सरकारी योजनाओं का लाभ पाने में हो रही मुश्किल, यहां मुफ्त राशन की है बहार
निगोंहा क्षेत्र के खुदीखेड़ा गांव निवासी किराना व्यापारी राशेंद्र त्रिपाठी शुक्रवार को दुकान पर बैठे मिले. होली के त्योहार में ग्राहकों की आवाजाही के बीच कहते हैं कि सरकारी योजनाओं जैसे कर्ज आदि के लिए दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं. कभी लेखपाल के नहीं आने तो कभी सचिव की फाइल में कमी से परेशान होना पड़ता है. फत्तेखेड़ा के रहने वाले धरमवीर और मनीष बताते हैं कि मजदूरी करने जा रहे हैं. खेती योग्य जमीन नहीं है. सरकारी कोटे की दुकान से निःशुल्क वाला राशन भरपूर मिल रहा है. इससे खाने-पीने की कोई परेशानी नहीं है. मोहनलालगंज क्षेत्र के केशरी खेड़ा गांव निवासी किसान हरिश्चंद्र और सिसेंडी के बाबूलाल कहते हैं कि हम जैसे सैकड़ों किसानों को सम्मान निधि का फायदा मिल रहा है. पहले फसल मुनासिब मूल्य पर बेचने के लिए भटना पड़ता था. अब घर बैठे सुविधाएं मिल रहीं हैं. दहियर के अनिल पांडेय और भौदरी गांव के दिवाकर कहते हैं कि गांव विकसित हो रहे हैं. घर का जो सामान पहले लखनऊ लेने जाना पड़ता था, वह अब गांव में ही मिल जा रहा है.
तीन विधानसभा में भाजपा
राजधानी लखनऊ से रायबरेली, उन्नाव, बाराबंकी और सीतापुर संसदीय सीट को जोड़ने वाली दूसरी सीट मोहनलालगंज है. यहां की पांच विधानसभाओं में से मोहनलालगंज, सरोजनीनगर, बख्शी का तालाब, मलिहाबाद तो लखनऊ में आती हैं, जबकि सिधौली सीतापुर में है. इनमें तीन पर बीजेपी के पास हैं. इस सीट पर करीब 27 लाख से अधिक मतदाता हैं, जिसमें 9,40,429 पुरुष तो स्त्री मतदाताओं की संख्या 10,82,912 है. थर्ड जेंडर 90 हैं.
दलित निर्णायक : हर चुनाव में दिखता है मजबूत असर
– चार लाख से अधिक रावत यानी पासी बिरादरी के मतदाता हैं. 2.53 लाख यादव मतदाता भी मजबूत हैं. 2.21 लाख जाटव भी किसी से कम नहीं हैं.
– 2.15 लाख ब्राह्मण, 1.77 लाख ठाकुर और करीब 1.75 लाख लोधी और मौर्य भी अपनी मजबूत मौजूदगी दिखाते हैं. 1.50 लाख मुसलमान भी निर्णायक की हैसियत रखते हैं.
कभी रहा कांग्रेस पार्टी का दबदबा… साल 1952 में मोहनलालगंज का हिस्सा रायबरेली और उन्नाव संसदीय सीट के बीच बंटा था. यह सीट 1962 में बनी. दलितों की जनसंख्या अधिक होने के कारण यह सुरक्षित सीट है. पहले तीन चुनाव कांग्रेस पार्टी की गंगा देवी जीतीं. इसके बाद समाजवादी पार्टी की रीना चौधरी दो बार विजयी रहीं. कांग्रेस पार्टी पांच बार, समाजवादी पार्टी चार बार, बीजेपी तीन बार और जनता दल और लोकदल एक-एक बार जीते हैं.
खास हैं आम के बाग : चुनावी समर में होती है चर्चा
– क्रांतिकारियों की स्मृति में काकोरी में बना स्मारक, आम के लिए प्रसिद्ध मलिहाबाद, पुरातात्विक स्थल हुलासखेड़ा समेत कई प्रमुख मंदिर भी यहां हैं. आम बागान की सुविधाओं का अभाव और छुट्टा पशुओं के आश्रय स्थलों की दुर्दशा भी क्षेत्र में बड़ा मामला है.