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यहां उड़द की दाल के बनते हैं लड्डू,सालाना कमा रहे14 लाख रुपये टर्न ओवर

 बाड़मेर. भारत-पाकिस्तान के बीच आज भले ही रिश्तों की तल्खियां है लेकिन सरहद के उस पार का स्वाद सरहद के इस पार लोगों को खूब रास आ रहा है. कभी पाक के गडरा सिटी के रहने वाले अमोलख दास लड्डुओं से लोगो का दिल जीत लेते थे आज वही परिवार हिंदुस्तान के गडरारोड में रहकर जायका परोस रहे है.

बाड़मेर जिले के सीमावर्ती गडरारोड में उड़द की दाल के बनने वाले लड्डू विदेश में भी धाक जमाए हुए है. आज अमोलख दास की तीसरी पीढ़ी जायका लोगों तक पहुँचा रही है. सालाना 22 हजार क्विंटल गडरारोड़ के लड्डूओं की बिक्री हो जाती है. इतना ही नहीं इससे करीब 14 लाख रुपए सालाना टर्नओवर हो जाता है. यहां के लड्डू अमेरिका,लंदन, मुम्बई और न्यूजीलैंड में भी फेमस है.

यहां वर्ष 1965 में पाक से विस्थापित होकर आए अमोलख दास ने यह कार्य प्रारम्भ किया और आज इसकी डिमांड विदेशो में भी है. पाक में इस तरह के लडडू खूब पसंद किए जाते है. आज आलम यह है कि अमोलख दास की तीसरी पीढ़ी लड्डू का जायका विदेशों तक पहुंचा रहे हैं. इससे पहले अमोलख दास फिर उनके बेटे चमनदास और अब शेखर लोगों तक जायका पहुँचा रहे है.

लड्डू का व्यवसाय करने वाले शेखर भूतड़ा बताते है कि उनके दादाजी अमोलख दास ने यह जायका बनाने का काम वर्ष 1965 में प्रारम्भ किया था. आज वह तीसरी पीढ़ी के रूप में लोगों के बीच जायका पहुँचा रहे है. वह बताते है कि गडरारोड के मशहूर लड्डू अमेरिका,न्यूजीलैंड और लन्दन में भी खूब पसंद किए जा रहे है.

इतना ही नही वह बताते है कि उनका परिवार पाक के गडरा सिटी से आकर हिंदुस्तान के गडरारोड़ में बस गए. वह इन लड्डूओं से सालाना 14 लाख रुपये टर्न ओवर कमा रहे है. सबसे खास बात यह है कि इसका स्वाद लोगो के जुबां पर रहता है. यहीं वजह है कि सालाना 22 हजार क्विंटल यानी 22 टन लड्डूओं की बिक्री हो जाती है.

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