क्या वाकई, एहसास-ए-मोहब्बत कुछ केमिकल्स का खेल है,जाने…
लाइफस्टाइल न्यूज डेस्क।। “मोहब्बत है क्या चीज, हम को बताओ? ये किसने प्रारम्भ की, हमें भी सुनाओ…।” गीतकार संतोष आनंद ने फिल्म ‘प्रेम रोग’ में जब ये प्रश्न उठाया था, उससे पहले बहुत से नामवरों ने अपने-अपने ढंग से इस प्रश्न का उत्तर देने की प्रयास की थी।
मसलन, अठारहवीं सदी के प्रसिद्ध शाइर मीर तकी मीर ने कहा, “इश्क इक ‘मीर’ भारी पत्थर है… कब ये तुझ ना-तवां से उठता है…” अगर, मीर ने इश्क को भारी पत्थर कहा, तो बीसवीं सदी के एक और शायर अकबर इलाहाबादी ने इसे कुछ ऐसे परिभाषित किया… “इश्क नाजुक मिजाज है बेहद, अक्ल का बोझ उठा नहीं सकता…”
क्या कहता है साइंस
और, जब साहिर ने संतोष आनंद के उठाए प्रश्न का उत्तर देने के लिए कलम उठाई तो बहुत कुछ लिख डाला…
किस्सा मुख्तसर ये कि जिसने जैसा महसूस किया, उसने इश्क-ओ-मोहब्बत को अपने तजुर्बात की बुनियाद पर बयां कर दिया। किसी को भारी पत्थर लगा, तो किसी को नाजुक मिजाज, किसी ने मोहब्बत में खुदा देखा, तो किसी को विलेन नजर आया। मगर साहब, ये बातें ठहरीं शायराना। इश्क के जज्बे को जब साइंसदानों के हवाले किया गया, तो बड़े नीरस ढंग से उन्होंने कह दिया-हुजूर ये आप के जहन का केमिकल लोचा भर है। अधिक लोड न लें, इसे लेकर।
केमिकल लोचा है?
क्या वाकई, एहसास-ए-मोहब्बत कुछ केमिकल्स का खेल है? ऐसा है, तो पहली नजर का प्यार क्या है? इश्क में दुनिया को भुला बैठना क्या है? मोहब्बत का दीवानापन क्या है?
अगर, केमिकल लोचा होता, तो हम इश्क में अरैस्ट न होते। मोहब्बत में दीवाने न होते। इसकी गलियों में दिल न खो बैठते। इश्क इतना आसां नहीं, जितना वैज्ञानिक कहते हैं। अन्यथा कोई इंजेक्शन लगवाते और इश्क में मुब्तिला हो जाते। तभी तो हर जमाने के फलसफी चचा गालिब कह गए-
साइंस के नजरिए से…
मोहब्बत होती है तो स्वयं से हो जाती है और न होनी हो तो लाख कोशिशें करते रहिए। छू कर भी न गुजरेगी आपको। रूमानी मोहब्बत की हकीकत ये है कि इक आग का दरिया है और डूब के जाना है। जो हो जाए तो ये हमारे काबू में नहीं रहती। बल्कि हम इसके काबू में होते हैं। इश्क इक ऐसा राज है, जैसे किसी जादूगर का इंद्रजाल। इक दफा फंस गए, तो क्या होगा, कैसे होगा कुछ अंदाजा नहीं होता। तो, इश्क के एहसास को केवल साइंस के नजरिए से नहीं समझा जा सकता। इसकी रस्में हर सभ्यता, हर समाज हर संस्कृति में एक जैसी हैं। मगर बयान कुछ इस तरह से होती हैं-
अब इस अजीब-ओ-गरीब रूहानी एहसास को साइंस के तजुर्बात क्या डिफाइन करेंगे? हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, ये समझने के लिए विज्ञान की कुछ बातों पर गौर फरमाएं।
बॉन्डिंग हारमोन
अक्सर बोला जाता है कि संभोग के हारमोन यानी फेरोमोन, अनेक जीवों में पाए जाने वाले वो केमिकल हैं, जो सामने वाले को ये संकेत देते हैं कि हमारे अंदर प्रजनन की कितनी खूबियां हैं। लेकिन, ये फेरोमोन कीड़ों में भले कारगर हों। मगर, दो इंसानों के बीच कनेक्शन में इनका रोल अस्पष्ट है। और यदि कोई केमिकल बाहर वाले को ऐसे संकेत दे सकता है, तो शरीर के भीतर भी तो असर करता होगा।
इस मुद्दे में न्यूरोपेप्टाइड ऑक्सीटोसिन नाम का केमिकल प्यार का एहसास कराने में कारआमद साबित हो सकता है। क्योंकि इस बॉन्डिंग हारमोन बोला जाता है। जो दूसरों से जुड़ाव पैदा करता है। इससे स्त्रियों में दूध का स्राव होता है और गर्भाशय का आकार घटाने-बढ़ाने में भी ये अहम रोल निभाता है। ऑक्सीटोसिन के बारे में काफी शोध हुआ है। खास तौर से अमरीका के प्रेयरी के मैदानों में पाए जाने वाले चूहों पर। ये चूहे एक ही साथी के साथ जीवन बिताने यानी मोनोगैमी के लिए प्रसिद्ध हैं। जबकि आम तौर पर जानवरों में मोनोगैमी की गुंजाइश कम ही होती है।
प्यार का संदेश
इन चूहों पर हुए तजुर्बे में देखा गया कि इनमें ऑक्सीटोसिन का स्राव रोका गया, तो वो अपने जज्बातों को काबू में रखते थे। और जब इसकी तादाद बढ़ा दी गई, तो जो चूहे मोनोगैमी में विश्वास नहीं रखते, वो भी एक ही साथी के अधिक करीब होते देखे गए। हालांकि, इंसानों में ऑक्सीटोसिन का इतना नाटकीय असर होता नहीं देखा गया। फिर कौन सा केमिकल है, जो हमारे अंदर प्यार का एहसास जगाता है। और यदि आदमी के शरीर से कोई केमिकल प्यार का संदेश लेकर निकलता है, तो उस संदेश को पढ़ने वाला केमिकल भी तो किसी के शरीर में निकलता होगा? जहन में इश्क की इस चिट्ठी का कोई लेटरबॉक्स तो होगा?
वैज्ञानिकों ने इस बारे में दिमाग पर रिसर्च की, तो ये देखा कि प्यार के एहसास से दिमाग के वही हिस्से जागृत होते हैं, जो कोई लक्ष्य हासिल करने या पुरस्कार पाने के लिए काम करते हैं। ये भी देखा गया कि रूमानी एहसास और मातृत्व के प्यार के एहसास को हमारा दिमाग एक ही स्थान से महसूस करता है। फिर, इश्क में दीवाना होने का एहसास कैसे आता है भला? प्रश्न बड़े हैं, और इनका उत्तर पाने के लिए क्या हमें कुछ और प्रयोग करने पड़ेंगे? वैज्ञानिक इसका उत्तर हां में ही देंगे।