राज्यसभा चुनाव में बीजेपी अखिलेश संग करेगी खेला, 8वें प्रत्याशी को मैदान उतारा में…
भारतीय जनता पार्टी ने राज्यसभा चुनाव के लिए 8वें प्रत्याशी को मैदान में उतार कर कुछ ऐसी रणनीति अख्तियार की है कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। जी हां, पीडीए के प्रत्याशियों को राज्यसभा चुनाव में तरजीह न देने को लेकर सपा में पैदा हुए असंतोष को बीजेपी कुछ यूं भुनाएगी गुरुवार सुबह तक किसी को भान तक न था। दरअसल, बीजेपी इसके जरिये एक तीर से कई निशाने साधना चाहती है। अव्वल तो उसका मकसद अखिलेश यादव के ‘पीडीए’ के दावों की हकीकत को सामने लाना है। दूसरा क्रास वोटिंग को सुनिश्चित कर भाजपा, समाजवादी पार्टी के पैदा असंतोष को सार्वजनिक कर मिशन-2024 के लिए हथियार बना उस पर मनोवैज्ञानिक दवाब बनाना चाहती है।
सपा का तीसरे प्रत्याशी का गणित बनाने में जुटी
सियासी जानकारों की मानें तो 8वें उम्मीदवार के उतरते ही समाजवादी पार्टी का गणित डामाडोल होने लगा है। दरअसल, चुनाव से पहले पार्टी को तय करना होगा कि उसके तीनों उम्मीदवारों को कौन-कौन विधायक मतदान करेंगे या यूं कहें हर प्रत्याशी का कोटा तय होगा। समाजवादी पार्टी ने तीन प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। इसमें जया बच्चन, आलोक रंजन और रामजी लाल सुमन। एक प्रत्याशी को जिताने के लिए 37 विधायकों के मत की आवश्यकता बताई गई है। तीनों को जिताने के लिए समाजवादी पार्टी को 37 गुणा तीन यानी 111 वोट चाहिए होंगे।
सपा के पास मौजूदा समय में 108 विधायक हैं। इसमें से तीन यानी अब्बास अंसारी, रमाकांत यादव और इरफान सोलंकी कारावास में हैं। पूर्व में हुए कुछेक चुनावों को नजीर माने तो 27 फरवरी को होने वाले मतदान में इन तीनों विधायकों का वोट डालना न्यायालय के निर्णय पर निर्भर करेगा। इन 108 में से सिराथू से विधायक पल्लवी पटेल भी कह चुकी हैं कि वह समाजवादी पार्टी को वोट नहीं करेंगे। ऐसे में समाजवादी पार्टी के चार विधायक कम होकर 104 रह जाते हैं। इसमें से यदि मान लें कि कांग्रेस पार्टी के दो विधाायक समाजवादी पार्टी के पक्ष में वोट करेंगे तब भी समाजवादी पार्टी को महत्वपूर्ण 111 मतों के लिए पांच अतिरिक्त वोट चाहिए होंगे।
ऐसे में समाजवादी पार्टी के तीसरे प्रत्याशी के लिए मुसीबत होना लाजिमी है। प्रश्न है कि यह पांच मत कहां से और किस दल में सेंध लगाकर हासिल हो सकेंगे। समाजवादी पार्टी के पास तीसरे प्रत्याशी के लिए 32 वोट बच रहे हैं। ऐसे में गणना दूसरे और तीसरे वरीयता के मतों से हो तो हैरत नहीं। ऐसे में समाजवादी पार्टी की आस रालोद के विधायकों पर टिकी है। रालोद के नौ विधायकों में दो समाजवादी पार्टी मुखिया के करीबी कहे जाते हैं। हालांकि रालोद ने अपनी एकजुट का मुजाहरा कर सभी नौ विधायकों के साथ होने का दावा किया है। फिर भी समाजवादी पार्टी के लिए कांग्रेस पार्टी के अतिरिक्त रालोद के कुछ विधायकों से ही आस है।
संजय सेठ ने फेरा समाजवादी पार्टी के मंसूबों पर पानी
कभी समाजवादी पार्टी के मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव के करीबी और बाद में अखिलेश के करीबी रहे संजय सेठ के लिए भी जीत की राह इतनी सरल नहीं है। हां, यह बात दीगर है कि उन्हें जोड़-तोड़ का माहिर माना जाता है। लिहाजा, अपने लिए जरूर मतों का व्यवस्था उनके लिए अपेक्षाकृत सरल बताया जा रहा है। दरअसल, बीजेपी के पास कुल 288 मत हैं यानी बीजेपी के 252, अपना दल 13, रालोद 9, निषाद पार्टी 6, सुभासपा 6 और राजा भैया की जनसत्ता दल-2 यानी कुल 288 मत हैं। बीजेपी को सात उम्मीदवारों को जिताने के लिए कुल 259 मतों की आवश्यकता होगी, जो वह सरलता से हासिल कर लेगी।
अब बचे 29 मत। यदि यह मान भी लें कि रालोद के सभी 9 बीजेपी के साथ जाएंगे तो बीजेपी को 8वें प्रत्याशी संजय सेठ के लिए 8 मतों की ही आवश्यकता होगी। वैसे संजय सेठ वैसे समाजवादी पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे हैं और समाजवादी पार्टी के कई विधायकों से उनकी नज़दीकियां रही हैं। ऐसे में उनके लिए 8 मतों का ‘मैनेजमेंट’ अभी सरल न भी हो तो असंभव नहीं बताया जा रहा। हां, समाजवादी पार्टी के लिए जरूर पांच मतों का आंकड़ा हासिल करना मौजूदा नाराज़गी के चलते टेढ़ीखीर प्रतीत हो रहा है।
बसपा की रणनीति का खुलासा नहीं
सपा के विधानसभा में मात्र एक विधायक हैं। उनकी बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता से खासी निकटता कही जाती है। वहीं संजय सेठ के भी वह करीब माने जाते हैं। ऐसे में उनका मत किस ओर जाएगा, इसे लेकर अधिक असमंजस नहीं है।
कौन हैं संजय सेठ
मुलायम सिंह के करीबी रहे। सपा के कोषाध्यक्ष रहे। अखिलेश ने साल 2016 में राज्यसभा भेजा। बाद में बीजेपी में साल 2019 में शामिल हुए। बीजेपी ने भी राज्यसभा भेज दिया। प्रदेश के बड़े बिल्डर हैं। उनके पार्टनर भी समाजवादी पार्टी के करीबी कहे जाते हैं।
वर्ष 2018 में भी पैदा हुई थी कुछ ऐसी ही स्थिति
भाजपा ने साल 2018 में हुए राज्यसभा चुनाव में भी आखिरी समय में अपने 9वें प्रत्याशी डा। अनिल अग्रवाल को उतार दिया था। अनिल अग्रवाल दूसरी वरीयता के अधिक वोट मिलने पर जीते थे। उनके प्रतिद्वंद्वी बीएसपी के भीमराव अंबेडकर को हालांकि पहली वरीयता के 37 वोट मिले थे लेकिन उन्हें दूसरी वरीयता के मत न मिले के कारण वह हार गए थे और बीजेपी सेंधमारी कर अपना 9वां प्रत्याशी जितवाने में सफल रही थी।