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Allahabad High Court: भाई और शादीशुदा बहन के बीच पैत्रक संपत्ति के बंटवारे पर तकरार

Allahabad High Court: भारतीय परिवारों में संपत्ति यानी प्रॉपर्टी को लेकर टकराव होना एक सामान्य बात है खासकर भाइयों के बीच प्रापर्टी के बंटवारे को लेकर गोली चल जाती है और हाथापाई हो जाता है तो कभी भाई और शादीशुदा बहन के बीच पैत्रक संपत्ति के बंटवारे पर तकरार होती है कभी-कभी मां और बेटे भी आमने सामने आ जाते है तो कुछ लड़के पिता की संपत्ति पर मां के बजाए अपना डायरेक्ट अधिकार समझते हैं बहुत से लोगों को लगता होगा कि बाप की संपत्ति पर अंतिम अधिकार केवल बेटे का होता है ऐसी सोच रखने वालों को किसी योग्य कानूनी जानकार से गलतफहमियां समय रहते दूर कर लेनी चाहिए कुछ ऐसे ही आम प्रश्नों और पारिवारिक विवादों के बीच इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक प्रॉपर्टी टकराव को सुलझाते हुए उस बड़े प्रश्न का उत्तर दिया है, जो कभी न कभी आपके दिमाग में भी आया होगा

हाईकोर्ट की चौखट पर पहुंचा पैत्रक संपत्ति का विवाद

संपत्ति के एक टकराव में निर्णय सुनाते हुए उच्च न्यायालय ने बोला है कि एक आदमी द्वारा अपनी गृहिणी पत्नी के नाम पर खरीदी गई संपत्ति, पारिवारिक संपत्ति है क्योंकि उसके पास आय का कोई स्वतंत्र सोर्स नहीं है उक्त प्रबंध देते हुए जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने बोला कि हिंदू पतियों के लिए अपनी पत्नियों के नाम पर संपत्ति खरीदना आम बात है

दिवंगत पिता की संपत्ति में सह स्वामित्व के पुत्र के दावे को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा, ‘अदालत भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के अनुसार यह मान सकती है कि हिंदू पति द्वारा अपनी गृहिणी पत्नी के नाम खरीदी गई संपत्ति, परिवार की संपत्ति होगी क्योंकि सामान्य स्थिति में पति अपने परिवार के भलाई में घर संभालने वाली पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदता है जिसके पास आय का कोई स्वतंत्र साधन नहीं होता है

अदालत ने बोला कि जब तक यह सिद्ध ना हो जाए कि अमुक संपत्ति पत्नी की आय से खरीदी गई है, तबतक वह संपत्ति पति की इनकम से खरीदी मानी जाती है

अपीलकर्ता सौरभ गुप्ता ने मांग की थी कि उसे अपने पिता द्वारा खरीदी गई संपत्ति के एक चौथाई भाग का सह स्वामी का दर्जा दिया जाए उसकी दलील थी कि वैसे संपत्ति उसके दिवंगत पिता द्वारा खरीदी गई थी, वह अपनी मां के साथ उसमें सह हिस्सेदार है

सौरभ गुप्ता की मां इस वाद में प्रतिवादी हैं सौरभ गुप्ता ने संपत्ति किसी तीसरे पक्ष को हस्तांतरित करने के विरुद्ध रोक लगाने की मांग करते हुए एक अर्जी दाखिल की थी

मां ने न्यायालय में कही ये बात

सौरभ की मां ने एक लिखित बयान में बोला कि वह संपत्ति उसके पति द्वारा उसे उपहार में दी गई थी क्योंकि उसके पास आय का कोई साधन नहीं था अंतरिम रोक की मांग वाला आवेदन निचली न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया था जिसके विरुद्ध सौरभ गुप्ता ने हाई कोर्ट में अपील दाखिल की

अपीलकर्ता की अपील स्वीकार करते हुए न्यायालय ने 15 फरवरी को दिए अपने फैसला में बोला कि एक हिंदू पति द्वारा अपनी गृहिणी पत्नी के नाम पर खरीदी गई संपत्ति, पति की पर्सनल आय से खरीदी गई संपत्ति मानी जाती है, क्योंकि पत्नी के पास आय का कोई स्वतंत्र साधन नहीं होता है

अदालत ने बोला कि ऐसी संपत्ति प्रथम दृष्टया एक संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति बन जाती है न्यायालय ने बोला कि ऐसी परिस्थितियों में यह जरूरी हो जाता है कि उस संपत्ति की तीसरे पक्ष के सृजन से रक्षा की जाए

 

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