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तलाक पर सुप्रीम कोर्ट ने कह दी बड़ी बात, कहा…

तलाक के बाद भी पूर्व पति पर मानसिक क्रूरता का इल्जाम लगा रही एक स्त्री को न्यायालय से झटका लगा है. उच्चतम न्यायालय ने पति के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा 498ए के जारी आपराधिक कार्यवाही समाप्त कर दी है. खास बात है कि इसके लिए शीर्ष कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के अनुसार मिली शक्तियों का इस्तेमाल किया.

क्या था मामला
अरुण जैन नाम के शख्स की विवाह नवंबर 1996 में हुई थी. दोनों को अप्रैल 2001 में एक बेटी भी हुई थी. हालांकि, वर्ष 2007 में पति ने ससुराल से दूरी बना ली और इसके कुछ समय बाद ही पत्नी ने तलाक की कार्यवाही प्रारम्भ कर दी थी, जो अप्रैल 2013 में एक पार्ट एनलमेंट के तौर पर समाप्त हुई थी.

तलाक के 6 महीने के बाद स्त्री ने धारा 498ए के अनुसार पति और उसके माता-पिता के विरुद्ध कम्पलेन दर्ज कराई थई. तब दिल्ली पुलिस ने फरवरी 2014 में FIR दर्ज की और सितंबर 2015 में चार्जशीट दाखिल की थी. इसके बाद शख्स ने आपराधिक कार्यवाही समाप्त करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया था.

उच्च कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद उन्होंने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने जस्टिस बीवी नागरत्न और जस्टिस ऑगस्टीन जी मसीह को कहा कि ये आपराधिक कानून का दुरुपयोग है, क्योंकि फैमिली न्यायालय ने सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद विवाह को रद्द कर दिया था.

कोर्ट को यह भी कहा गया कि 2008 में स्त्री ने Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005 के अनुसार भी कार्यवाही प्रारम्भ कराई थी, लेकिन ट्रायल न्यायालय ने मेरिट के आधार पर तब इसे रद्द कर दिया था. स्त्री ने भी ट्रायल न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील नहीं की.

अब ताजा सुनवाई के दौरान बेंच को लगा कि अलग हो चुके जोड़े के बीच आपराधिक कार्यवाही को जारी रख मतभेदों जीवित रखने का कोई मतलब नहीं है. इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने कार्यवाही को समाप्त कर दिया.

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