिल की है। इससे राहुल नार्वेकर सुर्खियों में आ गए। इस मुद्दे में उच्चतम न्यायालय ने राहुल नार्वेकर को कठोर शब्द भी सुनाये। साथ ही जल्द से जल्द फैसला लेने का आदेश दिया। उच्चतम न्यायालय ने उन्हें शेड्यूल जमा करने का भी आदेश दिया। उस शेड्यूल से भी न्यायालय ने उन पर गाज गिरा दी थी। इसलिए नार्वेकर की खूब चर्चा हो रही है। आख़िरकार उच्चतम न्यायालय ने नार्वेकर्स को 31 दिसंबर तक सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया। वह वैसे ही काम करने लगा। अब उन्होंने 10 जनवरी तक का समय लिया है। ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष इस मुद्दे को लेकर राज्य में चर्चा में बने हुए हैं।
8. उद्धव ठाकरे
शिवसेना में फूट के बाद पिछले वर्ष से उद्धव ठाकरे भी सुर्खियों में हैं। विपक्षी हिंदुस्तान गठबंधन ने राष्ट्र में बैठकें कीं। हिंदुस्तान अघाड़ी का नाम दिया गया। उस बैठक में उद्धव ठाकरे शामिल हुए थे। उस समय ये काफी सुर्खियों में रहा था। हिंदुस्तान अघाड़ी में उद्धव ठाकरे को महत्व मिला। इसके बाद वह समय-समय पर राज्य गवर्नमेंट का दामन थामते नजर आए हैं। जुलाई महीने में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के एक साथ होने की भी खबरें आई थीं, जिससे वे चर्चा में आ गए थे। इसके अतिरिक्त महाविकास अघाड़ी की वज्रमूठ बैठक में भी उद्धव ठाकरे चर्चा में रहे। उन पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित करना पड़ता था। इसलिए इन बैठकों में वह चर्चा में रहे। अब अडानी के विरुद्ध मोर्चा खोलने से ठाकरे चर्चा में आ गए हैं।
9. पंकजा मुंडे
बीजेपी की अहम नेता पंकजा मुंडे इस वर्ष काफी सुर्खियों में रही हैं। उन्होंने कुछ दिनों के लिए राजनीति से दूर रहने का निर्णय किया था। इसके बाद वे फिर से एक्टिव हो गये। उनकी अपार लोकप्रियता उनके द्वारा निकाली गई शिव शक्ति यात्रा में देखने को मिली। जगह-जगह उन पर पुष्पवर्षा की गई। साथ ही इस वर्ष उन्हें बीआरएस पार्टी की ओर से सीधे सीएम पद की पेशकश भी की गई थी। साथ ही उन्हें भाजपा में खास महत्व भी नहीं मिल रहा है। इस साल गिरावट की ओर जाने के बारे में बहुत सारी चर्चाएँ हुई हैं। ऐसे में पंकजा मुंडाने को इस वर्ष कई तरह के ऑफर मिलते नजर आ रहे हैं। यह भी बोला गया कि वह पार्टी छोड़ देंगे, लेकिन उन्होंने बोला कि वह ऐसा कोई निर्णय नहीं लेंगे। वह अपदस्थ गवर्नमेंट के कार्यक्रम में भी शामिल हुए थे।
10. रोहित पवार
युवा नेता के तौर पर रोहित पवार भी काफी चर्चित रहे हैं। इस वर्ष उन्होंने युवाओं का मामला उठाकर गवर्नमेंट को परेशान कर रखा है। इसीलिए युवाओं के बीच उनकी चर्चा हो रही है। साथ ही एनसीपी में फूट के बाद रोहित पवार और भी एक्टिव हो गए हैं। रोहित पवार ने मानसून सत्र में मामला चा कहा नाम से अभियान चलाया था। इसमें बेरोजगारी का मामला उठाया गया। उसके बाद अब उन्होंने पुणे से नागपुर तक 800 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर संघर्ष यात्रा निकाली है और एक बार फिर बेरोजगारी, पेपर कटिंग, सरकारी भर्तियां और किसानों के मुद्दों को विधानमंडल के शीतकालीन सत्र में चर्चा में ला दिया है। इस तीर्थयात्रा के दौरान वह भिन्न-भिन्न लोगों से मिलने के कारण चर्चा में रहे हैं। अजित पवार गुट ने भी उनकी निंदा की है। अजित पवार के एनसीपी में विभाजन के बाद रोहित पवार को अब एनसीपी में एक जरूरी नेता के रूप में देखा जा रहा है।